Wednesday, February 12, 2014

भागवत कथा - 12.3

●भागवत 12.3● 
सन्दर्भ : अध्याय - 6 से 7 तक । 
1- परीक्षितको जब श्रृंगी ऋषिके श्रापका पता चला तब वे अपनें उत्तराधिकारी के रूप में अपनें पुत्रको स्थापित किया और द्वयं गंगा तट पर मौत की तैयारी में लग गए । परीक्षित गंगा तट पट जहाँ बैठे थे वहाँ गंगा पूर्व मुखी थी। गंगा तट पर उनका मुख उत्तर दिशा में था और कुशों का आगरा नोकीला भाग पूर्ब दिशा की ओर था।
 * शमीक मुनि पुत्र श्रृंगी ऋषि कौशिकी नदीके तट पर परीक्षितको श्राप दिया था कि तक्षक आज से ठीक सात दिन बाद आपको डस लेगा।वह श्राप अब पूरा होनें वाला है । कश्यप ब्राह्मण जो सर्प बिष के प्रभावको उतारानें का ज्ञानी था ,वह परीक्षित की ओर आ रहा था पर रास्ते में तक्षक उसे बहुत सा धन देकर वापिस भेज दिया।तक्षक ब्राह्मण भेष में आया और परीक्षित को डस लिया । * परीक्षित पुत्र जन्मेजय अपनें पिता की मौत का बदला लेनें हेतु सर्प - सत्र यज्ञ किया। तक्षक अपनीं जान बचानें हेतु इंद्रके पास जा छिपा था । बृहस्पतिजी जन्मेजयको समझा कर यज्ञको समाप्त करा दिया और तक्षकको बचाया ।
 ** तक्षक कौन था ? ** 
तक्षक श्री राम कुलमें श्री रामके बाद 26वाँ बंशज था ।। 
<> आगे की कथा <> 
* नेति -नेति से ऐसे को प्राप्त करनें वाला जिसे नक्कारा न जा सके , भावके केंद्र हृदयके माध्यमसे अनन्य भावमें ठहरनें वाला और अपनें चित्त को द्रष्टा रूपमें स्थिर करनें वाला परम पद गामी होता
 है । 
* वेदों का विभाजन : सतयुग में एक वेद था , वेद्ब्यास वेद को चार भागों में ब्यक्त किया और उनके ऋषि निम्न प्रकार से 
हुए :--- # ऋग्वेद - पैलऋषि # यजुर्वेद - वैशम्पायन ऋषि # साम वेद - जैमिनी ऋषि # अथर्ववेद - सुमन्तु ऋषि
 ( जैमिनीके पुत्र ) 
*याज्ञवल्क्य वैशम्पायन ऋषिका साथ त्याग कर सूर्य की उपासना किया और बहुमूल्य ज्ञान प्राप्त किया । याज्ञवल्क्य पहले ऐसे वैज्ञानिक सोच वाले ब्यक्ति हुए जिनका कहना था की पृथ्वी रक ठोस गोले जैसी है , लेकिन इनकी यह सोच विज्ञानका रूप नहीं लेसकी। याज्ञवल्क्य पैल ऋषिसे ऋग्वेदका भी ज्ञान लिया 
था । 
 * महत्तत्त्व और कालसे तीन अहंकार पैदा हुए ,अहंकारों से इन्द्रियाँ ,मन ,बुद्धि,प्राण उपजे ।मूल तत्त्वों की उपज सर्ग कहलाती है और ब्रह्मा द्वारा निर्मित सृष्टि जो सर्ग आधारित होती है उसे विसर्ग कहते हैं । मनु ,देवता , मनु पुत्र ,इंद्र ,सप्तऋषि ,और अंशावतार इन छः बातोंकी विशेषतासे युक्त समय को मन्वन्तर कहते हैं ।
 ~~ ॐ~~

No comments:

Post a Comment