गीता जीवन मार्ग [भाग – 05 ]
गीता सूत्र –2.56
दुखेषु अनुद्विग्र – मना:
सुखेषु विगत स्पृहा:
वीत राग भय क्रोध:
स्थिति धी: मुनि: उच्यते//
वह जिसका मन सुख – दुःख से प्रभावित न होता हो
वह जो राग,भय एवं क्रोध से अछूता रहता हो
वह मुनि स्थिर – प्रज्ञ होता है//
Whose mind remins unperturbed midst of sorrow and pleasure
Who remains untouched by passion , fear , and rage
Such man is called a sage settled in intelligence .
आप – हम कल्पना तो कर ही सकते हैं कि-----
वह ब्यक्ति इस संसार में कैसा दिखता होगा
जो ----
तन – मन से-----
राग,भय एवं क्रोध रहित रहता हो----
और
जो सुख – दुःख के अनु भव से परे रहता हो//
// समभाव – योगी स्थिर – प्रज्ञ योगी होता है //
=====ओम======
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