Friday, February 7, 2014

भगवत कथा स्कन्ध -12 भाग -2

● भागवत स्कन्ध 12.2● 
सन्दर्भ : भागवत :12.4 और 12.5 
* यहाँ भागवत में आप को मिलेगा :--- 
<> चार प्रकारकी प्रलय <>
 1- नित्य प्रलय 2- आत्यंतिक प्रलय 3- नैमित्तिक प्रलय 
4-प्राकृतिक प्रलय
 1- नित्य प्रलय : एक तिनके से ब्रह्मा तक की हर पल मौत हो रही है , इस क्रमशः मौतको नित्य प्रलय कहते हैं । 
2- आत्यंतिक प्रलय : माया से माया में स्थित मनुष्य जब बुद्धात्व प्राप्त करके माया मुक्त हो कर मायाका द्रष्टा बन जाता है तब वह बदलाव उसके लिए आत्यंतिक प्रलय होती है । 
3- नैमित्तिक प्रलय : एक कल्पमें 14 मनु होते हैं । कल्पके अंतमें कल्पकी अवधि के बराबर प्रलय रहती है ऐसी स्थिति में तीनों लोक जलमय रहते हैं । ब्रह्माके दिन में सूचनाएं होती हैं । ब्रह्मके दिन की अवधि है -1000 x चार युगों की अवधि और इतनीं ही अवधि होती है ब्रह्माकी रातकी जब प्रलय रहती है । प्रलय अवधि में ब्रह्माण्ड में कुछ नहीं होता जो होता है उसका द्रष्टा वह स्वयं होता है जिसे ब्रह्म कहते हैं , लेकिन मूल तत्त्व जैसे महत्तत्त्व , तीन अहंकार और 05 तन्मात्र रहते हैं । 
4- प्राकृतिक प्रलय : अहंकार ( तीन ) , महत्तत्त्व और 05 तन्मात्र अपनें मूल प्रकृति में समा जाते हैं ,यह प्रलय ब्रह्माके मानसे 100 वर्ष बाद होती है या मनुष्यके हिसाबसे जब 02 परार्ध समय गुजर जाता है यब यह प्रलय आती है ।
 * प्राकृतिक प्रलयका विस्तार : 1- ब्रह्माण्ड सथूल रूप को छोड़ देता है और कारण रूप में स्थिर रहता है । 2- 100 वर्ष तक पानी नहीं बरसता ,सूर्य पृथ्वीके रस को चूसता रहता है । 3- सर्वत्र अग्नि ही अग्नि होती है । 4- वायु का बेग तीब्र रहता
 है ।
 इसके बाद :---
 1- रंग -बिरंगे बादल उठते हैं , 100 वर्ष तक लगातार वारिश होती रहती है । 2- सारा ब्रह्माण्ड जल मग्न होता है । 3- जल पृथ्वी के गुण गंध को ले लेता है और पृथ्वी जल में बिलीन हो जाती है । 4- जलके गुण रसको तेज ले लेता है और जल नीरस हो जाता है । 5- वायु तेज के गुण रूप को ले लेता है और तेज वायु में समा जाता है । 6- आकाश वायु के गुण स्पर्श को ले लेत है और वायु आकाश में समा जाती है । 7- तामस अहंकार आकाश के गुण शब्द को ले लेत है और आकाश तामस गुण में समा जाता है । 8- इस प्रकार तीन अहंकार महत्तत्वमें समा जाते हैं , महत्तत्त्व को तीन गुण ,तीन गुण को मूल प्रकृति ग्रस लेती है और प्रकृति ब्रह्म में लीन हो जाती है , इस प्रकार जो होता है वह ब्रह्म होता है ।
 * भागवत स्कन्ध 12 , अध्याय -5 में शुकदेवजीका अंतिम उपदेश है और यहाँ मूल भागवत का समापन हो जाता है । 
# मन आत्माके लिए शरीर , विषय और कर्मों की कल्पना करता है । 
# मन मायाकी रचना है ।माया तीन गुणों के माध्यम का नाम है । माया पर काल का प्रभाव तीन अहंकारों को जन्म देता है जिसमें सात्विक अहंकार से मन की उत्पत्ति होती है। 
# माया संसार चक्रसे जोड़ कर रखती है ।
 ~~~ ॐ ~~~

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