कर्म – योगी कौन है?
अनाश्रित:कर्मफलम् कार्यं करोति य:
स संन्यासी च योगी च न नि:अग्नि:न चाक्रिय:
गीता- 6.1
कर्म – योगी वह हैं जिसके द्वारा जो कर्म हो रहा है उसके प्रति
उसके अन्तः करण में कर्म – फल की सोच न हो
Action without attachment , without any expectation specially without the
expectation of its end result makes one Karma – Yogi .
गीता के इस सूत्र में और क्या गुंजाइश है कि इसे और स्पष्ट किया जाए
गीता प्रभु श्री कृष्ण की ऊर्जा से परिपूर्ण है इसमें बहुत अधिक कहीं कोई गुंजाइश नहीं दिखती कि किसी भी सूत्र को और स्पष्ट किया जाए,
सभी सूत्र पूर्ण रूप से स्पष्ट हैं और अपनें में पूर्ण भी हैं
गीता के सूत्रों को धारण करना ज़रा कठीन जरुर है लेकिन समझना
कठिन नहीं गीता सूत्रों को समझते तो सभीं हैं लेकिन इन सूत्रों की
ऊर्जा को अपनें जीवन में कोई – कोई प्रयोग में लाता है और जो लाता है वह संसार का द्रष्टा होता है
=====ओम=============
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