गीता के दो सौ सूत्र
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गीता सूत्र –13 . 3
क्षेत्रज्ञं च अपि मां विद्धि सर्व क्षेत्रेषु भारत /
क्षेत्र क्षेत्र – ज्ञयो : ज्ञानं यत् तत् ज्ञानं मतं मम //
प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं --------
क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध जो कराये वह ज्ञान है //
Lord Krishna says …....
The awareness of body and the operator of the body – the Soul , is knowledge .
Here this knowledge means the purest form of knowledge known as wisdom .
आदि गुरू शंकराचार्य , माधवाचार्य से ले कर सर्वपल्ली राधाकृष्णन तक एक नहीं अनेक
दर्शन से जुड़े लोगों नें गीता के इस सूत्र का ठीक ऐसा ही अनुबाद किया है जैसा ऊपर बताया गया /
सब नें ज्ञान की परिभाषा यही दिया है की क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है लेकिन कहीं किसी नें
इस परिभाषा के आधार पर गीता में जहां - जहां भी ज्ञान शब्द आया है उसको इस परिभाषा
से नहीं देखा , सब किताबी ज्ञान को ज्ञान कहा है अर्थात वह जो शास्त्रों या ग्रंथों से मिलता है /
प्रो.आइन्स्टाइन कहते हैं--------
जब मैं गीता में ब्रह्माण्ड रचना के सम्बन्ध में पढता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है की गीता से और उत्तम
ब्रह्माण्ड रचना के सम्बन्ध में कहीं और नहीं होंगी/
आइन्स्टाइन आगे कहते हैं ….....
ग्रंथों से जो ज्ञान मिलता है वह मुर्दा ज्ञान होता है लेकिन वह जो चेतना से टपक कर बुद्धि में
आता है,वह ज्ञान सजीव – ज्ञान होता है//
आप जब कभी गीता उठायें और गीता में ज्ञान शब्द को देखें तो ज्ञान की यह
परिभाषा ही अपनें अंदर रखें//
===== ओम ========
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