भागवत में गंगा जी
भागवत में गंगाका सन्दर्भ : 9.8 + 9.9 + 5.16 + 5.17
पहले दो बातें :
1- हरिद्वारके बाद गंगा सागर तक की यात्रामें से यदि प्रयाग और काशी को हटा कर देखें तो गंगा एक साधारण नदी के रूप में दिखती हैं
2- गंगा की 2525 Km की यात्रा में मात्र 12नदियाँ गंगासे मिलती हैं जिनमें 04 दाहिनें तट की ओर और अन्य 08 बाएं तट की ओर से / जो नदियाँ गंगा की सहायक नदियाँ हैं उनमें से अधिकाँश ऐतिहासिक नदियाँ हैं जैसे
गंडकी , गोमती , यमुना , पुनपुन , कोशी और महानंदा आदि /
अब भागवत से -----
त्रिशंकुका नाम सभीं जानते हैं ; कहते हैं त्रिशंकु न स्वर्ग में हैं न मृत्यु लोकमें अपितु ये अंतरिक्ष में लटक रहे हैं जिनका सर नीचे पृथ्वी को देख रहा है और पैर ऊपर स्वर्ग जाना चाहते हैं / त्रिशंकू के बंश में हरिश्चंदके बाद आठवें सम्राट हुए सम्राट सगर/ सम्राट सगर अश्वमेघ यज्ञ हेतु घोड़ा भेजा था जिसको इन्द्र चुरा कर आज के गंगा सागर पर छिपा दिया था जहाँ उस संमय सिद्ध योगी कपिल जी तप कर रहे थे / कपिल जी को पाँचवाँ विष्णु का अवतार कहा जाता है और गीता में कृष्ण कहते भी हैं कि सिद्धानां कपिलः अहम् अर्थात सिद्ध योगियों में कपिल मुनि मैं हूँ / कपिल जी का आश्रम सरस्वतीके तट पर विन्दुसर था जो द्वापर का तीर्थ तो था ही आज भी तीर्थ है / विन्दु सरोवर पांच पवित्र सरोवरों में से एक है जो कपिल जी के पिता कर्मद ऋषि का आश्रम था और इस स्थान पर कर्मद ऋषि 10,000 वर्ष तप में गुजारे थे / सगरके पुत्र घोड़ा खोजते खोजते वहाँ पहुंचे और सोचा कि यह योगी जो ध्यान में है , हो न हो हमारे घोड़े को यहाँ छिपा रखा हो और इस भ्रान्ति में वे सभीं कपिल को बिना समझे बुरा भला कहनें लगे और उनको मारनें पर भी उतर आये / कपिल जी समभाव योगी थे , उनके आँख खुलते ही वे सभीं सगर के पुत्र वहीं जल कर राख हो गए /
सगरके पौत्र थे अंशुमान जो जन्म से सिद्ध थे , सगर अंशुमान को घोड़ा खोजनें हेतु भेजा , वे गए और घोड़ा ले आये / अंशुमान ज्यों ही कपिल के ऊर्जा क्षेत्र में पहुंचे , कपिल की ऊर्जा उनको अपनी ओर खीच ली और वे झुक कर प्रणाम किया और वहीं बैठ गए /
एक अवतार और एक अवतार को समझनें वाला सिद्ध योगी आमनें सामनें थे कुछ पल के लिए / कपिल अंशुमान को बोले , अंशुमान ! इन लोगों का उद्धार तब होगा जब गंगा का जल इन पर पडेगा /
अंशुमान , अंशुमन के पुत्र दिलीप तप किये गंगा को लानें हेतु लेकिन सफल न हो सके लेकिन दिलीप के पुत्र भगीरथ सफल हुए और गंगा को ले आये / आगे आगे भगीरथ चल रहे थे और पीछे पीछे गंगा चल रही थी , गंगा सगर के पुत्रों के राख के ढेर के ऊपर से होती हुयी सागर से जा मिली / आज गंगा सागर संगम तीर्थ है /
गंगा भगीरथ से एक प्रश्न किया था आनेंसे पहले जो महत्वपूर्ण है और इस प्रकार से है -----
गंगा कहती हैं .....
