गीताके 200 सूत्र
यहाँ इस श्रृखला मे देखिये निम्न सूत्रों को------
7.4 , 7.5 , 7.6 , 13.6 , 13.7 , 14.3 , 14.4 , 14.27 , 13.20 , 15.16
सूत्र 7.4 – 7.6तक
सूत्र कहते हैं ….
अपरा प्रकृत्ति के आठ तत्त्व;पञ्च महाभूत[प्रथ्वी,जल,अग्नि,वायु एवं आकाश] ,मन,
बुद्धि एवं अहंकार तथा परा प्रकृति[चेतना]ब्रह्म,आत्मा एवं प्रभु से जीव हैं/
सूत्र 13.6 , 13.7
यहाँ सूत्र कहते हैं …...
अपरा एवं परा प्रकृति,ब्रह्म,आत्मा-परमात्मा के साथ दस इन्द्रियाँ,पांच इन्द्रिय बिषय,
सभीं द्वैत्य,सभीं विकारों के साथ जीव शरीर के साथ हैं/
गीता सूत्र 14.3 – 14.4 , 14.27
ये सूत्र कहते हैं …..
ब्रह्म जो अब्यय है,शाश्वत है प्रभु के अधीन है वह जीव का बीज धारण करता है और
बीज स्वयं प्रभु हैं/
सूत्र 13 .20
प्रकृति-पुरुष का योग ही जीव है;दोनों सनातन शाश्वत हैं अनादि हैं,सभीं विकार प्रकृति से हैं/
सूत्र 15.16
क्षर एवं अक्षर दो प्रकार के पुरुष हैं;देह क्षर है और देह में आत्मा अक्षर है//
गीता के दस सूत्रों को आप गीता में देखें और …..
इन सूत्रों पर अपना मन एवं बुद्धि को केंद्रित करें//
धीरे-धीरे गीता के सूत्र आप के मन मे बसनें लगेंगे और आप
एक भोगी से योगी के रूप मे रूपांतरित होनें लगेंगे//
====ओम=====
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