गीता के दो सौ साधना सूत्रों की श्रृंखला में यह 26 वां सूत्र है ,
आइये देखते हैं … ..
सूत्र –5.3
ज्ञेयः स:नित्य संन्यासी
य:न द्वेष्टि न काङ्क्षति
निः द्वन्द्वः हि महाबाहो
सुखं बंधात प्रमुच्यते||
उसे संन्यासी कहना चाहिए जो----
द्वेष रहित हो
द्वंद्व रहित हो
कामना रहित हो
ऐसा योगी कर्म बंधनों से मुक्त खुश रहता है ||
He who neither loathes nor desires, unaffected by dualities , free from
bondage , is a true yogin and he remains happy under all circumstances.
==== ओम ========
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