Tuesday, July 15, 2014

भागवत से - 18

●● कपिल मुनि और विन्दुसर तीर्थ ●● 
** सन्दर्भ : भागवत : 2.7+3.213.25+3.33+4.1+4.19+8.1, गीता - 10.26
**  कर्मद ऋषि ,स्वायम्भुव मनुकी पुत्री देवहुती , पांचवें अवतारके रूपमें कपिल मुनि और विन्दुसर क्षेत्रका गहरा सम्बन्ध है । कर्मद ऋषिकी पत्नी थी देवहूति और कपिल मुनि इनके पुत्र 
थे । विन्दुसर कर्मद जीका आश्रम था । गीता में कृष्ण अर्जुन से कहते हैं सिद्धानां कपिलः मुनिः अहम् (गीता -10.280) । 
●● कहाँ हैं विन्दुसर ? गुजरात में ( नगवासन , सिधिपुर ,पाटन ) उदयपुर -अहमदाबाद मार्ग पर अहमदाबाद से 130 किलो मीटर दूरी पर विन्दुसर है । सिधिपुरका सन्दर्भ एक तीर्थके रूप में ऋग वेदमें भी है । विन्दुसरका मुकुट थी , सरस्वती नदी जो इसे तीन तरफ से घेरे हुए थी । विन्दुसर में सरस्वतीका पानी भरा रहता था । यहाँ कर्मद ऋषि अपनें ब्याह पूर्व 10000 वर्षका तप किया और नारायणका आशीर्वाद प्राप्त किया था।
 ** यह कथा सत्युगके प्रारम्भकी है और स्वयाम्भुव मनु तक 06 मनवन्तर बीत चुके थे ।कपिल मुनिका अवतार सांख्य दर्शनको फैलानें हेतु हुआ माना जाता है । कपिल की माँ देवहूतिके गर्भसे 09 कन्याओं एवं कपिल जी का जन्म हुआ जिनको पाँचवाँ अवतार माना जाता है । एक दिन देवहूति निर्वाण प्राप्ति हेतु अपनें पुत्र प्रभु कपिलसे इच्छा जाहिर की और कपिल जी इस सन्दर्भमें माँ को जो सांख्यका उपदेश दिया, उसका सार गीता के रो में प्रभु कृष्ण अर्जुन को दिया ।
 °° क्या है सांख्य -योग ? °°
 * हिन्दू परम्परामें न्याय , पूर्व मीमांस , वैशेशिका, योग , वेदान्त और सांख्य ये छ: आस्तिक मार्ग बताये गए हैं ।
 ●● गीताके 700 श्लोकों में प्रभुके 574 श्लोक हैं जिनमेंसे लगभग 100श्लोक सांख्य-योग पर आधारित हैं । गीता में मुख्यरूप से अध्याय 7,8,13,14 और15, में सांख्य -योग के सूत्र दिखाते हैं जहाँ प्रकृति -पुरुषके सअम्बंध में कुछ बातें हैं। गीताका आधार है बिषय , इन्द्रिय और मनको गुण तत्त्वोंके सम्मोहनके सन्दर्भ में समझना और गुण तत्त्वोंसे सम्मोहनके प्रति होश उपजाना। सांख्य एक निर्मल शुद्ध गणित जैसा माध्यम था लेकिन धीरे -धीरे इसे भी लोग जीनें नहीं दिए , इसे भी रूपांतरित किये बिना रुके नहीं । 
<> आत्मा और ब्रह्मका एकत्वकी अनुभूतिके गणित का नाम था सांख्य <> 
● स्वायम्भुव मनु ब्रह्माके आदेश पर अपनी पुत्री एवं पत्नी सतरूपा के संग विन्दुसरकी यात्रा की और कर्मद जी के साथ देवहूति का ब्याह कर दिया ।कर्मद अपनी पत्नी के सुख सुविधा हेतु विमान का आविष्कार किया । विमान बहुमंजली इमारत जैसी एक समुद्रिन्जहाज जैसी थी जिसमें सभीं सुख -सुविधाएं उपलब्ध थी । कर्मद दीर्घ काल तक मेरु की घाटी में भ्रमण करते रहे ।
 ●● कहाँ है मेरु पर्वत ? 
