Sunday, August 24, 2025

उत्तराखंड रुद्रप्रयाग - चमोली जनपदों के परम पवित्र तीर्थ और तप - भूमियाँ

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिला और चमोली जिला के पञ्च केदार एवं अन्य धार्मिक क्षेत्र

रुद्रप्रयाग जनपद 

चमोली जनपद 

रुद्रप्रयाग ,त्रियुगीनारायण , गुप्त काशी , अगस्त्यमुनि सोनप्रयाग ,कालीमठ, 

खिरसू

विष्णु प्रयाग , हेमकुंड साहिब, फूलों की घाटी , औली, रुद्रनाथ मंदिर (पञ्च केदार) , गोपेश्वर

बद्रीनाथ , मां मूर्ति का मंदिर

केदारनाथ , मद्महेश्वर , तुंगनाथ कार्तिकस्वामी मंदिर

 (क्रौंच पर्वत - परियों का निवास स्थान )

माणा, केशव प्रयाग , भीम पुल , व्यास गुफा , बाल सुंदरी मंदिर  माणा पास, वसु धारा जल प्रपात , सरस्वती नदी , देवताल 

इंद्रासनी मनसा देवी मंदिर

अत्रिमुनि आश्रम - जलप्रपात

अब ऊपर व्यक्त पवित्र निर्मल सघन ऊर्जा केंद्रों के संबंध में देखते हैं …


🏩रुद्रप्रयाग जनपद  के निर्मल सघन ऊर्जा केंद्र

1. रुद्रप्रयाग 

रुद्र प्रयाग अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों का संगम स्थल है, जिसे पंच प्रयाग  ( देव प्रयाग , रुद्रप्रयाग , कर्ण प्रयाग , नन्द प्रयाग , विष्णु प्रयाग ) में से एक है। यह स्थान भगवान शिव के रुद्र रूप से जुड़ा है और कहा जाता है कि यहाँ नारद मुनि ने शिव की तपस्या की थी। संगम स्थल पर शिव और जगदंबा मंदिर प्रमुख हैं। यह शहर केदारनाथ धाम की यात्रा के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव भी है।

2.केदारनाथ धाम

केदारनाथ भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और पंच केदार में प्रमुख है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, यहाँ पांडवों ने शिव की तपस्या की थी। रुद्रप्रयाग से केदारनाथ की दूरी लगभग 86 किमी है।


3.त्रियुगीनारायण मंदिर

यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और मान्यता है कि यहाँ भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। यहाँ तीन कुंड (रुद्रकुंड, विष्णुकुंड, ब्रह्मकुंड) हैं, जिनका धार्मिक महत्व है। यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है और केदारनाथ यात्रा के दौरान देखा जा सकता है।

4. गुप्तकाशी

गुप्तकाशी को "छुपी हुई काशी" कहा जाता है और यहाँ प्राचीन विश्वनाथ मंदिर है। मान्यता है कि भगवान शिव पांडवों से छुपने के लिए यहाँ आए थे।

· आकर्षण: यहाँ अराधनेश्वर मंदिर और मणिकर्णिक कुंड भी दर्शनीय हैं।

 5.अगस्त्यमुनि

यह स्थान ऋषि अगस्त्य की तपस्या स्थली के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ अगस्तेश्वर महादेव मंदिर है, जहाँ बैसाखी के अवसर पर एक बड़ा मेला लगता है। अगस्त्यमुनि मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है।

6.तुंगनाथ मंदिर

तुंगनाथ पंच केदार में से एक है और मान्यता है कि यहाँ भगवान शिव की भुजाएँ प्रकट हुई थीं। यह मंदिर समुद्र तल से 3,680 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।यहाँ से हिमालय की चोटियों का मनोरम दृश्य दिखाई देता है।

7.मदमहेश्वर

 मदमहेश्वर पंच केदार में दूसरा केदार माना जाता है। यहाँ भगवान शिव की नाभि प्रकट हुई थी। यह स्थान शांत और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है ।

8.सोनप्रयाग

सोनप्रयाग में मान्यता है कि भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। यह केदारनाथ यात्रा के मार्ग में पड़ता है।

यहाँ का प्राकृतिक environment और नदी का संगम दर्शनीय है।

9.खिरसू

 खिरसू एक सुंदर हिल स्टेशन है, जो हिमालय की चोटियों और घने जंगलों से घिरा है। यह प्रकृति प्रेमियों और ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए आदर्श स्थान है।


