Friday, January 10, 2014

भागवत कथा - 11.3

● भागवत स्कन्ध - 11.3● 
सन्दर्भ : अध्याय - 06 से 09 तक ।
 <> द्वारका अंत के सम्बन्ध में 1.15 से 30 श्लोक + 11.1एवं 11.6 से 74 श्लोक तथा 11.30 और 11.31से 78 श्लोक अर्थात भागवत से कुल 182 श्लोक ,यदुकुल एवं द्वारका अंत से सम्बंधित हैं , एक साथ देखें।
 * द्वारका और यदु कुलके अंतका समय जब आया तब द्वारका प्रभु से मिलनें 11 ऋषि लोग पधारे ( विश्वामित्र , असित , 
कण्व , दुर्बासा , भृगु , अंगीरा , कश्यप , वामदेव , अत्रि , वसिष्ठ और नारद ) । यह ऋषि समूह प्रभु से मिल कर द्वारकाके पास स्थित पिंडारक क्षेत्रमें रुका हुआ था ।इन ऋषियों में कश्यप , अत्रि ,वसिष्ठ , विश्वामित्र वर्तमान मन्वन्तर में सप्त ऋषियों में हैं और अन्य सप्त ऋषियों में भरद्वाज , गौतम और परसुराम के पिता जमदग्नि हैं ।
 * जाम्बवती नंदन ( कृष्ण के पुत्र ) अपनें अन्य यदुकुलके मित्रोंके साथ स्त्री रूपमें ऋषियोंके पास गए और पूछा - हे ब्राह्मण देव ! आप लोग यह बतायें कि इस स्त्रीसे पुत्र या पुत्रीका जन्म होगा ? ऋषियोंसे किया गया यह मजाक यदुकुकके अंतका कारण बना जबकि अंत तो होना ही था । ब्रह्मा प्रभु को कहते हैं , प्रभु ! आपको पृथ्वी पर आये 125 वर्ष हो चुके हैं ,आप पाप - पापियों का अंत भी कर चुके ,अब आप को स्वधाम चलना चाहिए वहाँ हम सभीं को आपकी जरुरत है । प्रभु कहते हैं , मैं भी यही सोच रहा हूँ लेकिन अभीं यदुकुलका अंत शेष है ।यदुकुलका अंत द्वारका के पास समुद्र तट पर प्रभास क्षेत्र में हुआ जहाँ से पश्चिम दिशा में सरस्वती सागर से मिलती थी । यदुकुलके अंतका और प्रभुके स्वधाम गमनका समाचार प्रभु का सारथी दारुक द्वारका में बचे हुए लोगों तक पहुंचाया । प्रभु दारुक को बोले ,दारुक ! तूँ जा द्वारका और वहाँ लोगों को बता की आज से ठीक 7 दिन बाद द्वारका समुद्र में समा जानें वाला है अतः सभीं लोग अर्जुन के साथ तुरंत इंद्रप्रस्थ चले जाएँ और ऐसा ही हुआ था ।
 * अध्याय -7 से 9 तक > पृथ्वी से कबूतर तक आठ गुरुओं की कथा ,प्रभु यदुकुल के अंत के समय पीपल पेड़ के नीचे सरस्वती नदी के तट पर अपनें मित्र उद्धव को अवधूतोपाख्यान के रूप में सुना रहे हैं ।
 ° प्रभु उद्धवको यह कथा बता रहे हैं उस समय जब द्वारकाका अंत 07 दिन बाद होना है , प्रभु कहते हैं : 
 > मनका विचार इन्द्रितोंसे व्यक्त किया जाता है जो अनित्य और नाशवान होता है और जो मनका विलास है । जगतकी घटनाओंके प्रति जो होशमय है ,वह वासना रहित होता है । 
 > राजा यदु और दत्तात्रेयके मध्य हुयी वार्ताको कृष्ण उद्धवको सुना रहे हैं ।राजा यदु प्रश्न करते हैं ,आप कर्म तो करते नहीं फिर इतनी तीब्र बुद्धि कैसे है ? दत्तात्रेयजी कहते हैं ,मेरे 24 गुरु हैं जैसे पृथ्वी,जल ,वायु ,अग्नि ,आकाश , चन्द्रमा ,सूर्य , कबूतर ,अजगर , समुद्र , पतंगा , भौरा , हांथी ,शहद निकालनें वाला , हरिन , मछली , पिंगला, वेश्या , कुरर पक्षी , बालक , कुवारी कन्या , बाण बनानेवाला , सर्प ,मकड़ी , भृंगी कीट ।
 * पृथ्वीसे धर्य - क्षमा , वायुसे अनासक्त रहना , वायुका गुण गंध नहीं पर गंध धारण करता है पर उससे अशुद्ध नहीं होता । 
 * जल स्वक्षताका प्रतिक है । सूर्य पृथ्वी से किरणों से जल खीचता है और पुनः उसे पृथ्वी को दे देता है वैसे योगी इन्द्रियों से बिषयों को ग्रहण करता है और समय आनें पर उनका त्याग भी करता है । कबूतरसे आसक्ति के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त करता हूँ । कबूतर की अपनें परिवार की आसक्ति उसके मौतका कारण बनती है । 
* अजगरसे चाह रहित भोजन करनें की बात मुझे मिली । समुद्रसे गंभीरता और शांतपनकी बात मुझे मिली । पतिंगेसे यह मिला की रूप रंगका आकर्षण उसे अग्नि में पहुंचता है। भौरे से मुझे ज्ञान मिला कि एक पर बोझ बन कर न रहो टुकड़े -टुकड़े इकठ्ठा करो और भोजन जी जरुर की पूर्ति करो ।हांथी से यह शिक्षा मिली कि कभी भूल कर लकड़ी की भी औरत के संपर्क में न रहो । 
* हिरन से यह मिला की भूल कर भी बिषय सम्बंधित संगीत को न सुनो । 
 ~~ ॐ ~~

No comments:

Post a Comment