महान दार्शनिक सी जे जुंग कहते हैं , " 40 वर्ष की उम्र पर किये लोगों में शायद ही कोई ऐसा मिले जिसके अंदर किसी न किसी रूप में परमात्माके सोच का बीज न होता हो । परम से एकत्व होना , परामानांद है जिसकी तलाश हम बाहर करते - करते सारा जीवन योंही गुजार देते हैं जबकि उसकी अनुभूति तब होती है जब हम बाहर से अपनें अंदर की यात्रा करते हैं । बाहर से अंदर की यात्रा में 12 पड़ाव आते हैं जहाँ रुकना नहीं होता , जिसमें स्वयं को घुलाना होता है ।
आइये ! देखते हैं , इन पड़ावों को यहाँ 👇
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