10.कार्तिकस्वामी मंदिर ( क्रौंच पर्वत - परियों का देश )

यह मंदिर भगवान कार्तिकेय को समर्पित है और 3,048 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ से हिमालय की चोटियों का मनोरम दृश्य दिखाई देता है।


11.कालीमठ

कालीमठ एक सिद्ध पीठ है और देवी काली का मंदिर यहाँ स्थित है। नवरात्रि के दौरान यहाँ भक्तों की भारी भीड़ होती है।

12.इंद्रासनी मनसा देवी मंदिर

 यह मंदिर रुद्रप्रयाग शहर से 14 किमी दूर स्थित है और इसे आदि शंकराचार्य के युग में बनाया गया था। यहाँ देवी मनसा की पूजा की जाती है, जो सांप के काटने का इलाज करने में सक्षम मानी जाती हैं।


🏩चमोली जनपद, उत्तराखंड के निर्मल सघन ऊर्जा केंद्र


1. बद्रीनाथ धाम

बद्रीनाथ हिंदुओं के चार धामों में से एक है और भगवान विष्णु के बद्रीनारायण रूप को समर्पित है। मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में की थी। यहाँ भगवान विष्णु की 1 मीटर ऊँची शालिग्राम शिला से निर्मित मूर्ति है । मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है और चारों ओर से हिमालय की ऊँची चोटियों से घिरा है। यह स्थान प्राकृतिक रूप से अत्यंत मनोरम है।


 2. हेमकुंड साहिब

यह सिखों का एक प्रमुख तीर्थस्थल है, जो समुद्र तल से 15,000 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने ध्यान लगाया था ।यहाँ एक हिमनदी झील है और आसपास के क्षेत्र में बर्फ़ से ढके पहाड़ और ग्लेशियर देखे जा सकते हैं। यह स्थान ट्रैकिंग के लिए भी प्रसिद्ध है।


3. फूलों की घाटी

यह यूनेस्को द्वारा संरक्षित एक राष्ट्रीय उद्यान है, जहाँ गर्मियों में रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं। कहा जाता है कि हनुमान जी यहाँ से संजीवनी बूटी लेकर गए थे ।

· ट्रैकिंग: यह घाटी ट्रैकिंग प्रेमियों के लिए एक आदर्श स्थान है और हेमकुंड साहिब के मार्ग में पड़ती है।


 4. औली

औली भारत की स्कीइंग राजधानी के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ सर्दियों में बर्फबारी होती है, जो स्कीइंग और अन्य बर्फ़ानी खेलों के लिए उपयुक्त होती है । यहाँ से नंदा देवी, मन पर्वत, और कामेट जैसी हिमालय की ऊँची चोटियों के दर्शन होते हैं। जोशीमठ से औली तक का रोपवे सफ़र अत्यंत रोमांचक है।


5. रुद्रनाथ मंदिर


यह मंदिर पंच केदार में से एक है और भगवान शिव के मुख के दर्शन यहाँ होते हैं। ऐसा माना जाता है कि पांडवों को भगवान शिव के दर्शन यहाँ हुए थे ।

· ट्रैकिंग: मंदिर तक पहुँचने के लिए 19 किमी की पैदल यात्रा करनी पड़ती है, जिसमें हरे-भरे बुग्याल और हिमालय के मनोरम दृश्य देखने को मिलते हैं।

 6. गोपेश्वर

गोपेश्वर चमोली जिले का मुख्यालय है और यहाँ भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है। इसके अलावा यहाँ वैतरणी कुंड और बिना प्रतिमाओं के मंदिर समूह भी दर्शनीय हैं ।

यह स्थान सुंदर पर्वत श्रृंखलाओं, सीढ़ीदार खेतों और छोटी झीलों से घिरा हुआ है।


 7. अत्रिमुनि आश्रम और जलप्रपात

यह आश्रम ऋषि अत्रि को समर्पित है और एक गुफ़ा के रूप में बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ अमृत नदी बहती है । यहाँ 70 मीटर ऊँचा एक जलप्रपात है, जो ट्रैकिंग और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक आदर्श स्थान है। इस जगह की प्राकृतिक सुंदरता अद्वितीय है।


8.विष्णु प्रयाग (Vishnuprayag) 

