गरुण पुराण अध्याय दस भाग तीन में देखते हैं विष्णु भगवान गरुण जी को क्या उपदेश दे रहे हैं /
सती के सम्बन्ध में
गर्भवती स्त्री को सात नहीं होना चाहिए
सती स्वर्ग में चौदह इन्द्रों के राज्य काल तक अपनें पति के साथ रमण करती है
स्वर्ग में अपसराओं के द्वारा पूजित होती है
पिता एवं पति दोनों के कुल को पवित्र करती है
साढ़े तीन करोड सालों तक सती स्वर्ग में अपनें पति के साथ रमण करती है
मनुष्य के देह में साढ़े तीन करोड रोम होते हैं
सती की तैयारी
पति के साथ ही पत्नी का भी दाह एक साथ होता है
सती हो रही स्त्री को घर पर स्नान करना चाहिए
वस्त्र एवं आभूषणों से स्वयं को नवविवाहिता की तरह सजाना चाहिए
नारियल के साथ मंदिर जा कर पूजन करना चाहिए
मंदिर में अपनें आभूषणों को छोड़ देना चाहिए
नारियल को ले कर श्मशान जाना चाहिए
सती को अपनें पति के साथ चिता में बैठना चाहिए और उसकी गोदी में पति का सिर रहे
चिता में बैठते समय चिता की परिक्रमा करे और सूर्य को नमस्कार करे
चिता में अग्नि लगानें के लिए उसे आदेश देना चाहिते
आधा देह जलानें के बाद कपाल क्रिया कहते हैं
कपाल क्रिया
बॉस से पति के सिर को तोडना चाहिए और सती के सिर को नारियल से
अगले अंक में भाग चार को देखा जायेगा , अभी इतना ही
===== ओम्=======
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