Sunday, August 11, 2013

श्रीमद्भागवत से ----[ 01 ]

रास और महारास भाग - 01 

सन्दर्भ : भागवत > 10.20 - 10.22 , 10.29 - 10.33 , भागवत द्वितीय खंड महात्म्य 

भागवतके 08 अध्यायों एवं भागवत महात्म [ भागवत खंड - 02 ] के 181 श्लोकों का सार :---
यहाँ आप बुद्धि स्तर पर उसकी एक झल्लाक देखनें जा रहे हैं जो बुद्धिके परे की अनुभूति है /
क्या है रास और महारास ?

युधिष्ठिर को जब  प्रभुके  परम धाम यात्राका पता चला तब युधिष्ठिर बज्रनाभको  मथुरा एवंम शूरसेन मंडलका  राजा बनाया औरअभिमन्युके पुत्र परीक्षितको हस्तिनापुरका सम्राट बना कर अपनें भाइयोंके साथ हिमालय पर स्वर्गारोहण यात्रा पर निकल पड़े / बज्रनाथ प्रभु श्री कृष्णके प्रपौत्र थे / 

परीक्षित जी बज्रनाभ से मिलनें मथुरा आये और बज्रनाभ मथुराकी स्थितिका वर्णन करते हुए दुःख जताया / बज्र नाभ कहते हैं , मैं राजा तो मथुरा  मंडल का हूँ , यह बात तो मैं समझता हूँ लेकिन अब मथुरा मंडल नाम ही नाम है , पता नहीं यहाँके लोग , बंदर , पेड़ - पौधे , झरनें और गौवें आदि कहाँ चले गए , यह मंडल तो एक वीरान धरती है / परीक्षित बज्रनाभ के प्रश्न का समाधान शांडिल्य ऋषिसे करवाते हैं /

पूर्णावतार प्रभु श्री कृष्ण द्वापरके आखिरी चरणमें लगभग 125 वर्षों तक देव , दानव , असुर , पशु , जड़ और चेतनकके साथ जो कुछ भी लीला रूपमें दिखाया वह कलियुग में रख रहे मनुष्योंके लिए एक ऎसी झलक थी जिसकी स्मृति कलियुगके प्रारंभिक चरण में अपना चरण रख रहे लोगोंको कलियुगकके सम्मोहन से दूर रख सकता है / 

शांडिल्य ऋषि बज्रनाभ को सलाह दिए कि राजन जहाँ - जहाँ आप के दादाजी लीला , रास लीला किया है वहाँ - वहाँ आप अपनी छावनियां बनवायें और उन स्थानों को बसाएं / परीक्षित इन्द्रप्रष्ठ से ब्यापारियोंको , बंदरोंको और अन्य लोगों को मथुरा भेजा , मथुरा को पुनः बसानें हेतु /

प्रभुके जब परम धाम जानें का समय  आया तो वे पहले अपनें पार्षधोको स्वर्ग भेज दिया और जो उनके अनन्य प्रेमी थे जो मथुरा मंडल में थे , पहले तो उन सबको द्वारका पहुंचाए और जब द्वारका का अंत होनें का समय आया तब उन सब को उनके मूल स्थानों को भेज दिया और अंत में स्वयं अपनें मूल निवास परम  धाम की यात्रा पर चल पड़े / 

प्रभुके परम धाम जानें का जब समय आया तब उनसे मिलनें  उस समय के सिद्ध 11 ऋषियों का एक दल द्वारका पहुंचा था / ऋषियों और प्रभुके मध्य क्या वार्ता हुयी , यहाँ उसे ब्यक्त करना कठिन है लेकिन उस दिनसे ठीक सात दिन बाद न द्वारका रहा , न यदुकुल रहा , द्वारका समुद्र में एक टापू था जिसका क्षेत्र फल था लहभग 90 वर्ग
 मील , जिए सागर अपनें में छिपालिया / 

मथुरा मंडल क्यों और कैसे रिक्त हुआ ? इस प्रश्न का उत्तर अगले अंक में आप देख सकेंगे /

==== ओम् =======

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