Saturday, July 30, 2011

गीता के दो सौ सूत्र भाग सात

गीता की यह यात्रा अब अगले सूत्रों से गुजरनें जा रही है-----

गीता सूत्र –5.22

इन्द्रिय भोग आदि-अंत वाले होते हैं और इन सुखों में दुःख का बीज होता है

गीता सूत्र –3.37

काम ऊर्जा का रूपांतरण क्रोध है

गीता सूत्र –2.60

मन इन्द्रियों का गुलाम बन जाता है

गीता सूत्र –2.67

गुलाम मन प्रज्ञा को हर लेता है

गीता सूत्र –3.7

मन से नियोजित इन्द्रियों से जो होता है वह आसक्ति रहित होता है

गीता सूत्र –2.58

इन्द्रियों का नियंत्रण ऐसे होना चाहिए जैसे एक कछुआ अपनें अंगों पर नियंत्रण रखता है

गीता सूत्र –2.59

हठात कर्मम इन्द्रियों को रोक कर रखना अहंकार की ऊर्जा पैदा करता है


गीता के कुछ अनमोल रत्नों को मैं आप को दे रहा हूँ,यदि ये रत्न आप के किसी काम आसकें तो मैं अपनें को धन्य भागी समझूंगा/प्रभु श्री कृष्ण की ऊर्जा तो सर्वत्र है उस सनातन ऊर्जा से कौन कतना लेता है वह प्रत्येक ब्यक्ति के ऊपर निर्भर है/

आप श्री कृष्णमय रहें//


====ओम====



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