Monday, October 27, 2014

भागवत से - 25 [ श्रुतियाँ कहती हैं ... ]

● भागवत से - 25 
 <> भागवत : 10.22.29 - 10.22.38 तक + 10.23के 52 श्लोको में सिमटी यह भागवत कथा <>
# देखिये ! यह कितना प्यारा प्रश्न है ? " श्रुतियाँ कहती हैं , जो प्रभुको प्राप्त हो गया ,वह वापिस संसार में नहीं लौटता , आप अपनें इस देव वाणीको सत्य करें । " 
** ब्राह्मण पत्नियाँ प्रभु से मिलनें के बाद उस समय कही बात को कहती हैं जब प्रभु उनको वापिस जानें की बात कहते हैं । आइये ! चलते हैं भागवतके इस प्रसंग में :--- 
* यमुना उस पार वृन्दावन में ( आजके वृन्दावन बस्ती में नहीं उस समयके उस सघन विस्तृत वनमें जहाँ प्रभु गौओंको और बकरियोंको चराया करते थे ) प्रभु ,बलराम और अपनें अन्य साथियोंके संग गृष्म ऋतु में गौओं को चराते -चराते बन में बहुत दूर निकल गए । वहाँ उनके कुछ साथियोंको भूख सतानें लगी और वे बलराम जी को अपनें भूखके सम्बन्ध में बताया । बलराम जी तो चुप रहे पर प्रभु कहते है ," पास में अशोक बन है ।वहाँ मथुराके ब्राह्मण स्वर्ग प्राप्ति हेतु अंगिरस नामक यज्ञ कर रहे हैं । आप सब वहाँ जा कर मेरा और दाऊ जीका नाम लेकर कुछ भोजन ले आयें ।" प्रभुके ग्वाले साथी वहाँ गए पर वेद पाठी कोई सकारात्मक उत्तर नहीं दिए और सभीं ग्वाले वापिस आकर वहाँ की घटनाको प्रभुको सुनया । 
* प्रभु अपनें साथियों को पुनः कहा कि इस बार आप सब ब्राह्मण पत्नियोंके पास जायें और भोजन ले आयें ।
 * ग्वाले वहाँ गए और प्रभुका नाम ले कर भोजन माँगा । ब्राह्मण पत्नियाँ तो कृष्णरस में पहले से डूबी थी और चार प्रकारका भोजन बना कर स्वयं लेकर प्रभु की ओर ग्वालोंके संग चल पड़ी ।उनमें कुछको उनके पतियोंनें रोक भी पर कृष्ण प्यारकी भूखी ब्राह्मण पत्नियोंके ऊपर उनके पतियोंका अवरोध कामयाब न हो सका ।
 * ब्राह्मण पत्नियों को प्रभु धन्यबाद किये और बोले ," अब आप सब वापिस चले जाएँ ।" 
 * ब्राह्मण पत्नियाँ प्रभु के आदेश को सुन कर कहती हैं ," अन्तर्यामी श्यामसुंदर ! श्रुतियाँ कहती हैं कि जो प्रभुको एक बार प्राप्त कर लिया ,वह दुबारा संसार में कदम नहीं रखता ,आप अपनें इस देव वाणी को सत्य करें । " 
 * प्रभु कहते हैं ," आप सब अपना-अपना मन मुझ पर केन्द्रित रखें और तन से अपनें -अपनें परिवार में रहें । "
 ## यह भागवत की एक 62 श्लोकों ( 10.22.29-38 + 10.23 के 52 श्लोकों ) में सिमटी एक कथा ही नहीं है ,यह ध्यान का एक बिषय है । भागवत के वेद पाठी ब्राह्मणोंकी पत्नियों और प्रभुके मिलन सन्दर्भके माध्यमसे स्वयंको कृष्णमय बना सकते
हैं ।
 ** सगुण रूप में आप हैं और निर्गुण रूप में सर्वत्र ब्याप्त कृष्ण
 हैं ; इस सगुण को अपनें मूल निर्गुण से एकत्व स्थापित करनें में आप भागवत के ऊपर ब्यक्त 62 श्लोकोंकी मदद ले सकते हैं । 
# ब्राह्मण पत्नियों की बात बुद्धि आधारित ध्यान का माध्यम बन सकती है और प्रभु की बात भक्ति योग की बुनियाद है , प्रभु कहते हैं मन में मुझे बसाए हुए तन से तुम सब अपनें - अपनें परिवार में रहो यह अभ्यास जब मजबूत हो जाता है तब परा भक्ति की किरण निकलती है । 
~~ हरे कृष्ण ~~

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