 यह अलकनंदा नदी और धौलीगंगा नदी के संगम पर स्थित एक पवित्र स्थल है और पंच प्रयागों में से एक है । समुद्र तल से 1,372 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। यह हिंदू धर्म में एक प्रमुख तीर्थ स्थल है और मान्यता है कि यहाँ नारद मुनि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने दर्शन दिए थे 

।।। ॐ ।।।।

Saturday, June 28, 2025

काशी दर्शन भाग 01 प्राचीन इतिहास


काशी दर्शन

भाग - 01 : काशी का प्राचीनतम इतिहास

मार्क ट्वेन कहते हैं , " बनारस, इतिहास से भी पुराना है, परंपराओं से पुराना है, और किंवदंतियों से भी प्राचीन है "।  

वैदिक काल से लेकर आधुनिक वाराणसी (24 मई 1956 को आधिकारिक नामकरण ) काशी  न केवल धर्म व दर्शन, बल्कि व्यापार, संगीत व साहित्य की धरोहर है ।

पहले मनु स्वायंभुव मनु के 11 /16 वें वंशज काश ने काशी को बसाया था और उनके नाम पर इस नगर का नाम काशी रखा गया। कुछ पुराणों में काश को मनु के 11 वें वंशज और कुछ में 16 वें वंशज भी बताया गया है ।

 शतपथ ब्राह्मण (शुक्ल यजुर्वेद का ग्रन्थ ) में काशी का उल्लेख मिलता है, और इसे "तेजस्वी" या "प्रकाशमय" नगर के रूप में अंतः-निहित रूप में वर्णित किया गया है। 

शतपथ ब्राह्मण (13.5.4.20) में काशी को ब्रह्मविद्या का केंद्र माना गया है। काश्यप और उद्दालक जैसे विद्वानों का संबंध इस क्षेत्र से माना गया है। शतपथ में काश्य लोगों का उल्लेख है — जिसका संबंध काशी जनपद से माना गया है। प्रकाश के नगर के रूप में काशी का अर्थ संभवतः "काश" धातु से निकला है ; काश् संस्कृत धातु का अर्थ होता है — प्रकाशित होना, चमकना, दीप्त होना। इस धातु से "काशी" शब्द बना है — अर्थात् "जो प्रकाशित करती है", "दीप्त नगरी"। यहां प्रकाश या दीप्त , ज्ञान के संबोधन हैं ।

 स्कंद पुराण के काशी खंडमें काशी के संबंध में बताया गया है। मत्स्य पुराण में काशीमें गंगा की पवित्रता का वर्णन किया गया है ।  कुछ पुराणों के अनुसार ,भगवान शिव द्वारा काशीकी स्थापना की गई है जिसके आधार पर काशीको शिवकी नगरी और मोक्षदायिनी पुरी माना जाता है । यह नगरी भगवान शिव के त्रिशूल पर स्थित बताई गई है और इस कारण से काशी को  त्रिशूलकेशी पुरी भी कहा गया है। 

स्कन्द पुराण में विभिन्न संदर्भों में काशी के अनेक नाम मिलते हैं जैसे अविमुक्त क्षेत्र,मोक्षभूमि, महाश्मशान , कृत्तिवासपुरी , आनन्दवन और काशीपुरी आदि। अविमुक्त क्षेत्र उस क्षेत्र को कहते हैं जिस क्षेत्र में शिव की उपस्थिति हर पल बनी रहती है। स्कन्द पुराण में यह भी कहा गया है कि जो काशी में प्राण त्याग रहा होता है , उस समय  भगवान शिव स्वयं तारण मंत्र (राम नाम) कान में देते  हैं — इसे कर्ण मंत्र कहा गया है और उस मृतक कोआवागमन से मुक्ति मिल जाती है ।

चंदौली (काशी के निकट) की लखनिया दरी गुफाओं में 8,000–10,000 वर्ष पुराने मानव बस्तियों के अवशेष पाए गए हैं , जिसके आधार पर पाषाण कालीन काशी के अस्तित्व को समझा जा सकता है। 

महाभारत में भीष्म द्वारा काशी की तीन राजकुमारियों (अंबा, अंबिका , अंबालिका) के हरण की कथा काशी और हस्तिनापुर के संबंध को दर्शाती है ।

