Monday, December 20, 2010

काशी विश्वनाथ की यात्रा



आप में बहुत से लोग काशी की यात्रा कर चुके होंगे , कुछ मात्र गए होंगे , कुछ पानें की उमीद से तो कुछ
गए होंगे वह सब देखनें जिसके बारे में अपनें बुजुर्गों से कभी बचपन में सूना हो गा , आप लोगों में से कुछ बहुत खुश हुए होंगे इस यात्रा से तो कुछ बिचारों के अरमान फीके पड़ गए होंगे क्योंकि उनकी जो सोच यात्रा - पूर्व में रही होगी वह ब्यर्थ गयी होगी । तीर्थों में जाना , वहाँ कुछ दिन रहना , वहाँ साधू - महात्माओं के साथ का लुत्फ़ उठाना , अति उत्तम है लेकीन यह जरुर सोचना चाहिए की क्या हम जिस तीर्थ में जा रहे हैं , उसमें प्रवेश की हमारे में योग्यता भी है ? आप सोच रहे होंगे की - इसमें योग्यता कहाँ से आ टपकी ? लेकीन यह
अति आवश्यक बात है ।
भारत में जितनें भी प्राचीन तीर्थ हैं उनमें जब कोई बुद्धि जीवी पहुंचता है तो उसे उनकी हालत को देख कर दुःख होता है क्योंकि उनके मन में कहीं न कहीं यह बात जरुर होती है की जब इतना बड़ा तीर्थ है तो वह स्वर्ग सा तो होंगा ही , स्वर्ग जिसका गुणगान हमारे परम वेदों में खूब किया गया है उसका राजा हैं - इन्द्र और काशी का राजा हैं - स्वयं शिव जिनको आदि देव भी कहा जाता है पर काशी में पहुंचनें के बाद तो ऐसा दिखता है की यह अति गंदा शहर है - जहां श्वास लेना , पानी पीना भी कठिन है ।
मेरे प्यारे मित्रों !
आप - हम जिस काशी को देखते है , जिस काशी को जाते हैं , जहां काशी विश्वनाथ के रूप में ज्योतिर्लिन्गम बिराजमान हैं , वह काशी नहीं है , वह है काशी का एक द्वार जहां से शिव काशी में प्रवेश मिलता है ।
क्या बात है ?
काशी आदि शंकारा चार्य गए और उनका भी अहंकार वहाँ टूटा -----
काशी में सौ साल से भी अधिक समय तक कबीरजी साहिब रहे ......
कबीरजी साहिब से मिलनें श्री नानकजी साहिब भी अपने पूरी यात्रा के दौरान , काशी में कुछ दिन रुके .....
ऐसा कौन है जिसको सत की राह की तलाश रही हो और वह काशी न गया हो - आदि शंकराचार्य से कृष्णामूर्ति तक के सत के प्रेमियों पर आप एक नज़र दौड़ा कर देख सकते हैं ।
काशी जानें का जब कभी आप का प्रोग्राम बनें तो आप वहाँ जानें की पहले तैयारी करलें और अपने अन्दर से
उस उर्जा को निकाल कर जो आप में भरी पड़ी है उसके स्थान में शिव उर्जा को भरनें का यत्न करें यह तब संभव होंगा जब आप कुछ दिन किसी शिव मंदिर में कुछ ध्यान करें ।
वह जो शिव - ऊर्जा से परिपूर्ण होंगा , उसे काशी की गंदगी नज़र न आयेगी , उसे वहां के पाकेटमार न समझ में आयेंगे , उसे गंगा की अपवित्रता नज़र न आयेगी , उनको तो -----
वहाँ पहुंचनें पर वह चाभी नज़र जरुर आनें लगेगी जिस से इस काशी रूपी द्वार को खोल कर आदि काशी में प्रवेश
कर सकें । ऐसा सत का प्रेमी जो काशी जाता है वह पुनः लौट कर नहीं आता ॥
आज लोग गंगा सफाई पर खूब हवा उड़ा रहे हैं लेकीन उनको यह नहीं पता चलता की यह गंगा भारत की गंगा हैं , अमेरिका की नहीं ....
यह गंगा वह गंगा नहीं जो ब्रह्मा के कमनडल से चली थी , यह गंगा तो उस गंगा का एक भाग हैं ।
वह जो ब्रह्मा के कमनडल को न देख पाया ......
वह जो मूल गंगोत्री को न देख पाया ....
वह जो शिव को न समझ पाया ....
वह जो ज्योतिर्लिन्गम को न समझ पाया .....
वह मूल काशी में कैसे प्रवेश कर सकता है ॥
आदि शंकर को आदी काशी में प्रवेश के लिए छ महीनें लगे थे।
इस बात को फिर कभी लेंगे ।
आज इतना ही
आज शिव की ऊर्जा में रहें
===== ॐ ======


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