Tuesday, June 24, 2014

भागवतसे - 15

<> भागवतसे - 15 <> [ कनखल भाग - 2 ]
 ● ' भागवतसे - 14' में कनखलके सम्बन्ध में भागवतके आधार पर कुछ बातें बताई गयी हैं और अब इस सम्बन्ध में कुछ और बातें दी जा रही हैं । 
** सन्दर्भ : भागवत प्रथम खंड , माहात्म्य । गुजरातमें भक्ति एवं उसके दोनों बेटों - ज्ञान वैराग्यके ऊपर कलियुगका बहुत बुरा असर पड़ा , वे तीनों बृद्धा अवस्थामें आगये और हर पल सोये रहते थे । गुजरात में पाखंडियों द्वारा भक्ति पर इतना अत्याचार होनें लगा कि उसको गुजरात छोड़ कर वृन्दावन आकर शरण लेनी पड़ी ।वृन्दावन , यमुना तट पर भक्ति और नारदका मिलन होता है। वृन्दावन पहुँचने पर भक्ति तो जवान हो गयी पर उसके दोनों बेटे वैसे के वैसे रहे । भक्तिसे अपनें बेटों कीयह दशा देखि नहीं जा रही ,वह नारद से अपनें बेटोंको कलियुगके प्रभाव से मुक्त करानें का उपाय पूछ रही है ।
 * नारद कहते हैं , " भक्ति ! यह वृन्दावन है जहाँ भक्ति को सभीं चाहते हैं पर यहाँ ज्ञान -वैराग्य के लिए कोई जगह नहीं " ।
 * नारद भक्तिके बेटों को कलियुग -कुप्रभाव से मुक्त करानें हेतु विचरते हुए बिशाला पूरी पहुँचे जहाँ उनको सनकादि ऋषियों से मिलना हुआ । सनकादि ऋषि नारद को कहते हैं , " हे नारद ! तुम गंगा द्वार समीप स्थित आनंद आश्रम जाओ और वहाँ भागवत कथाका आयोजन करो । वहाँ भक्ति अपनें दोनों बेटों के साथ आएगी और कथा सुननें के बाद ज्ञान - वैराग्य को कलियुग -प्रभाव से मुक्ति मिल जायेगी ।
 * आनद आश्रम पर नारदको भागवत कथा सनकादि ऋषि सुनाये जहाँ सभीं राज ऋषि ,ब्रह्म ऋषि एवं अन्य सभीं सिद्ध आत्माएं उपस्थित थी । 
*यह गंगाद्वारे समीपे आनंद आश्रम वही मैत्रेय ऋषिका आश्रम है जहाँ मैत्रेय ऋषि विदुर जी को तत्त्व - ज्ञान दिया था ।यहाँ गंगा जी की रेत मुलायम रेत हुआ करती थी और यहाँ कमल की खुशबूं हर पल बनी रहती थी । आइये ! चलते हैं भागवतके आनंद आश्रम पर जिसे आज कनखलके नाम से जाना जाता है ।
 ~~ हरि हरि ~~

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