Thursday, April 21, 2011


श्लोक – 27




गीता सूत्र – 6.2




गीता में प्रभु कह रहे हैं:


कर्म – योग एवं कर्म – संन्यास एक हैं


Lord Krishna says :


Karma – yoga and action renunciation both are same .


कर्म – योग और कर्म संन्यास दोनों एक कैसे हैं ?


कर्म क्या है ? पहले इसे समझना जरूरी है ; कर्म तीन प्रकार के होते हैं , सात्त्विक , राजस


एवं तामस . मनुष्य तन , मन एवं बुद्धि से जो कुछ भी करता है , उसे कर्म कहते हैं


गीता कहता है:


कोई भी जीवधारी एक पल के लए भी कर्म रहित नहीं रह सकता , कर्म तो करना ही है चाहे


करनें की चाह हो या न हो क्योंकि …....


कर्म मनुष्य नहीं करता , गुण मनुष्य से कर्म करवाते हैं जबतक मनुष्य के अंदर गुण हैं


तबतक मनुष्य कर्म रहित नहीं हो सकता


गीता आगे कहता है:


जब कर्म करना ही है तो जो तुमसे हो रहा है उसे योग में बदलनें की कोशीश करते रहो


अर्थात सामान्य कर्मो में योग साधना से गुजरो और तब --------


कर्म तो तुमसे होते रहेंगे लेकिन कर्म – तत्त्वों की पकड़ समात होनें लगेगी


कर्म में जब कम – तत्त्वों की पकड़ न हो तो वह कर्म निर्वाण का मार ्ग बन जाता है


गीता कहता है:


भोग भाव से कर्म को मुक्त रखना ही कर्म संन्यास है और …...


वह जो भावातीत में पहुंचाए उसे कहते हैं , कर्म


Gita says …..


Three natural modes compel beings to do work and hence beings are not the doers .


Beings could not be free from the modes and so could not be without action even for a moment .


No body could be free from action so long as he is in the body .


Gita further says :


The action done without any attachment , passion and ego leads to NIRVANA .


Gita ,s simple theory is ----


Action with desire and ego leads to HELL


Action without desire and ego leads to NIRVANA




======= ओम =========




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