Tuesday, January 14, 2014

भागवत कथा सार - 11.4

● भागवत - 11.4 ● 
 सन्दर्भ - अध्याय -10 से 14 तक ।।
 <> यहाँ भागवत स्कन्ध -11के अध्याय 10 तकका सार तथा अध्याय 14 तकके मूल सूत्रों को दिया जा रहा है जिससे भागवतके इस अंशको समझनें में कठिनाई न हो । 
# एक पल जरा सोचना - एक सोलह साल का युवक , शुकदेव, 60 सालसे अधिक उम्र वाले सम्राट परीक्षितको उनके मृत्युके समय उनके दादाके युगकी कथाको सूना रहे हैं , जबकि उस समयके लोग अभीं हस्तिनापुर में हैं , क्या यह बात अभीं इतनी पुरानी दिखती है जिसके आधार पर इसे कथा रूपमें स्वीकारा जा सके , अब आगे :---
 ** द्वारकाका अंत जब समीप आया तब नारद जी वहाँ पहुंचे, बसुदेव जी को उपदेश दिया । नारदके बाद ब्रह्मा ,महादेव इंद्र आदि देव भी वहाँ पहुंचे । ब्रह्मा प्रभुसे प्रार्थना रुपमें कह रहे हैं कि आपको आये 125 साल हो गए हैं , अब आपको स्वधाम जाना चाहिए , वहाँ हम सबको आपकी जरुरत है ।यह बात साकार कृष्ण के सम्बन्ध में तो ठीक नज़र आती है पर सर्व ब्याप्त निराकार कृष्णके लिए कुछ कमजोर सी लगती है । 
** कृष्ण -उद्धव वार्ताके अंतर्गत सम्राट यदु और दत्तात्रेयजी की वार्ताके रूप में अवधुतोपाख्यान रूपमें कृष्ण उद्धवको बता रहे हैं :--- # पृथ्वीसे कबूतर तक , 08 गुरुओंकी कथा ।
 # अजगरसे पिंगला तक ,09 गुरुओंकी कथा। 
 # कुररसे भृंगी तक ,07 गुरुओं की कथा । 
---अर्थात --- 
** कुल 24 गुरुओंसे दत्तात्रेय जी शिक्षा ग्रहण की थी और दत्तात्रेय जी को 06वाँ अवतार माना गया है । यहाँ दत्तात्रेय जी द्वारा सम्राट यदु को दिया गया ज्ञान , कृष्ण उद्धव को दे रहे हैं । <> अब आगे अध्याय 10-14 तकके मूल सूत्रोंका सार देखते हैं ।
 * अध्याय -13 तक कृष्ण उद्धव को उपदेश देते हैं और अध्याय 14 में उद्धव जी भक्ति योगके सम्बन्धमें आसक्ति रहित मनकी बात प्रभुसे स्पष्ट करवा रहे हैं ।
 <> आइये ! अब हम चलते हैं आगे <>
 * आत्मा सूक्ष्म - स्थूल देह नहीं , स्व प्रकाशित सबका साक्षी है । * सूक्ष्म - स्थूल शरीर मायासे माया में हैं ।
 * जन्म -मृत्यु में सीमित संसारका रूप अज्ञान से है ।
 * मैं - मेरा की सोच आत्माकी अनुभूति से दूर रखती है । 
* गुण और मायाको अलग -अलग देखना भ्रम है , गुण मायामूलक हैं । 
* बोधी गुणोंको करता देखता है । 
* सत्संगसे आसक्ति कमजोर होती रहती है ।
 * सात्विक गुणमें बनें रहना साधना है ।
 * हंस सतयुग में एक वर्ण था । 
* जगत मनका विलास है । 
* ब्रह्मा अपनें जेष्ठ पुत्र स्वायम्भुव मनुको शिक्षा दी , मनु से सात प्रजापति महर्षियों ( भृगु , अंगीरा ,मरीचि ,पुलह , अत्रि ,
 पुलस्त्य , क्रतु ) को ज्ञान मिला और इनसे इनकी संतानों , देवता , दानव , मनुष्य ,सिद्ध , गन्धर्व , विद्याधर , चारण , किम्देव 
( इनके देह से कोई गंध नहीं निकलती अतः ये देव हैं या मनुष्य , यह समझना कठिन हो जाता है ) को ज्ञान मिला और किन्नर
 (देह से मनुष्य जैसे पर मनुष्य नहीं ) , नाग , राक्षस , किम्पुरुष ( मनुष्य जैसे बानर जैसे हनुमान जी जैसे लोगों को उपर बताये लोगों से ज्ञान मला । 
* कर्म बंधन मुक्त ब्यक्ति में मैं और मेराका अभाव होता हूँ । 
* समदर्शी केलिए यह ब्रह्माण्ड आनंदमय है। 
* प्रभुके प्रति श्रद्धा जितनी मजबूत होती जाती है , इन्द्रियोंकी पकड़ कमजोर होती जाती है ।
 * भक्ति आत्माको निर्मल बनाए रखती है । 
* इन्द्रिय नियोजन बुद्धिसे नहीं मन से होना चाहिए । 
~~ ॐ ~~

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