एक झलक ⬇️
गीता अध्याय - 4
श्रीमद्भागवतगीता अध्याय - 4 के बिषय👇
गीता अध्याय : 4 > ध्यानोपयोगी श्लोक
अध्याय - 4 की एक झलक ⬇
★ अध्याय - 4 में प्रभु श्री कृष्ण अपनें 41 श्लोकों नें से 07 श्लोकों ( 6 - 9 , 11 , 13 , 14 ) के माध्यम से अपने को निम्न प्रकार व्यक्त करते हैं 👇
★ मैं अजन्मा , अविनाशी , सभीं प्राणियों का ईश्वर होते हुए भी अपनी योगमाया से प्रकट होता हूँ ।
★ जब जब धर्म घटता है , अधर्म बढ़ता है तब तब साधु पुरुषों के उद्धार एवं पापियों के संहार के लिए मैं निराकार से साकार रूप में अवतरित होता हूँ।
★ मेरे जन्म और कर्म निर्मल एवं दिव्य हैं , जो इसे तत्त्वसे जान लेता है वह मुझे प्राप्त करता है ।
★ चार वर्णों की रचना मेरे द्वारा उनके गुण - कर्म के आधार पर की गई है।
★ कर्म मुझे नहीं बाधते और जो मुझे जान लेता है उसे भी कर्म नहीं बाध पाते।
★ श्लोक : 4.4 के माध्यमसे अर्जुनका गीता में चौथा प्रश्न निम्न प्रकार है ⤵
⚛आपका जन्म अभीं हाल का है और विवस्वान् ( सूर्य )का जन्म बहुत पुराना है । अतः मैं कैसे समझूँ कि कल्पके प्रारंभमें यह योग आप सूर्य को बताये थे ?
💐 अध्याय : 3 में श्लोक - 3.36 के माध्यमसे अर्जुन का प्रश्न था कि मनुष्य न चाहते हुए भी पाप क्यों कर बैठता है ? इस प्रश्नके उत्तरमें अध्याय : 3 के आखिरी 07 श्लोकों के साथ अध्याय : 4 के प्रारंभिक 03 श्लोक भी हैं ।
● आगे अध्याय - 4 में पिछले जन्मों की स्मृतियों में लौटने के सम्बन्ध में संकेत दिया गया है जिसे बुद्ध आलय विज्ञान और महाबीर जाति स्मरण कहते हैं ।
● बीतराग भय और क्रोध मुक्त ज्ञानी प्रभु में होता है , यह सूत्र भी अध्याय - 4 का ही है ।
श्लोक : 24 - 33 यज्ञ से संबंधित हैं और जिनमें श्लोक : 28 + 29 में पूरक , कुम्भक और रेचक प्राणायाम को बताया गया है ।
◆ ज्ञान सम्बंधित श्लोक > 24 - 25 +34 - 42
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