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आनंद
गंगा -
घाट
:
सन्दर्भ
:
भागवत
प्रथम खंड ,
माहात्म्य
,
अध्याय
– 3,
सूत्र
– 3+4
“
गंगाद्वारसमीपे
,
तटम्
आनंद नामाकम् "
अब
आगे :---
भक्ति
, ज्ञान
और वैराज्ञ के उद्धार हेतु
नारद जी यज्ञ करना चाह रहे हैं
और सनकादि ऋषियों से उस स्थान
को जानना चाह रहे है ,
जहाँ
यह यज्ञ संपन्न की जा सके /
सनकादि
ऋषि कह रहे हैं ,
हे
ऋषिराज ! गंगा
द्वार के समीप गंगा तट पर आनंद
नाम का एक घाट है जहाँ अनेक
ऋषि , देव
एवं सिद्ध लोग निवास करते हैं
, वहाँ
कोमल बालू बिछी हुयी है और वह
क्षेत्र सघन जंगल का क्षेत्र
हैं जहाँ भांति -
भांति
के पेड़ एवं लताएँ हैं /इस
क्षेत्र में जो परस्पर बिरोधी
प्रबृत्ति के जीव रहते हैं
जैसे हांथी एवं सिंह आदि उनके
ह्रदय में भी वैरभाव देखनें
को नहीं मिलता /
अब
अप सोचें :----
[1]
गंगाद्वार
कहाँ है ?
[2]
गंगाद्वार
को यदि हरिद्वार माना जाए तो
ऋषिकेश से सुखताल [
मुजफ्फर
नगर ]
तक
गंगा के दोनों तटों पर यात्रा
करनी होगी ,
यह
समझनें के लिए कि यह आनंद आश्रम
द्वापर में कहाँ रहा होगा ?
[3]
उस
क्षेत्र में घोर जंगल होनें
की संभावना होनी चाहिए /
[4]
उस
क्षेत्र के जंगल में सिंह एवं
हांथी जैसे जीवों के होनें
की भी सम्भावना होतनी चाहिए
/
~~
चलिए
आप ऋषिकेश से हस्तिनापुर तक
की गंगा यात्रा पर ,
हम
फिर अगले अंक के साथ मिलेंगे
/
=== ओम् ====
सुन्दर सार्थक पोस्ट .आभार
ReplyDeleteहम हिंदी चिट्ठाकार हैं
भारतीय नारी