लोग अपनी गन्दगी मुझ में धोयेंगे लेकिन मैं निर्मल कैसे होउंगी ?
भागीरथ बोले ...
आप के तट पर अनेक सिद्ध योगी तप करते होंगे उन लोगों के स्पर्श से आप सदैव पवित्र बनी रहेंगी /
गंगा जम्बू द्वीप के मध्य में स्थित इलाबृत्तवर्ष के मध्य में स्थित मेरु पर्वत पर उतरी और चार भागों में विभक्त हो गयी , इस प्रकार -----
* भद्रा के रूप में उत्तर दिशा में चल पडी जो रम्यक एवं हिरण्य वर्षों तथा नील , श्वेत और श्रृंगवान पर्वतों को पार करके कुरु होती हुयी सागर से जा मिलती हैं
** अलखनंदा के रूप में दक्षिण दिशा में बहती हुयी निषध , हेमकूट और हिमालय पर्वत को पार करती हुयी और हरिवर्ष , किम्पुरुष वर्षों को पार करती हुयी भारतवर्ष में प्रवेश करती हैं /
*** सीता के रूप में मेरु पर्वत से चल कर गंध मादन पर्वत से होती हुयी भद्राश्ववर्ष से हो कर सागर में मिलती हैं
**** चक्षु के रूप में पश्चिम दिशा में चल कर केतुमाल वर्ष और माल्यावान पर्वत से हो कर सागर से मिलती हैं /
> हिमालय के उत्तर में तीसरा पहाड है मेरु जो जम्बू द्वीप का केन्द्र है
> हिमालय के उत्तर में छठवांवर्ष है कुरु जो जम्बू द्वीप का आखिरी वर्ष है
> हिमालय के दक्षिण में एक वर्ष है भारत
ऊपर दी गयी सूचनाएं शोध के बिषय हैं
=== ओम् =======
भागवत में गंगाका सन्दर्भ : 9.8 + 9.9 + 5.16 + 5.17
पहले दो बातें :
1- हरिद्वारके बाद गंगा सागर तक की यात्रामें से यदि प्रयाग और काशी को हटा कर देखें तो गंगा एक साधारण नदी के रूप में दिखती हैं
2- गंगा की 2525 Km की यात्रा में मात्र 12नदियाँ गंगासे मिलती हैं जिनमें 04 दाहिनें तट की ओर और अन्य 08 बाएं तट की ओर से / जो नदियाँ गंगा की सहायक नदियाँ हैं उनमें से अधिकाँश ऐतिहासिक नदियाँ हैं जैसे
गंडकी , गोमती , यमुना , पुनपुन , कोशी और महानंदा आदि /
अब भागवत से -----
त्रिशंकुका नाम सभीं जानते हैं ; कहते हैं त्रिशंकु न स्वर्ग में हैं न मृत्यु लोकमें अपितु ये अंतरिक्ष में लटक रहे हैं जिनका सर नीचे पृथ्वी को देख रहा है और पैर ऊपर स्वर्ग जाना चाहते हैं / त्रिशंकू के बंश में हरिश्चंदके बाद आठवें सम्राट हुए सम्राट सगर/ सम्राट सगर अश्वमेघ यज्ञ हेतु घोड़ा भेजा था जिसको इन्द्र चुरा कर आज के गंगा सागर पर छिपा दिया था जहाँ उस संमय सिद्ध योगी कपिल जी तप कर रहे थे / कपिल जी को पाँचवाँ विष्णु का अवतार कहा जाता है और गीता में कृष्ण कहते भी हैं कि सिद्धानां कपिलः अहम् अर्थात सिद्ध योगियों में कपिल मुनि मैं हूँ / कपिल जी का आश्रम सरस्वतीके तट पर विन्दुसर था जो द्वापर का तीर्थ तो था ही आज भी तीर्थ है / विन्दु सरोवर पांच पवित्र सरोवरों में से एक है जो कपिल जी के पिता कर्मद ऋषि का आश्रम था और इस स्थान