गरुण पुराण अध्याय – 10 का प्रारम्भ गरुण जी के निम्न प्रश्न से हो रहा है ---------
श्री गरुण जी पूछ रहे हैं ….....
हे प्रभु ! आप कृपया मुझे मनुष्य के शरीर – दाह का बिधान बताएं और यदि उसकी पत्नी सती हो तो उस सती की महिमा भी बताएं /
दाह संस्कार से सम्बंधित गरुण पुराण में दी गयी बातें-----
या तो सबसे बढ़े पुत्र या सबसे छोटे पुत्र द्वारा पिता - माँ के देह का दाह संस्कार होना चाहिए
दाह संस्कार करनें से पुत्र को पितृ - ऋण से मुक्ति मिलती है
पिता के मौत के ठीक बाद सभीं पुत्रों द्वारा सर – मुंडन करवाना चाहिए
नाखून एवं बगल के बालों को नहीं कटवाना चाहिए
साफ़ – धुले वस्त्र को धारण करें
मृतक को स्नान करानें
मृतक को प्रेत शब्द से संबोधन करते हैं
मृतक के मस्तक पर गंगा जी की मिटटी का लेप करें
अमुक नाम प्रेत संबोधन से उसका पिण्ड दान करें
पुनः द्वार पर उसका पिण्ड दान करें
द्वार पर प्रेत का पूजन करें
अर्थी को कंधा दे कर श्मशान ले जाएँ
अर्थी को कंधा देनें से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है
घर एवं श्मशान के मध्य पहुंचनें पर उस स्थान पर रुके
उस स्थान को साफ़ करके गौ के गोबर से लेप करें
यहाँ प्रेत को विश्राम कराएं
यहाँ पुनः पिण्ड दान देन
श्मशान में प्रेत का सर उत्तर दिशा में रखना चाहिए
अगले अंक में आगे की बातें मिलेंगी
===== ओम्======
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