ओम शांति ओम में हम दो सौ श्लोकों की श्रृखला में अब अगला श्लोक देखनें जा रहे हैं जो
इस प्रकार है-------
श्लोक – 4.19
यस्य सर्वे समारम्भा:कामसंकल्पवर्जिता:
ज्ञान अग्नि दग्ध:कर्मानं तम् आहु:पण्डितं बुद्धा:
काम,कामना एवं संकल्प रहित ब्यक्ति ज्ञानी होता है
गीता सूत्र – 4.10 में पिछले अंक में हमनें देखा कि …....
ज्ञानी राग,भय एवं क्रोध रहित होता है और यहाँ श्लोक – 4.19 में देख रहे हैं कि …....
ज्ञानी काम,कामना एवं संकल्प रहित होता है
यदि हम इन दो सूत्रों को जोड़ कर गुण – विज्ञान कि दृष्टि से देखें तो जो बात सामनें आती है
वह कुछ इस प्रकार से है ….....
ज्ञानी राजस् एवं तामस गुणों से अप्रभावित रहता है
गीता संदेह की गणित है , यहाँ आप अर्जुन के बारीक संदेह को देखते हैं जो श्री कृष्ण को
गुरु , मित्र एवं परमात्मा कहता रहता है लेकिन उनकी बातों पर यकीन नहीं करता , इतना बारीक संदेह होना इतना आसान नही गीता से यदि कुछ प्राप्त होगा तो वह होगा परम सत्य और यह संभव तब होगा जब हम अपनें उन पृष्ठों को खूब गंभीरता के साथ देखें जिनको
लोगों से छिपा कर रख रखा है
=====ओम========
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