भाग - 01
वेद क्या बताते हैं ?
श्रीमद्भागवत (11.17) तथा महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार ⤵️
आदि सतयुग के प्रारंभ में एक ही वेद था — जिसे प्रसव वेद कहा गया।
यह वेद श्रुति के रूप में स्वयं ऋषियों के हृदय में स्फूर्त होता था। यह वचन - उपासना की बुनियाद होता था।
यह वेद संपूर्ण ज्ञान का समावेशी स्रोत था अर्थात ब्रह्म, ब्रह्म , आत्मा , कर्म, ध्यान एवं उपासना की ऊर्जा उत्पन्न करता था।
आदि सतयुग में एक वेद एवं एक वर्ण था ; इस विषय पर हमें गंभीरता से सोचना चाहिए । त्रेतायुग में एक वेद तीन वेदों में विभक्त हो गए जिसे वेद त्रय कहा गया और एक वर्ण चार वर्णों में बट गया। द्वापर आते - आते एक और वेद विकसित हो गया और वर्ण चार बने रहे । यजुर्वेद दो में विभक्त हो गया - कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद । यह गुरु और शिष्य में आपसी मत भेद के कारण हुआ ।
वर्तमान अर्थात कलियुग में चार वेद हैं और हर वेद चार में विभक्त है जिन्हें वेदों के अंगों के रूप में जाना जाता है । वेदों के चार अंग निम्न प्रकार हैं ..
संहिता
ब्राह्मण
आरण्यक
उपनिषद्
वेदों के अंगों से संबंध में आगे के लेखों में चर्चा होगी , अभी चार वेदों के मूल विषयों से परिचय करते हैं । ऋग्वेद …
इसमें हमारे सोचने का विषय क्या हो ?/ हमें क्या जानना चाहिए ? विषयों को स्पष्ट किया गया है ।
सभी देवताओं ,जड़ एवं चेतन में ऊर्जा संचालित करने वाले सविता एवं प्रकृति के विभिन्न देवताओं जैसे इंद्र, अग्नि, वरुण, सोम, सूर्य आदि की प्रार्थना, प्रशंसा और आह्वान करनेवाली स्तुतियों (ऋचाओं) हैं।
सृष्टि रचना (नासदीय सूक्त), तत्त्व ज्ञान, नैतिकता और ब्रह्मांड के रहस्यों की ओर इशारा करनेवाले दार्शनिक विचार हैं।
यजुर्वेद …
इसमें हम क्या करें? आधारित यज्ञों को करने की विधि , संबंधित सूक्त एवं मंत्र है ।
यज्ञ (कर्मकांड)करने के तरीकों का विवरण है ।
यज्ञ में पढ़े जाने वाले गद्य मंत्र (यजुस) हैं ,जो कर्मकांड के विभिन्न चरणों, अर्पण विधियों और नियमों को निर्दिष्ट करते हैं।
कर्म (क्रिया) और यज्ञ की व्यावहारिकता को स्पष्ट किया गया है।
कृष्ण और शुक्ल दो यजुर्वेद हैं ।
कृष्ण यजुर्वेद …
मंत्रों और कर्मकांडिक निर्देशों (ब्राह्मण गद्य) का मिश्रण देखा जाता है और मंत्र तथा व्याख्या साथ - साथ दिए गए हैं।।
शुक्ल यजुर्वेद ..
मंत्रों (यजुस) का शुद्ध संकलन है।
इसके कर्मकांडिक निर्देश अलग ग्रंथ (शतपथ ब्राह्मण ) में दिए गए हैं।
इस वेद को अधिक व्यवस्थित माना जाता है।
यह कर्मकांडिक प्रक्रियाओं पर केंद्रित है।
सामवेद …
हम कैसे गाएँ ? का पूर्ण स्वर विज्ञान, हैं ।
ऋग्वेद की चुनी हुई ऋचाओं को संगीतमय रूप में प्रस्तुत की गई हैं ।
संगीत ज्ञान और देव - स्तुतियों को संगीतमय ढंग से प्रस्तुत करने की पूरी जानकारी है।
मंत्रों के गाने के लिए स्वरलिपि (सामन्) दी गई हैं।
यज्ञ में सोमरस अर्पण के समय गाए जाने वाले गीतों का संग्रह है।
यह वेद ऋग्वेद का संगीतमय संस्करण है जिसमें भक्ति - भाव को संगीत के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है ।
अथर्ववेद ..
कैसे जिएँ ? प्रश्न का सम्पूर्ण गणित है।
ऋग्वेद से भिन्न प्रकार के मंत्रों का संग्रह है।
जनसामान्य के दैनिक जीवन से संबंधित विषय जैसे रोग निवारण, आयुर्वेद, जादू-टोना, शांति, प्रेम, शत्रु पराजय, राजनीति, धातु विज्ञान, दीर्घायु, गृह निर्माण, कृषि आदि संबंधित मंत्र आदि दिए गए हैं।
व्यावहारिक जीवन, चिकित्सा, समाजशास्त्र और लौकिक समस्याओं के समाधान पर केंद्रित , जीवन के विविध पहलुओं का ज्ञानकोश है ।
इसमें दार्शनिक सूक्त भी हैं। मंत्रों के समूह को सूक्त कहते हैं ।
अगले अंक में वेदों के चार अंगों को स्पष्ट किया जायेगा ।
~~ ॐ ~~
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