Thursday, January 30, 2014

भागवत कथा- 11.5

● भागवत स्कन्ध 11-5● 
सन्दर्भ : स्कन्ध 11.15 से 31तक । 
* सिद्धियाँ : -- 18 प्रकार की सिद्धियाँ हैं जिनमें 08 प्रकार की सिद्धियाँ जो कृष्णमें सदैवरहती हैं , इस प्रकार हैं ---- 
 <> अणिमा , महिमा, लघिमा , प्राप्रि , प्राकाम्य, ईशिता , वशिता ,कामावासायिका ।
 * अणिमा ,महिमा और लघिमा तीन सिद्धियाँ शारीरिक सिद्धियाँ हैं । 
* भूख - प्यास से अप्रभावित रहना , सुदूर देखनें की दृष्टि पाना , दूर की बात को सुनना , मनके साथ शरीरको चलाना , इच्छाके अनुकूल रूप धारण करना , दुसरे शरीरमें प्रवेश करना , शरीर त्याग करनें की क्षमता , भूत , वर्तमान , भविष्य की घटनाओंको देखना , राग - द्वेषसे अप्रभावित रहना , दुसरेके मन को पढ़नेंकी शक्ति , पानी , अग्नि , विष , सूर्य आदि शक्तियोंको स्तंभित करना , ये कार्य सिद्धियोंसे संभव होते हैं ।
 * अणिमासे पत्थर आदिसे गुजरनें की शक्ति मिलती है । 
 * महत्तत्त्वकी सिद्धि सर्व ज्ञानकी सिद्धि है जिसे महिमा कहते 
हैं । 
 * लघिमासे सूक्ष्म रूप धारण करने की क्षमता मिलती है । 
 * प्राकाम्य सिद्धिसे इच्छानुसार भोग प्राप्ति संभव होता है । 
* जीवोंको प्रेरित करनेंकी शक्ति ईशित्व सिद्धि से मिलती है । 
* प्रभु के गुणोंका प्रकट होना वशिता सिद्धि है । 
 * कामना पूर्तिकी सिद्धि है कामावासायिका सिद्धि ।
 > त्रेता युग में तीन वेद बनाए गए , सतयुगमें एक वेद था ॐ । > देहमें आत्माको छोड़ अन्य सभीं माया हैं। 
> यम -नियमका पालन करना , साधन के मार्ग को सुगन बनाता है । 
> ज्ञान -विज्ञानकी परिभाषा : 28 तत्त्वोंका बोध ज्ञान है ( 11 इन्द्रियाँ + 10 भूत एवं बिषय + अहंकार + महतत्त्व + 03 गुण + प्रकृति + पुरुष ) और विज्ञान वह है जो प्रभुकी हवा से स्पर्श कराये ।
 > देश ,काल , पदार्थ ,कर्ता ,कर्म , मन्त्र इन छः की पवित्रताका नाम धर्म है ।
 > वेदों में तीन काण्ड हैं - कर्म ,उपासना , ज्ञान।
 > विवाद का कारण है गुणों का प्रभाव । > मन कर्माधीन है ,यह कर्म संसकारों का पुंज है ।
 > मैं और मेरेपनकी गाँठका खुलना है कैवल्य प्राप्ति । 
* भागवत :-- 11.24+2.5+3.6+3.25-3.26+3.27 को एक साथ देखें जहाँ सांख्य - योग आधारित सृष्टि रचना की बातें हैं । सृष्टि रचनाके सम्बन्धमें भागवत में ब्रह्मा ,मैत्रेय , कपिल और स्वयं कृष्ण बताये हैं । इस बिषय को हम अलग से देखेंगे । 
* पुरुरवा और उर्बशी की कथा बतायी गयी है : पुरुरवा और उर्बशी का मिलन हुआ सरस्वती तट पर । 
*यदु कुल का संहार ; इस कथा जो भी हम अलग से देखेंगे । कृष्ण 125 साल तक पृथ्वी पर शरीर में रहे और यदुकुल का अंत करके स्वधाम चले गए । वह स्थान जहां गरुण रथ प्रभु जो लेने हेरू उतरा था , वह सरस्वती नदी के तट पराज के गुजरात राज्य में था जहाँ से पश्चिम दिशा में सरस्वती सागर से मिलती
 थी । 
~~ ॐ ~~

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