गीता के दो सौ ध्यान सूत्र
अगले सूत्र
[क]गीता सूत्र –3.8
[ख]गीता सूत्र –18.48
सूत्र –3.8
प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं-----
अपनें नियत कर्मों को करो ; कर्म न करनें से कर्म करना उत्तम है //
सूत्र –18.48
यहाँ प्रभु कह रहे हैं----
कोई कर्म ऐसा नहीं जो दोष रहित हो लेकिन सहज कर्मों को करते रहना चाहिए //
गीता के इन दो सूत्रों को आप अपना बना लो और केवल एक बात पर अपनी उजा केंद्रित रखो /
वह बात क्या है ?
केवल उन कर्मों को करो जो … ..
[ क ] नियत कर्म हों
[ ख ] सहज कर्म हों
नियत कर्म उन कर्मों को कहते हैं जिनके न करनें से प्रकृति में बने रहना कठीन हो जाए
और नियत कर्मों में सहज कर्मों की परख होनी चाहिए;सहज कर्म उन कर्मों को कहते हैं
जिसके होनें में किसी अन्य जीब के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ता हो//
जीवन के लिए क्या करना जरूरी है ? और उनमें किस के करनें में किसी अन्य जीवधारी का
जीवन जोखिम में न पड़ता हो , बश इन दो बातों को अपनें साथ रख कर आगे चलते रहिये /
बहुत कठिन काम है;कौन ऐसा करेगा और जो करेगा वह …..
प्रभु समान ही होगा लेकिन ….
ऐसे कर्म – योगी दुर्लभ होते हैं जिनको ….
बुद्ध कहते हैं//
==== ओम ======
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