काशी दर्शन
भाग - 01 : काशी का प्राचीनतम इतिहास
मार्क ट्वेन कहते हैं , " बनारस, इतिहास से भी पुराना है, परंपराओं से पुराना है, और किंवदंतियों से भी प्राचीन है "।
वैदिक काल से लेकर आधुनिक वाराणसी (24 मई 1956 को आधिकारिक नामकरण ) काशी न केवल धर्म व दर्शन, बल्कि व्यापार, संगीत व साहित्य की धरोहर है ।
पहले मनु स्वायंभुव मनु के 11 /16 वें वंशज काश ने काशी को बसाया था और उनके नाम पर इस नगर का नाम काशी रखा गया। कुछ पुराणों में काश को मनु के 11 वें वंशज और कुछ में 16 वें वंशज भी बताया गया है ।
शतपथ ब्राह्मण (शुक्ल यजुर्वेद का ग्रन्थ ) में काशी का उल्लेख मिलता है, और इसे "तेजस्वी" या "प्रकाशमय" नगर के रूप में अंतः-निहित रूप में वर्णित किया गया है।
शतपथ ब्राह्मण (13.5.4.20) में काशी को ब्रह्मविद्या का केंद्र माना गया है। काश्यप और उद्दालक जैसे विद्वानों का संबंध इस क्षेत्र से माना गया है। शतपथ में काश्य लोगों का उल्लेख है — जिसका संबंध काशी जनपद से माना गया है। प्रकाश के नगर के रूप में काशी का अर्थ संभवतः "काश" धातु से निकला है ; काश् संस्कृत धातु का अर्थ होता है — प्रकाशित होना, चमकना, दीप्त होना। इस धातु से "काशी" शब्द बना है — अर्थात् "जो प्रकाशित करती है", "दीप्त नगरी"। यहां प्रकाश या दीप्त , ज्ञान के संबोधन हैं ।
स्कंद पुराण के काशी खंडमें काशी के संबंध में बताया गया है। मत्स्य पुराण में काशीमें गंगा की पवित्रता का वर्णन किया गया है । कुछ पुराणों के अनुसार ,भगवान शिव द्वारा काशीकी स्थापना की गई है जिसके आधार पर काशीको शिवकी नगरी और मोक्षदायिनी पुरी माना जाता है । यह नगरी भगवान शिव के त्रिशूल पर स्थित बताई गई है और इस कारण से काशी को त्रिशूलकेशी पुरी भी कहा गया है।
स्कन्द पुराण में विभिन्न संदर्भों में काशी के अनेक नाम मिलते हैं जैसे अविमुक्त क्षेत्र,मोक्षभूमि, महाश्मशान , कृत्तिवासपुरी , आनन्दवन और काशीपुरी आदि। अविमुक्त क्षेत्र उस क्षेत्र को कहते हैं जिस क्षेत्र में शिव की उपस्थिति हर पल बनी रहती है। स्कन्द पुराण में यह भी कहा गया है कि जो काशी में प्राण त्याग रहा होता है , उस समय भगवान शिव स्वयं तारण मंत्र (राम नाम) कान में देते हैं — इसे कर्ण मंत्र कहा गया है और उस मृतक कोआवागमन से मुक्ति मिल जाती है ।
चंदौली (काशी के निकट) की लखनिया दरी गुफाओं में 8,000–10,000 वर्ष पुराने मानव बस्तियों के अवशेष पाए गए हैं , जिसके आधार पर पाषाण कालीन काशी के अस्तित्व को समझा जा सकता है।
महाभारत में भीष्म द्वारा काशी की तीन राजकुमारियों (अंबा, अंबिका , अंबालिका) के हरण की कथा काशी और हस्तिनापुर के संबंध को दर्शाती है ।
बाल्मीकि रामायण में काशी नरेश का अपमान व भगवान राम द्वारा उनके वध का प्रसंग भी मिलता है।
ईसा पूर्व 6वीं शताब्दी में गौतम बुद्ध ने सारनाथ में पहला उपदेश "धर्मचक्र प्रवर्तन" दिए और यहीं पर पंचवर्गीय भिक्षुओं का प्रथम संघ भी बनाया गया था।
जैन धर्म के 7 वें सुपार्श्वनाथ और 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जन्म काशी में हुआ था और 11 वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म सारनाथ में , इस प्रकार जैन मान्यता के 25 तीर्थंकरों में से 3 का सीधा संबंध काशी क्षेत्र से है ।
सम्राट अशोक , सारनाथ में धर्मराजिका स्तूप व अशोक स्तंभ बनवाए थे ।
प्रारंभ में बताया गया कि काशी प्रथम मनु के 11 वें वंशज राजा काश द्वारा बसाई गई है, अब इस संबंध प्रथम।मनु स्वायंभुव मनु के संबंध में कुछ बातों को समझ लेना चाहिए। श्रीमद्भागवत पुराण : 3.12.20 में ब्रह्मा के प्रारंभिक 11 निम्न पुत्रों की चर्चा की गई है …
मरीचि , अत्रि , अंगिरा , पुलस्त्य , पुलह , क्रतु , भृगु , वशिष्ठ, दक्ष , नारद और स्वायंभुव मनु । अब स्वायंभुव मनु - पहले मनु के समय के बारे में श्रीमद्भागवत पुराण में दी गई गणित के आधार पर समझते हैं …
ब्रह्मा का एक दिन 1000( चारयुगों की अवधि ) के बराबर मानी जाती है जो 4.32 billion human years के बराबर है। ब्रह्मा का एक दिन एक कल्प कहलाता है। एक कल्प में 14 मनु होते हैं । एक मनु का समय 308.571 million years का होता है। वर्तमान का समय 7 वें मनु का समय है और इस प्रकार इस गणित के आधार पर लगभग 1.85 billion years पहले काशी नगरी पहले मनु के बंशज द्वारा बसाई गई थी।
पहले मनु के समय गंगा यमुना का क्षेत्र ब्रह्मावर्त कहलाता था जिसके सम्राट पहले मनु हुआ करते थे और इनकी राजधानी यमुना तट पर बसी बर्हिष्मति हुआ करती थी।
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