गरुण पुराण अध्याय दस भाग दो में प्रभु दाह संस्कार के सम्बन्ध में निम्न बातों को श्री गरुण जी को बता रहे हैं : ---------
दाह - संस्कार करना की जगह को गाय के गोबर से पोतना चाहिए
उस स्थान पर बेदी बनाएँ
बेदी पर कुशा को अनामिका एवं अंगूठे से पकड़ कर तीन रेखाएं खींचें
रेखाओं के मध्य भाग से मिटटी को निकालें
जहाँ से मिटटी निकाली जा रही हो उन स्थानों में अग्नि की स्थापना करें
क्रब्यादसंज्ञक देवता का विधि पुर्बक पूजन करें
पूजन में लोमभ्यः स्वाहा , त्वग्भ्य : स्वाहा , मज्जभ्यः स्वाहा आदि मन्त्रों से होम करना चाहिए
फिर प्रार्थना करनी चाहिए कि हे देव ! आप भूतों के पालक हैं , जगत की योनि हो , आप इस प्रेत को स्वर्ग भेजें
फिर चन्दन,पलास,पीपल तुलसी की लकडियों स चिता तैयार करें
चिता पर मृतक को रखें
एक पिण्ड मृतक के सीनें पर और एक पिण्ड दाहिनें हाँथ पर रखें
दोनों पिंडों को देते समय अमुक प्रेत नाम संबोधन करें
फिर पुत्र को अग्नि देनी चाहिए
पंचकों में दाह संस्कार नहीं करना चाहिए
अर्ध घनिष्ठा नक्षत्र से रेवती नक्षत्र तक पांच नक्षत्रों में दाह संस्कार करना अशुभ होता है
यदि पंचकों में दाह करना हो तो------
कुशा के चार पुतले बनाएँ
पुतलों को मृतक के साथ रखें
नक्षत्रों के मन्त्रों से एवं प्रेताजायत मन्त्र के माध्यम से मृतक के नाम के साथ हवन करें
फिर दाह संस्कार करें
कुछ और बातों को अगले अंक में देखें
आज इतना ही
====ओम्======
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