Monday, January 24, 2011

गीता ध्यान

भाग - 07

ध्यान के सम्बन्ध में अब आज हम विषय - इन्द्रियों को ले रहे हैं ......

विषय- इन्द्रिय - ध्यान में हमें निम्न बातों पर विशेष रूप से अपनी ऊर्जा केन्द्रित करनी चाहिए .......

[क] पांच ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से हमारा मन - बुद्धि तंत्र संसार से जुड़ता है .....
[ख] विषय ज्ञानेन्द्रियों को पकड़ कर रखते हैं ......
कर्म योग का यह पहला चरण है अतः इस चरण को ठीक से समझना अति आवश्यक है ।

हमारी पांच ज्ञानेन्द्रिया हमारे सर में स्थिति हैं और सर के अन्दर , मन है । मन का अन्दर का छोर
बुद्धि है और बाहरी छोर पांच भागों में बिभक्त है जिसको ज्ञानेन्द्रियाँ कहते हैं ।
संसार से डाटा इकट्ठा करनें का काम ये इन्द्रियाँ करती हैं और उन आकड़ों की अनेलिसिस मन करता है ।
मन और बुद्धि का गहरा सम्बन्ध हैं और इन दो को अलग करना कठिन है ।
डाटा एनेलिसिस के बाद जो निर्णय लिया जाता है उसके आधार पर कर्म इन्द्रियों को वैसा आदेश मिलता है - मन के माध्यम से ठीक वैसा कर्म करनें के लिए ।
मन ध्यान की दृष्टि से -----
हमें अपनी ऊर्जा को अपनें ही ज्ञानेन्द्रियों पर रखनी होती है ,
ज्योंही कोई इन्द्रिय अपनें विषय में पहुंचे उसी समय - ठीक उसी समय
उसे वहाँ से पकड़ कर वापिस ले आना चाहिए लेकीन कोई जोर - जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए ।
इन्द्री - विषय योग से जो भाव उस विषय के प्रति मन में उठता है उस भाव से सम्बंधित गुण को भी पहचानना होता है और उस गुण को अप्रभावित करनें के लिए वैसी ब्यवस्था बनानी पड़ती है जिसको आगे चल कर गुण साधाना में देखा जाएगा ।
इन्द्रियों के प्रति होश बनाना .....
बिषयों के स्वभाव पर नज़र रखनी .....
बिषय के सम्बन्ध में मन कैसा विचार करता है ? इस बात पर नज़र रखनी .....
ये सभी बातें कर्म - योग में आती हैं ।
योग या ध्यान का सीधा सम्बन्ध है .....
मन से ....

मन को गुण तत्वों से बचाना और उन तत्वों के प्रति होश बनाना ही .....
ही ....
मन - ध्यान है जो .....
बुद्धि - योग का एक भाग है ॥

===== ॐ =======

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