जीव की गर्भ में क्या स्थिति होती है?
जीव माँ के गर्भ में जहाँ रहता है वह स्थान जैसा है उसकी कल्पना कोई भी कर सकता है , आज वैज्ञानिक युग में / जीव जिस मार्ग से गर्भ से बाहर आता है वह मार्ग है मूत्र मार्ग अर्थात उस मार्ग से मूत्र बाहर आता रहता है और आगे ------
गर्भ में वह नीचे सिर और ऊपर पैर करके रहता है
वह एक अंड के आकार में रहता है
उसकी पीठ धनुष की भांति मुडी होती है और सिर दोनों भुजाओं के मध्य रहता है
माता जब कड़वी,तीखी वास्तु खाती है तब उसे दुःख होता है
गर्भ में जरायु झिल्ली में ऐसे बधा रहता है जैसे बोरे में अनाज रखा जाता है
एक पिजड़े में जैसे एक पंक्षी कैद रहता है वैसे जीव गर्भ में कैद रहता है
गर्भ में शूक्ष्म कीटाणु उसे समय समय पर काटते रहते हैं
गर्भ के सातवे माह में जीव को कुछ ज्ञान आता है
वह गर्भ में जल चरों की भांति एक पल के लिए भी शांति में नहीं रहता
गर्भ में बोध आनें पर जीव प्रभु से आराधना करता है और अपनें द्वारा किये गए पापों के लिए क्षमा चाहता है
वह गर्भ से मुक्त हो कर प्रभु की स्मृति में रहना चाहता है
जीव प्रभु से आगे कहता है-मैं समझता हूँ कि संसार में आकर मैं पुनः भोग बंधनों में उलझनें वाला हूँ अतः मैं गर्भ से बाहर नहीं जाना चाहता और यहीं राह कर आप की स्मृति में रहता हुआ अपना उद्धार करना चाहता हूँ
जीव अंत के दो माह तक गर्भ में प्रभु की स्मृति में रहता है
जीव गर्भ में जरायु के बंधन में रहता है और बाहर आनें पर प्रभू की माया उसे घेर लेती है
जीव गर्भ से बाहर आनें के बाद से मृत्यु तक माया में डूबा रहता है
कालान्तर में कोई एकाध ऐसा जीव अवतरित होता है जो मायामुक्त रह पाता है लेकिन ऐसे जीव दुर्लभ हैं /
गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं[गीता श्लोक –7.15 ] -------
माया के सम्मोह में जो रहता है वह आसुरी प्रकृति वाला मुझसे दूर रहता है//
==== ओम्======
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