Saturday, June 7, 2014

भागवत से - 13

<> उर्बशी <> 
*भागवत : 9.4 से * 
 ब्रह्माके पुत्र अत्रिके नयनों से चन्द्रमा पैदा हुए । चन्द्रमासे प्रभावित होकर ब्रह्मा उन्हें ब्राह्मणों , ओषधि और नक्षत्रोंका अधिपति बना दिया । चन्द्रमा देवताओं के गुरु बृहस्पति की पत्नी ताराको चुरा लिया । देवगुरु बृहस्पति पत्नी ताराकी वापिसी हेतू बार - बार चन्द्रमा से याचना करते रहे पर उनपर कोई असर न पड़ा । बृहस्पति ब्रह्मा पुत्र अंगिराके पुत्र थे ।तारा केलिए देवताओं और असुरों का घोर संग्राम हुआ । असुरों का साथ दे रहे थे शुक्राचार्य जी क्योंकि वे बृहस्पति से द्वेष करते थे ।अंगिरा महादेवके विद्या गुरु थे अतः महादेव जी भी बृहस्पतिका साथ दिया ।अंत में अंगिरा ऋषि ब्रह्मा से प्रार्थना की और ब्रह्माके दबाव में चन्द्रमा तारा को लौटाया ।तारा जब बृहस्पतिके पास वापिस आयी तब वह गर्भवती थी और एक खूबसूरत पुत्र बुध पैदा हुआ । बुध चन्द्रमाके पुत्र रूप में जाने गए । * ब्रह्माके एक और पुत्र मरीचि थे ,उनसे कश्यप ऋषि का जन्म हुआ । कश्यपसे विवश्वान् का जन्म हुआ और विवश्वान् से सातवें मनु श्राद्ध देव जी पैदा हुए । श्राद्ध देवके पुत्र थे सुद्युम्न जो कुछ समय स्त्री देह में होते थे तो कुछ समय पुरुष देह में ,ऐसा उनको शिव श्राप के कारण होना पड़ता था । जब वे स्त्री होते थे तब उनको इला नामसे जाना जाता था । इला और बुध से पुरुरवा का जन्म हुआ ।पुरुरवा चन्द्र बंश की बुनियाद रखी।
 * एक दिन पुरुरवाकी खूबसूरतीका वर्णन स्वर्ग में इंद्र के दरबार में नारद सुना रहे थे जिसे उस दरबार की सबसे अधिक खूबसूरत अप्सरा उर्बशी सुन रही थी। उर्बशी सुनते - सुनते कामातुर हो उठी और पुरुरवा को पानें की सोचमें पृथ्वी पर पुरुरवाके पास आगई ।
 * पुरुरवा और उर्बशी से 06 पुत्र हुए जिनसे चन्द्र वंश आगे 
बढ़ा । 
* उर्बशी जब पुरुरवाको त्याग कर स्वर्ग जानें लगी तब पुरुरवा उर्बशी को रोकने के लिए बहुत यत्न किये लेकिन विफल रहे । उर्बशी पुरुरवा को कहती है , " राजन ! स्त्री किसी की मित्र नहीं , उसका हृदय भेडिये के हृदय जैसा होता है । वह अपनी लालसाओं की गुलाम होती है । स्त्री अपनी लालसा की पूर्ति केलिए कुछ भी कर सकती है यहाँ तक कि वह अपनें पति ,पिता और भाई तक को मरवा सकती है । पुरुरवा और उर्बशी कुरुक्षेत्र में सरस्वती तट पर मिले थे ।
 ** इस कहानी से आप को क्या मिला ? ** 
-- हरे कृष्ण --

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