Wednesday, December 31, 2025

पञ्च केदार तीर्थ यात्रा भाग - 1 परिचय


पञ्च केदार दर्शन 

भाग : 01 परिचय

पञ्च केदार दर्शन के अंतर्गत श्री केदारनाथ धाम , श्री मध्यमहेश्वर , श्री तुंगनाथ जी , श्री रुद्रनाथ जी और श्री कल्पेश्वर महादेव जी दर्शन यात्रा से साथ श्री बूढ़ा केदार जी की दर्शन तीर्थ यात्रा भी की जाने वाली है। इस शिव यात्रा में पहली यात्रा श्री केदारनाथ जी को होने वाली है, लेकिन पहले निम्न को भी समझ लेते हैं …

शैव मान्यता में शिव एवं मां पार्वती के पुत्र रूप में विष्णु को बताया गया है। शिव का मूल स्थान कैलाश है जिसे सृष्टि का आधार भी माना जाता है। श्री केदारनाथ धाम यात्रा प्रारंभ करने से पहले पञ्च केदार के संबंध में कुछ मूल बातों को भी समझ लेते हैं …

1- पञ्च केदारों की भौगोलिक स्थिति 

ऊपर उत्तराखंड मानचित्र पर पञ्च केदारों की भौगोलिक स्थिति को दिखाया गया हैं। पञ्च केदारों में केदारनाथ, मध्यमहेश्वर एवं तुंगनाथ,रुद्रप्रयाग जनपद में और रुद्रनाथ एवं कल्पेश्वर चमोली जनपद में हैं। 

पञ्च केदारों के एक यात्रा में दर्शन करने के कई विकल्प हैं जिनमें से यहां हरिद्वार से ऊखीमठ और ऊखीमठ से पांच केदारों की तीर्थ यात्रा को निम्न दो स्लाइड्स में माध्यम से स्पष्ट करने का यत्न किया जा रहा है। इन स्लाइड्स में स्थानों की समुद्रतल से ऊंचाई मीटर में और उनके बीच की दूरी  km में दी गई हैं। हरिद्वार से ऊखीमठ लगभग 208 km है जो वाहन से की जा सकती है ।

2- हरिद्वार से ऊखीमठ यात्रा में पड़ने वाले तीर्थों , उनके बीच की दूरी और उनका समुद्रतल से ऊंचाई 


श्री केदारनाथ जी और श्री मध्यमहेश्वर जी की शीत कालीन निवास स्थल ऊखीमठ का श्री ओंकारेश्वर मंदिर है। नीचे स्लाइड में ऊखीमठ से पञ्च केदारों की वाहन से एवं पैदल यात्राओं की दूरी को दिखाया जा रहा है।

3- ऊखीमठ मोड़ ( कुण्ड ) से पञ्च केदारों की दूरी 

4- केदारनाथ से बूढ़ा केदार की तीर्थ यात्रा और पञ्च केदार का महाभारत से संबंध 

पञ्च केदार के अलावा टिहरी - गढ़वाल जनपद में श्री केदारनाथ धाम से लगभग 72 km की  दूरी पर एक बूढ़ा केदार तीर्थ भी है जो घनसाली तहसील में बाल गंगा और धर्म गंगा नदियों के संगम के करीब स्थित है। यहां पांडवों को शिव वृद्ध रूप में दर्शन दिए थे। वृद्ध केदार क्षेत्र के लोग केदारनाथ की यात्रा नहीं करते,वृद्ध केदार दर्शन ही उनके लिए परम तीर्थ है। नीचे केदारनाथ से बूढ़ा केदार का ट्रैक मैप दिया जा रहा है ( ग्रोक के प्राप्त ) ।


पांच केदार एवं बुढ़ा केदार का संबंध पांडवों के है, आइए ! देखते हैं , इस संबंध में महाभारत की एक कथा सार को …

पांडव भाइयों का 13 वर्ष का बनवास था जिसमें आखिरी एक वर्ष गुप्त रहने का बनवास था। इस 13 वर्षों में बूढ़ा केदार में पांडवों को बूढ़े शिव के दर्शन हुए थे। बनवास के पूरा होने के कुछ दिनों बाद महाभारत युद्ध हुआ। लगभग 36 वर्ष राज्य करने के बाद पांडव परीक्षित को सम्राट बना कर स्वर्गारोहिणी हिमालय यात्रा पर निकल गए थे। इसयात्रा से पञ्च केदार तीर्थों का गहरा  संबंध है।

पञ्च केदार तीर्थ यात्रा महाभारत की एक प्रसिद्ध कथा पर आधारित है, जो भगवान शिव और पांडवों के बीच हुए घटनाक्रम से संबंधित है। यह कथा पांडवों द्वारा गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति पाने की इच्छा और भगवान शिव की परीक्षा से जुड़ी है, आइए, देखते हैं , इस कथा के सार को …

1. महाभारत युद्ध के बाद, पांडवों को अपने ही परिजनों की हत्या का पश्चाताप होता था। वे गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें सलाह दी कि इस पाप से मुक्ति के लिए भगवान शिव की शरण में जाएं ।

2. पांडव भगवान शिव से मिलने काशी (वाराणसी) गए, लेकिन शिव पांडवों से नाराज थे और उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे ,इसलिए वे अंतर्ध्यान होकर हिमालय के केदार क्षेत्र में चले गए।

3. पांडवों के हिमालय तक पीछा करने पर, भगवान शिव ने अपना रूप बदलकर एक बैल का रूप धारण कर लिया। जब पांडवों ने उन्हें पहचान लिया, तो शिव भूमिगत होने लगे। भीम ने तेजी से दौड़कर बैल की पीठ (कूबड़) पकड़ ली जिसके कारण  शिव का धड़ भूमि के ऊपर ही रह गया ।

4. भगवान शिव के बैल रूप के पांच अंग अलग-अलग स्थानों पर प्रकट हुए , जिसके संबंध में नीचे बताय गया है।    1. केदारनाथ: शिव का धड़ (कूबड़) यहाँ प्रकट हुआ ।

   2.मद्महेश्वर: शिव की नाभि यहाँ प्रकट हुई ।

   3.तुंगनाथ: शिव की भुजाएँ यहाँ प्रकट हुईं ।

   4.रुद्रनाथ: शिव का मुख यहाँ प्रकट हुआ ।

   5.कल्पेश्वर: शिव की जटाएँ यहाँ प्रकट हुईं ।

5. भगवान शिव ने पांडवों को दर्शन देकर उन्हें गोत्रहत्या के पाप से मुक्त किया। इसके बाद, शिव इन स्थानों पर स्थायी रूप से विराजमान हो गए ।

इस के बाद पांडव बद्रीनाथ , माणा गांव और बसुधारा झरना से होते हुए चक्रतीर्थ , सतोपंथ और स्वर्गारोहिणी की यात्रा किए थे । द्रोपदी तथा युधिष्ठिर को छोड़ शेष चार पांडव 

सतोपंथ झील तक देहत्याग चुके थे,केवल युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग की यात्रा कर पाए थे। 

बद्रीनाथ - सतोपंथ की दूरी लगभग 30-35 km है।

अगले अंक में केदार घाटी और केदारनाथ धाम से संबंधित रहस्यों को देखा जा सजेगा …

~~ ॐ ~~