**  जम्बू द्वीप के मध्य में इलाबृत्त वर्ष होता था और उसके मध्य में मेरु मेरीपर्वत । मेरुके दक्षिण में निषध पर्वत , हरी वर्ष ,हेमकूट पर्वत ,किम्पुरुषवर्ष फिर हिमालय पर्वत और उसके दक्षिण में भारत वर्ष ।मेरुके उत्तर में क्रमशः नील पर्वत ,रम्यक वर्ष , श्वेत पर्वत , हिरण्यम देश फिर श्रृंगवान पर्वत और उत्तर कुरु वर्ष होता था ।कर्मद जी मानस सरोवर के क्षेत्र में भ्रमण किया ।
 ● विन्दुसर  तीन तरफ से सरस्वती से घिरा हुआ था और इसमें पानी सरस्वती से आता था । विन्दुसर से पृथुदक और पृथुदक से प्रभास क्षेत्र और प्रभास क्षेत्र के पश्चिम में सरस्वती सागर से मिलती थी । विन्दुसर से पहले सुदर्शन तीर्थ और उसके पहले विशाल तीर्थ पड़ता था । 
 ● स्वयंभुव मनुका राज्य यमुनाका तटीय प्रदेश होता था जहाँ वराह के रूप में ( दूसरा अवतार ) प्रभु पृथ्वी को रसातल से ऊपर लाये थे और इसकी राजधानी थी बहिर्षमति । अपनें अंत समय में स्वयंभुव मनु सुनंदा नदी के तट पर 100वर्ष तक एक पैर पर खड़ा रह कर तप किया था ।स्वयंभुव मनु की कन्याओं का ब्याह नौ ऋषियों से हुआ जो थे - भृगु ,मरीचि,अत्रि ,अंगीरा ,पुलस्त्य , पुलह ,क्रतु ,वसिष्ठ और अथर्वा । कपिलके सांख्यके माध्यमसे देवहूति निर्वाण प्राप्त किया और स्वयंभुव मनु बन में वैराग्य ले लिया और परम धाम की यात्रा किया ।
 ● क्या था कपिलका सांख्य-दर्शन ? ^ प्रभु से प्रभु में तीन गुणों का एक माध्यम है जिससे एवं जिसमें वह स्वयं है और यह ब्यक्त संसार है ।तीन गुणोंका माध्यम ही माया कहलाती है । ^ काल अर्थात समय प्रभुका ही दूसरा नाम है। ^ माया पर कालका प्रभाव तीन अहंकारोंको पैदा करता है । 1- सात्विक अहंकार पर कालका प्रभावके फलस्वरूप मन और 10इन्द्रियों के अधिष्ठाता देवताओं की उत्पत्ति होती है । 2- राजस अहंकार और काल से बुद्धि , प्राण और 10 इन्द्रियों का जन्म  होता है । 3- तामस अहंकार पर कालके प्रभावसे -- 3.1>तामस अहंकारसे कालके ओरभव में शब्द उपजता है। 3.2>शब्दसे आकाश महाभूतका जन्म होता है। क्योंकि आकाशका गुण है शब्द और शब्द बिषय है। 3.3>आकाशसे स्पर्श तन्मात्र पैदा होता है। 3.4>स्पर्शसे वायु महाभूतका जन्म होता है। 3.5>वायुसे रूप बिषय उपजता है । 3.6>रूप तन्मात्रसे तेज ( अग्नि )महाभूतकी उत्पत्ति होती है। 3.7>तेजसे रस बिषय उपजता है। 3.8> रससे जल महाभूतकी उत्पत्ती होती है। और जलसे गंध बिषय उपजता है। 3.9> गंध पृथ्वीका गुण है अतः गंधसे पृथ्वीकी उत्पत्ति होती है <> कपिल कहते हैं <>
 ** जो है वह सब माया और कालके कारण है। ** यह संसार और संसारकी ब्यक्त सभीं सूचनाएं पांच महाभूतों एवं पांच बिषयोंसे हैं और ----- 
** ये तत्त्व अहंकारके ऊपर पड़ी कालकी गतिसे हैं ।
 ** महत्तत्त्व शुद्ध चित्त है जिसे ब्रह्मके रूपमें अब्यक्त - अप्रमेय के रूप में समझा जा सकता है । 
---- ॐ ----

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