Wednesday, November 28, 2012

गीता कहता है - 02

राजस गुण के तत्त्वों पर ध्यान करो :

1- गीता 14.7 आसक्ति , कामना , राग एवं रूप का आकर्षण राजस गुण से हैं
2- गीता 14.12 लोभ राजस गुण का तत्त्व है
3- गीता 4.10   राग , भय , क्रोध से अप्रभावित ज्ञानी होता है
4- गीता 2.56   राग , भय , क्रोध से अछूता स्थिर प्रज्ञ समभाव योगी होता है
5- गीता 3.34   सभीं पांच बिषयों में राग - द्वेष की ऊर्जा होती है
6- गीता 2.64   राग - द्वेष से अछूता अनन्य भक्ति में होता है
7- गीता 2.65   राग - द्वेष रहित प्रभु प्रसाद स्वरुप परम आनंद में रहता है
8- गीता 6.27   राजस गुण से अप्रभावित ब्रह्म मय होता है
9- गीता 3.37   काम का रूपांतरण ही क्रोध है और काम राजस गुण से है
=== ओम् ======

2 comments:

  1. गीता कहता नही है, कहती है..........

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  2. कहता है और कहती है की उलझन में शांति की छाया तक नहीं पड़ती । गीता संबाद है एयर मेरे लिए संबाद पुलिंग है ।

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