Saturday, July 5, 2014

भागवत की तीन नदियाँ

<>भागवत की तीन  नदियाँ <> 
1- पुष्पभद्रा नदी 2- सरस्वती नदी 3- इक्षुमती नदी ।
 1- पुष्पभद्रा नदी सन्दर्भ : भागवत : 12.8.17+12.9.7 * हिमालय के उत्तर में यह नदी हुआ करती थी । इस नदीके तट पर भृगु बंशके ऋषि मृकाण्डा ऋषि के पुत्र मार्कंडेय ऋषि का आश्रम हुआ करता था ।आश्रम के पास चित्रा नाम की एक शिला थी । नदी की घाटी में गणेश जी का सर प्रभु शिव काटे थे और उस जंगलके एक हांथीके सरको काट कर उस हांथीके सरको गणेशके देहके साथ जोड़ा था । 
2- सरस्वती नदी : सन्दर्भ : भागवत : 1.3.10 + 1.7.1-8 +2.7.3 + 3.6.1-2+3.21.6+3.21.33+3.2138 3.24.9-10+4.19.1+9.14.32-35 +10.34 + 11.3.27+11.30.6 *
भागवत 10.34 में कहा गया है - शिव रात्रि के दिन नन्द समुदाय अम्बिका बन की यात्रा किया , वहाँ सरस्वती में स्नान करके शिव - पार्वती की पूजा किया ।वहाँ प्रभु शंख चूड अजगर का उद्धार किया जो नन्द को निगलना चाह रहा था । महाभारत युद्ध के समय पांडव सेना सरस्वती नदी के पश्चिमी तट पर ठहरी थी । राजा पुरूरवा और उर्बशी का मिलन सरस्वती नदी के तट पर कुरुक्षेत्र में हुआ था ।यह नदी ब्रह्मावर्त क्षेत्र में पूर्वमुखी थी । वेद ब्यास का आश्रम सरस्वती नदी के पश्चिमी तट पर था जहां बेरों का जंगल होता था और साम्याप्रास आश्रम भी उसके पास में था जहाँ हर समय यज्ञ हुआ करते थे । कपिल मुनिके पिता कर्दम ऋषि का आश्रम विन्दुसर क्षेत्र में था जो सरस्वती नदी से घिरा हुआ क्षेत्र था तथा इस सरोवर में सरस्वती का जल भरा रहता था । कर्दम ऋषि का व्याह ब्रह्मावर्त के सम्राट स्वयंभू मनु की कन्या देवहूति से हुआ था । प्रभु कपिल विष्णुके पांचवें अवतारके रूपमें माँ देवहूतिके गर्भ से नौ बहनों के साथ पैदा हुए थे और सांख्य दर्शन का ज्ञान अपनीं माँ को विन्दुसर में दिया था ।कर्दम ऋषि ब्याह पूर्व 10000 वर्ष की तपस्या यहाँ पूरी की थी । विन्दुसर सदैव से तीर्थ रहा है जहाँ प्रभु विष्णु की करुणा भरी आंसूकी बूँदें कर्मद ऋषिके तपके सन्दर्भमें टपकी थी । प्रभास क्षेत्र पवित्र तीर्थ क्षेत्र होता था जहांसे समुद्र के अन्दर स्थित द्वारका ,नावोंके माध्यमसे जाया जाता था । प्रभास क्षेत्रमें यदु बंशका अंत हुआ था और प्रभु उस समय यहाँ सरस्वती नदी के तट पर एक पीपल पेड़के नीचे बैठे थे और वहीं से वे परम धाम गए । प्रभास क्षेत्रके पश्चिममें सरस्वती सागर में गिरती थी ।
3- इक्षुमती नदी : सन्दर्भ : भागवत : 5.10 *
सिन्धु सौबीर का राजा रहूगण इक्षुमती नदी पार जा रहा था । नदी के तट पर जड़ भरत एक साधारण ब्यक्तिके रूपमें राजाको सांख्य योग का ज्ञान दिया । कहीं यह भी मिलता है कि इक्षुमती कुरुक्षेत्र से सिंध की ओर लगभग सरस्वती के समानांतर बहती थी । कपिलजीका आश्रम विन्दुसर - क्षेत्र एक तरफ सरस्वती नदी और दूसरी तरफ इक्षुमती से घिरा हुआ था । नेपाल के प्राचीनतम इतिहास में तिब्बत की ओर से इस नदी के आनें की बात भी मिलती है । 
~~ ॐ ~~

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