Sunday, August 2, 2015

भागवत स्कंध - 7 सार

● भागवत स्कन्ध - 7 ● ** स्कन्ध में 15 अध्याय और 745 श्लोक हैं । ** स्कन्धकी मूल बातें :--- * चेदि राज शिशुपाल लोगों को देखते -देखते कृष्णमें समा गए थे ।चेदि महाजन पद कहाँ था ? प्रयागसे दक्षिण कुरु अर्थात यमुना के तट वर्ती भाग जो कौशाम्बी से शूरसेनसे पहले तक जिसे आज बुन्देल खंड कहते हैं वह चेदि का भाग हुआ करता था । * वैर भावमें तन्मयता अधिक सघन होती है और भक्तिमें इतनी सघन तन्मयता किसी किसी जो मिलती है । * भृंगी एक कीड़ा होता हैजो किसी और कीड़े के शिशुको पकड़ लेत है और दिवारमें एक मिटटी के छोटे से घर में कैद करके भय द्वारा उसे भृंगी बना देता है । * हिरण्यकशिपूकी तपस्या सफल हुयी और ब्रह्मासे बर प्राप्त किया। * प्रहलाद बता रहे हैं --- 1- भक्तिके 09 साधन हैं - गुण , लीला , कीर्तन , रूप - नामका स्मरण , सेवा ,पूजा -चर्चा ,वंदना , दास्य , सख्य , आत्मनिवेदन । 2- प्रहलाद द्वारा असुरोंके बच्चोंको शिक्षा । 3- नारद द्वारा गर्भमें प्राप्त ज्ञानका प्रहलाद द्वारा वर्णन । 4- प्रकृतिके 08 तत्त्व : महत्तत्व + अहंकार + 05 तन्मात्र + अब्यय मूल प्रकृति । 5- गुणों के 16 विकार : 11 इन्द्रियाँ +05 महाभूत । 6- बुद्धिकी बृत्तियाँ : जाग्रत +स्वप्न +सुषुप्ति 7- कर्म क्यों होता है ? दुःखसे दूर और सुख का जीवन प्राप्ति हेतु कर्म होता है । 8- पुरुषकी अनुमतिसे काल गुणोंके माध्यम से माया मन प्रधान लिंग शरीर की रचना करता है । 9- स्थूल देह + 04 कर्म इन्द्रियाँ और मन के योग को लिंग शरीर कहते हैं । 10- 05 तन्मात्र + 11 इन्द्रियोंको संसार चक्र कहते हैं । 11- मोक्षके साधन - मौन ,ब्रह्मचर्य , स्वाध्याय +एकांत निवास + इन्द्रिय नियोजन + ध्यान । 12- कामनाके साथ न कोई सेवक बन सकता है न मालिक । * स्कन्ध -7 में वानप्रस्थ + ब्रह्मचर्य आश्रमों के नियम + यति धर्म निरूपण और अवधूत -प्रहलाद संबाद दिया गया है । * कुछ प्रमुख तीर्थोंके नाम दिए गए हैं जैसे - पुष्कर , पम्पासर , कुरुक्षेत्र , गया , प्रयाग , पुलाहाश्रम , नैमिष आरण्य , फाल्गुन क्षेत्र , सेतु बंध, प्रभास ,द्वारका ,अलकनंदा , भगवान सीताराम आश्रम , अयोद्ध्या , चित्रकूट , महेन्द्र , मलय आदि । * गृहस्तोंके लिए मोक्ष धर्म का वर्णन । * संकल्पसे कामको ,कामनासे क्रोधको , अर्थको अनर्थ समझ कर लोभको , तत्त्व विचारसे भयको ,अध्यात्म विद्यासे शोकको , मौनसे योग विघ्नोंको जीता जा सकता है । * सत गुणसे राजस एवं तामस गुणोंको जीता जाता है । * काम वासनाओंका न उठना और भोग तत्त्वों से अनासक्तिका होना ब्रह्म वित् बनाता है । * वैदिक कर्म दो प्रकार के हैं : प्रवित्ति परक और निबृत्तिपरक ; पहला भोग प्राप्ति के लिए होता है और दूसरा भोगसे मुक्त करता है । ~~~ ॐ ~~~