 बाल्मीकि रामायण में काशी नरेश का अपमान व भगवान राम द्वारा उनके वध का प्रसंग भी मिलता है। 


ईसा पूर्व 6वीं शताब्दी में गौतम बुद्ध ने सारनाथ में पहला उपदेश "धर्मचक्र प्रवर्तन" दिए और यहीं पर पंचवर्गीय भिक्षुओं का प्रथम संघ भी बनाया गया था।


जैन धर्म के 7 वें सुपार्श्वनाथ और 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जन्म काशी में हुआ था और 11 वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म सारनाथ में , इस प्रकार जैन मान्यता के 25 तीर्थंकरों में से 3 का सीधा संबंध काशी क्षेत्र से है ।

सम्राट अशोक , सारनाथ में धर्मराजिका स्तूप व अशोक स्तंभ बनवाए थे ।

प्रारंभ में बताया गया कि काशी प्रथम मनु के 11 वें वंशज राजा  काश द्वारा बसाई गई है, अब इस संबंध प्रथम।मनु स्वायंभुव मनु के संबंध में कुछ बातों को समझ लेना चाहिए। श्रीमद्भागवत पुराण : 3.12.20 में ब्रह्मा के प्रारंभिक 11 निम्न पुत्रों की चर्चा की गई है …

मरीचि , अत्रि , अंगिरा , पुलस्त्य , पुलह , क्रतु , भृगु , वशिष्ठ, दक्ष , नारद और स्वायंभुव मनु । अब स्वायंभुव मनु - पहले मनु के समय के बारे में श्रीमद्भागवत पुराण में दी गई गणित के आधार पर समझते हैं …

ब्रह्मा का एक दिन 1000( चारयुगों की अवधि ) के बराबर मानी जाती है जो 4.32 billion human years के बराबर है। ब्रह्मा का एक दिन एक कल्प कहलाता है। एक कल्प में 14 मनु होते हैंएक मनु का समय 308.571 million years का होता है। वर्तमान का समय 7 वें मनु का समय है और इस प्रकार इस गणित के आधार पर लगभग 1.85 billion years पहले काशी नगरी पहले मनु के बंशज द्वारा बसाई गई थी। 

पहले मनु के समय गंगा यमुना का क्षेत्र ब्रह्मावर्त कहलाता था जिसके सम्राट पहले मनु हुआ करते थे और इनकी राजधानी यमुना तट पर बसी बर्हिष्मति हुआ करती थी। 

~~ ॐ ~~ 

Friday, June 13, 2025

वेद जिज्ञासा भाग - 02 वेद अंगों से परिचय


भाग - 02

वेद के 04 अंग

वेद जिज्ञासा भाग - 01 में बताया गया कि आदि सतयुग में प्रणव नाम से एक वेद था । समयांतर में एक वेद तीन वेदों में बट गया और द्वापर में एक और वेद विकसित हो गया । गुरु और शिष्य के मतभेद के कारण यजुर्वेद का कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद के रूप में विभाजन हो गया । ऋग्वेद , शेष वेदों की बुनियाद है । 

  संहिता , ब्राह्मण , आरण्यक और उपनिषद वेदों के अंग माने जाते हैं और इन चार अंगों के समूह को वेद कहते हैं ।  वेद के चार अंगों में संगीता शेष चार अंगों की जननी है ।


ऋग्वेद , यजुर्वेद ( शुक्ल और कृष्ण ) , सामवेद और अथर्ववेद में से जिस किसी वेद को जानने की जिज्ञासा उठे तब उस विशेष वेद के चार अंगों से गुजरना चाहिए। यह लेख वेदों के अंगों से परिचय कराने के उद्देश्य से तैयार किया गया है । 


वेद के चार अंग , वेद के एक क्रमिक विकास को दर्शाते हैं - बाह्य कर्मकांड (संहिता, ब्राह्मण) से प्रतीकात्मक और मानसिक साधना (आरण्यक) की ओर और फिर शुद्ध दार्शनिक ज्ञान एवं मोक्ष (उपनिषद्) की ओर। वेदांत दर्शन का मूल आधार इन्हीं उपनिषदों में निहित है।

वेद अंगों से परिचय 

क्र. सं .

