Thursday, August 28, 2014

भागवत से - 20

^^ हमारी श्रुतियाँ प्रभु के संबोधन में नारायण शब्द का प्रयोग करती हैं । नारायण ,ब्रह्म ,प्रभु ,परमात्मा जैसे अनेक नाम हैं जो प्रभु के संबोधन हैं ।प्रभु से प्रभु में ब्रह्माण्ड के दृश्य वर्ग हैं ,और जिसमें वे ब्यक्त से अब्यक्त होते रहते हैं ,यह तो एक परिचय है उस अप्रमेय ,अब्यक्त ,सनातन और निर्गुणका जिसको नारायण संबोधन से भी स्मरण करते हैं ।आइये ! चलते हैं कुछ और कदम श्रुतियों में और देखते हैं नारायण शब्द के भाव को । ● भागवत : 11.3 .34-40 > मिथिला नरेश निमि योगिश्वरों से पूछ रहे हैं ," जिस परब्रह्म परमात्माका नारायण नाम से वर्णन किया जाता है ,उसका स्वरुप क्या है ? इस सम्बन्ध में पांचवें योगीश्वर कहते हैं , °° जो स्वप्न , जाग्रत और सुषुप्ति -मन की तीन अवस्थाओं का द्रष्टा है , जो तुरीय और सामाधि में ज्यों का त्यों एक रस रहता हो , वह पेअभु का नारायण स्वरुप है । ● भागवत : 1.3 .1-5 > सूत जी शौनक ऋषि को बता रहे हैं ," 11 इन्द्रियाँ एवं 05 महाभूत को प्रभु की 16 कलाए कहते हैं ।प्रभु का वह विश्वरूप जिसमें उसकी हजारों कर्म -ज्ञान इन्द्रियाँ ब्रह्माण्ड के हर स्थान में हैं ,जिससे एवं जिसमें ब्रह्माण्ड की सभीं सूचनाएं ब्यक्त हो होकर अब्यत हो रही हैं ,वह अब्यक्त ,अप्रमेय ,सनातन प्रभु का नारायण स्वरुप है। ● गीता : 11.16 > अर्जुन प्रभु से दिव्य नेत्र प्राप्त करके उनके चतुर्भुज रूप को देख कर कहते हैं ," हे सम्पूर्ण विश्व के स्वामी , आपको अनेक भुजा , पेट , मुख , नेत्र तथा सब ओर से अनंत रूपों वाला देखता हूँ । हे प्रभो ! आप का कोई आदि ,मध्य और अंत नहीं दिखता । ● गीता : 11.17 > यह श्लोक गीता श्लोक : 11.16 का क्रमशः है । मैं आप को मुकुट युक्त , गदा तुक्त , चक्र युक्त , सब ओर से प्रकाशवान देखता हूँ ।आप का अप्रमेय अग्नि और सूर्य जैसे तेजवान जिसे कठिनाई से देखा जा रहा है ,उसे देख रहा हूँ । °° यहाँ गीता में प्रभु कृष्ण के अब्यक्त निराकार नारायण स्वरुप का साकार माध्यम से ब्यक्त करनें का प्रयाश किया जा रहा है । ** भागवत : 10.87 में सम्राट ओअरिक्शित शुकदेव जी से पूछते हैं , " श्रुतियाँ सगुण का निरोपण करती हैं फिर श्रुतियां निर्गुण ब्रह्म का प्रतिपादन कैसे करती हैं ? शुखदेव जी कहते हैं ," श्रुतियां सग्यं का निरिपन करते हुए जहाँ पहुँचा कर छोड़ देती हैं वहाँ से सामनें निर्गुण का स्वरुप दिखता है लेकिन वहाँ आँखे खुली होनी चाहिए । ** गीता के नीचे दिए गए दो सूत्रों को एक साथ देखें।प्रभु यहाँ ब्रह्म को ब्यक्त कर रहे हैं । ● गीता : 13.13 > सब ओर हाँथ -पैर वाला , सब ओर नेत्र ,सिर और मुख वाला ,सब ओर कान वाला , और संसारमें सब को ब्याप्त करके स्थिर है --- ● गीता : 13 .14 > वह सम्पूर्ण इन्रिय बिषयों का ज्ञाता है पर इन्द्रिय रहित है । वह अनासक्त है पर सब्कधारण - पोषण कर्ता है । वह निर्गुण कई पर सभीं गुणोंका भोक्ता है । ● ऊपर गीता के चार सूत्र निराकार प्रभु के जिस स्वरुप को ब्यक्त कर रहे हैं श्रुतियाँ उसे नारायण कहती हैं । ~~ ॐ ~~

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