गीता के दो सौ ध्यान सूत्र
अगला सूत्र
न कर्मणां अनारम्भात् नैष्कर्म्यम् पुरुषः अश्नुते/
न च सन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति//
गीता- 3.4
गीता कह रहा है …...
कर्म को त्याग देनें से नैष्कर्म्यसिद्धि नहीं मिल सकती//
Here Gita says …...
By stopping doing work one can not achieve the perfection of Karma – Yoga .
Naishkarmya is the state where one is not affected by the result of the work .
According to law of Physics......
Every action has equal and opposite reaction and so one is suppose to be affected by
his action but Gita,s Karma – Yoga gives the Physics which is not the subject of
intelligence but it is the realization through consciousness .
गीता-गणित जो कर्म – योग से सम्बंधित है उसका एक भाग हमनें पीछले कुछ
सूत्रों के माध्यम से देखा जिनका सर यहाँ पुनः दिया जा रहा है/
गीता कहता है-----
कोई एक पल के लिए भी कर्म रहित नहीं रह सकता क्यों कि कर्म मनुष्य नहीं करता,कर्म
मनुष्य के अंदर स्थित गुण समीकरण करता है/कुछ लोग कर्म – त्याग करके
योग में उतरना चाहते हैं और यह उचित नहीं क्योंकि योग की सिद्धि,
मन – बुद्धि के अंदर उपजी नैष्कर्म की स्थिति है जो बिना कर्म किये कैसे मिल सकती है?
कर्म में कर्मों की पकड़ को समझना,कर्म – योग है और कर्म – तत्त्वों की समझ ही
नैष्कर्म की स्थिति में पहुंचाता है//
====ओम=====
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