पात्र - परिचय
वेद ब्यासवेद ब्यास एक ऐसे बुद्धिजीवी द्वापर युग में पैदा हुए जिनका नाम सभीं 18 पुराणों से उनके लेखक के रूप में
जुड़ा है / सुधन्वा राजा शिकार खेलनें के लिए कहीं दूर जंगल में निकल गए थे / उनकी पत्नी रजस्वला हुयी और अपनें शिकारी पालतू पंक्षी से राजा को अपनें रजस्वला होनें का समाचार भेजा / रजस्वला स्त्री की एक दशा होती है जब वह मासिक धर्म से बाहर निकलती है / हर माह में स्त्री मासिक धर्म से गुजरती है और ठीक मासिक धर्म के बाद यदि वह स्त्री पुरुष के साथ सम्बन्ध बनाती है तो वह गर्भ धारण कर सकती है /
राजा सुधन्वा पेड़ के पत्तों से एक दोना बनाया और उस दोनें में अपना वीर्य रख कर उस पंक्षी के चोच में फसा दिया / दोना पेड़ों के पत्तों से कटोरे की आकृति जैसी एक रचना होती है जिसका प्रयोग आज भी किया जाता है /
वह शिकारी पंक्षी यमुना नदी के ऊपर से राज्य को वापिस लौट रहा था कि ऊपर आकाश - मार्ग में कोई और शिकारी पंक्षी से उसकी लड़ाई हो गयी /दूसरा पंक्षी दोनें में भोजन होनें की संभावना को देख रहा था // दोनों पंक्षियों में लड़ाई चल रही थी लेकिन वह दोना यमुना में गिर गया / यमुना में मछली रूप में एक अपसरा रहती थी जो उस वीर्य को निगल गयी / मछली को एक नाविक पकड़ा और उसके गर्भ से एक पुत्री और एक पुत्र
पैदा हुए / नाविक दोनों बच्चों को ले कर राजा सुधन्वा के पास गया / राजा की अपनी कोई औलाद न थी अतः उसने लड़के को अपने पास रख लिया /
पुत्री एक दिन नदी में नौका विहार कर रही थी जहाँ ऋषि पराशर ध्यान में मग्न थे / ऋषि जब उस कन्या को देखा तो वे काम - सम्मोहन में आ गए और उस कन्या एवं पराशर ऋषि के योग से जो पुत्र उत्पन्न हुआ , वह
वेद ब्यास के नाम से विख्यात हुआ /
सरस्वती नदी के पश्चिमी तट पर शाम्याप्रास नाम का एक आश्रम हुआ करता था जहाँ हर वक्त यज्ञ हुआ करते
थे ,उस आश्रम से पास में वेद ब्यास जी का अपना आश्रम हुआ करता था / इस स्थान के चरों तरफ बेरों का जंगल हुआ करता था /
इस कहानी में एक बात ध्यान के लिए है ----
" सरस्वती नदी के पश्चिमी तट पर "इस बात पर आप सोचें ,
अर्थात
- इस स्थान पर सरस्वती नदी दक्षिण से उत्तर की ओर बहा करती होगी
- इस स्थान पर बैर का जंगल था अर्थात यह इलाका राजस्थानी इलाका रहा होगा
- सरस्वती नदी कहाँ से निकलती थी और उसका मार्ग क्या था , कुछ कहना कठिन है लेकिन
- सरस्वती नदी अरब सागर में जहाँ मिलती थी वह स्थान उस स्थान के आस पास ही था जहाँ आज सिंध नदी सागर से मिलती है /
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