श्लोक – 27
गीता सूत्र – 6.2
गीता में प्रभु कह रहे हैं:
कर्म – योग एवं कर्म – संन्यास एक हैं
Lord Krishna says :
Karma – yoga and action renunciation both are same .
कर्म – योग और कर्म संन्यास दोनों एक कैसे हैं ?
कर्म क्या है ? पहले इसे समझना जरूरी है ; कर्म तीन प्रकार के होते हैं , सात्त्विक , राजस
एवं तामस . मनुष्य तन , मन एवं बुद्धि से जो कुछ भी करता है , उसे कर्म कहते हैं
गीता कहता है:
कोई भी जीवधारी एक पल के लए भी कर्म रहित नहीं रह सकता , कर्म तो करना ही है चाहे
करनें की चाह हो या न हो क्योंकि …....
कर्म मनुष्य नहीं करता , गुण मनुष्य से कर्म करवाते हैं जबतक मनुष्य के अंदर गुण हैं
तबतक मनुष्य कर्म रहित नहीं हो सकता
गीता आगे कहता है:
जब कर्म करना ही है तो जो तुमसे हो रहा है उसे योग में बदलनें की कोशीश करते रहो
अर्थात सामान्य कर्मो में योग साधना से गुजरो और तब --------
कर्म तो तुमसे होते रहेंगे लेकिन कर्म – तत्त्वों की पकड़ समात होनें लगेगी
कर्म में जब कम – तत्त्वों की पकड़ न हो तो वह कर्म निर्वाण का मार ्ग बन जाता है
गीता कहता है:
भोग भाव से कर्म को मुक्त रखना ही कर्म संन्यास है और …...
वह जो भावातीत में पहुंचाए उसे कहते हैं , कर्म
Gita says …..
Three natural modes compel beings to do work and hence beings are not the doers .
Beings could not be free from the modes and so could not be without action even for a moment .
No body could be free from action so long as he is in the body .
Gita further says :
The action done without any attachment , passion and ego leads to NIRVANA .
Gita ,s simple theory is ----
Action with desire and ego leads to HELL
Action without desire and ego leads to NIRVANA
======= ओम =========
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