Wednesday, April 10, 2013

श्रीमद् भागवत पुराण [ भाग - 02 ]

कुछ प्रमुख पात्रों से परिचय [ 01 ] 

[क] द्रोणाचार्य 

कौरव और पांडवों के युद्ध - विज्ञान के गुरु श्री द्रोणाचार्य जी पांडव पक्ष में  युद्ध - विज्ञान के एक प्रमुख सलाहकार एवं वैज्ञानिक हैं / गीता श्लोक - 1.25 में संजय धृत राष्ट्र को बता रहे हैं कि अब श्री कृष्ण अर्जुन  के रथ को भीष्म और द्रोणाचार्य के सामनें खडा किया है ; कथा कुछ इस प्रकार से हैं : अर्जुन गए तो थे युद्ध में विजय प्राप्ति की उम्मीद से युद्ध करनें लेकिन वहाँ भारी जन समुदायको जब देखा [ जिनमें कोई बाहरी न था सभीं उनके परिवार के सगे सम्बन्धी थे ] तब वे मोह के सम्मोहन में आगये और अर्जुन के मोह कि शुरुआत गीता श्लोक - 1.22 से होती  है जो  सम्पूर्ण गीता में बनी रहती है / 

ऐसा कहा जाता है कि युद्ध प्रारम्भ होनें के ठीक पहले युधिष्ठिर जी भी अपना रथ भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के सामनें रोकवाया था और रथ से उतर कर दोनों को चरण स्पर्श किया और युद्ध विजय के लिए आशीर्वाद प्राप्त करनें की कामना की थी / युधिष्ठिर जी  के इस ब्यवहार को जब धृत राष्ट्र  के पुत्र युयुत्सु नें देखा तो अपनें को रोक न सका और पांडव सेना में जा मिला था / 

गंगा तट पर श्री भारद्वाज ऋषि ध्यान में डूबे हुए थे और जब सामनें एक अपसरा घृतार्ची को देखा तब उनके ऊपर काम का इतना गहरा सम्मोहन हुआ कि काम के बेग को सहन न कर पाए / ऋषि का वीर्य खलित हो गया और वे उस वीर्य को एक पात्र में रख दिया / कथा आगे कहती है कि कालान्तर में वही वीर्य द्रोणाचार्य का रूप लिया / 

काम - उर्जा को समझनें के लिए आप गीता में निम्न श्लोकों को देख सकते हैं :----
श्लोक - 3.37 - 3.43 तक + 5.23,5.26,7.11,10.28,14.12,16.21 

गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं , काम के सम्मोहन से मात्र वह बच सकता है जो आत्मा केंद्रित हो और ध्यान - योग में काम संसे मजबूत रुकावट है / 

आज के विज्ञान की दृष्टि से द्रोणाचार्य जि के जन्म से जुडी कहानी को आप देखें यदि आप  जीव विज्ञान में रूचि रखते हों / 

=== ओम् ====

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