धर्म के सम्बन्ध में कुछ बातों को यहाँ दिया जा रहा है संभवतः जन बातों को देखने और समझने से हमारी पूर्व की सोच में कुछ परिवर्तन आ सके !
धर्म और धारणा जा एक मूलः है । धारणा अष्टांगयीग का छठवां अंग है जिसकी परिभाषा में महर्षि पतंजलि कहते हैं - किसी एक सात्त्विक आलंबन से चित्त को बाध देना , धारणा है - देश बंध : चित्तस्य धारणा ( पतंजलि योगसूत्र विभूति पाद - 1 )
अब इस परिभाषा के साथ निम्न दो स्लाइड्स में दी जा रही सूचनाओं को आप देखें और उन पर चिंतन करें ⬇️
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