पर कर्मद ऋषि 10,000 वर्ष तप में गुजारे थे / सगरके पुत्र घोड़ा खोजते खोजते वहाँ पहुंचे और सोचा कि यह योगी जो ध्यान में है , हो न हो हमारे घोड़े को यहाँ छिपा रखा हो और इस भ्रान्ति में वे सभीं कपिल को बिना समझे बुरा भला कहनें लगे और उनको मारनें पर भी उतर आये / कपिल जी समभाव योगी थे , उनके आँख खुलते ही वे सभीं सगर के पुत्र वहीं जल कर राख हो गए /
सगरके पौत्र थे अंशुमान जो जन्म से सिद्ध थे , सगर अंशुमान को घोड़ा खोजनें हेतु भेजा , वे गए और घोड़ा ले आये / अंशुमान ज्यों ही कपिल के ऊर्जा क्षेत्र में पहुंचे , कपिल की ऊर्जा उनको अपनी ओर खीच ली और वे झुक कर प्रणाम किया और वहीं बैठ गए /
एक अवतार और एक अवतार को समझनें वाला सिद्ध योगी आमनें सामनें थे कुछ पल के लिए / कपिल अंशुमान को बोले , अंशुमान ! इन लोगों का उद्धार तब होगा जब गंगा का जल इन पर पडेगा /
अंशुमान , अंशुमन के पुत्र दिलीप तप किये गंगा को लानें हेतु लेकिन सफल न हो सके लेकिन दिलीप के पुत्र भगीरथ सफल हुए और गंगा को ले आये / आगे आगे भगीरथ चल रहे थे और पीछे पीछे गंगा चल रही थी , गंगा सगर के पुत्रों के राख के ढेर के ऊपर से होती हुयी सागर से जा मिली / आज गंगा सागर संगम तीर्थ है /
गंगा भगीरथ से एक प्रश्न किया था आनेंसे पहले जो महत्वपूर्ण है और इस प्रकार से है -----
गंगा कहती हैं .....
लोग अपनी गन्दगी मुझ में धोयेंगे लेकिन मैं निर्मल कैसे होउंगी ?
भागीरथ बोले ...
आप के तट पर अनेक सिद्ध योगी तप करते होंगे उन लोगों के स्पर्श से आप सदैव पवित्र बनी रहेंगी /
गंगा जम्बू द्वीप के मध्य में स्थित इलाबृत्तवर्ष के मध्य में स्थित मेरु पर्वत पर उतरी और चार भागों में विभक्त हो गयी , इस प्रकार -----
* भद्रा के रूप में उत्तर दिशा में चल पडी जो रम्यक एवं हिरण्य वर्षों तथा नील , श्वेत और श्रृंगवान पर्वतों को पार करके कुरु होती हुयी सागर से जा मिलती हैं
** अलखनंदा के रूप में दक्षिण दिशा में बहती हुयी निषध , हेमकूट और हिमालय पर्वत को पार करती हुयी और हरिवर्ष , किम्पुरुष वर्षों को पार करती हुयी भारतवर्ष में प्रवेश करती हैं /
*** सीता के रूप में मेरु पर्वत से चल कर गंध मादन पर्वत से होती हुयी भद्राश्ववर्ष से हो कर सागर में मिलती हैं
**** चक्षु के रूप में पश्चिम दिशा में चल कर केतुमाल वर्ष और माल्यावान पर्वत से हो कर सागर से मिलती हैं /
> हिमालय के उत्तर में तीसरा पहाड है मेरु जो जम्बू द्वीप का केन्द्र है
> हिमालय के उत्तर में छठवांवर्ष है कुरु जो जम्बू द्वीप का आखिरी वर्ष है
> हिमालय के दक्षिण में एक वर्ष है भारत
ऊपर दी गयी सूचनाएं शोध के बिषय हैं
=== ओम् =======
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