अंग

अंगों। की शैली और मूल विषय

1

संहिता

चार वेद हैं और हर वेद की एकन्या एकणी अधिक संहिता है। संहिता अपनें वेद के मूल मंत्रों के संग्रह को कहते हैं जिनके आधार पर शेष तीन अंगों की रचना की गई है।

2

ब्राह्मण

कर्मकांड अर्थात यज्ञ एवं यज्ञ - विधियों का विस्तृत विवरण, व्याख्या आदि वेद के ब्राह्मण ग्रन्थ की विषय हैं । यह गृहस्थ यजमानों के लिए विकसित किए गए हैं।

3

आरण्यक

आरण्यक , आरण्य में रह रहे वानप्रस्थ जीवन जीने वालों के लिए साधना की उच्च भूमियों को प्राप्त करने के लिए रचे गए है।

4

उपनिषद् 

उपनिषद् ऐसे साधकों के लिए हैं जो ब्राह्मण एवं आरण्यक माध्यम से साधना की उच्च भूमियों में पहुंच चुके होते है , वैराव्यवस्था में होते हैं और कैवल्य मुखी होते हैं। ये ज्ञान योग के आधार हैं ।

ऊपर तालिका में वेदों के चार अंगों से संक्षिप्त रूप में परिचय कराया गया अब इन अंगों के विषय वस्तु को कुछ विस्तार से देखते हैं ….

1.  संहिता 

वेद के मूल मंत्र-संग्रह को उसकी संहिता कहते हैं। चार वेद हैं और हर वेद से संबंधित एक या एक से अधिक संहिताएं हैं । मूलतः संहिता के सूक्त / मंत्र पद्य शैली में होते हैं। ऋग्वेद में ऋचाएँ (स्तुतियाँ), यजुर्वेद में यजुष् (यज्ञ में प्रयुक्त गद्य मंत्र), सामवेद में सामन् (स्वरबद्ध मंत्र) और अथर्ववेद में अथर्व (जादू -टोना , टोटका , आयुर्वेद तथा दर्शन आदि ) संबंधित सूक्त / हैं। 


2. ब्राह्मण ग्रन्थ 

ब्राह्मण ग्रन्थ गृहस्थ जीवन जीने वाले यजमानों के लिए हैं। संहिता में दिए गए सूक्तों / मंत्रों के आधार पर कर्मकांड जैसे यज्ञ , यज्ञ - विधियों का विस्तृत विवरण, व्याख्या और औचित्य प्रस्तुत करना , इनका उद्देश्य है । ब्राह्मण अपने संबंधित वेद में प्रस्तुत यज्ञों के नियमों, विधियों, उनके प्रतीकार्थों, दार्शनिक आधारो , यज्ञके प्रत्येक कृत्य, मंत्र, द्रव्य और पुरोहित के कर्तव्यों का वर्णन करते हैं । यज्ञों को शास्त्रोक्त ढंग से, पूर्ण शुद्धता और प्रभावी ढंग से  सम्पन्न कराना , ब्राह्मण ग्रंथों का उद्देश्य है । ब्राह्मण ग्रन्थ कर्मकांड पर बल देते हैं और यज्ञ को ही सर्वोच्च धर्म व फलदायी मानते हैं। हर वेद का अपना एक या एक से अधिक ब्राह्मण ग्रन्थ हैं ।


3. आरण्यक ग्रन्थ  

आरण्यक ग्रन्थ वानप्रस्थी यजमानों के लिए उपयोगी हैं। ब्राह्मण ग्रंथों में दिए गए विषयों के तत्त्वों के सूक्ष्म भावों पर चित्त को केंद्रित बनाए रखने के अभ्यास पर , आरण्यक ग्रन्थ केंद्रित रखते हैं। ये ब्राह्मण ग्रंथों में दिए गए साधना से प्राप्त साधना की भूमियों से आगे उच्च भूमियों में पहुंचाते हैं। इनमें यज्ञ की आग को प्राणाग्नि, यज्ञक्रिया को मानसिक उपासना के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।


4. उपनिषद् 

 उपनिषद् अपने वेद के परम लक्ष्य और शुद्ध तत्त्व ज्ञान को प्रस्तुत करते हैं । वेदों का अंतिम भाग होने के कारण इन्हें वेदांत कहते हैं । उपनिषद् गहन दार्शनिक चिंतन पर केंद्रित हैं। इनमें मुख्य विषय , ब्रह्म (परम सत्य, समस्त सृष्टि का आधार), आत्मन् (व्यक्ति का शाश्वत तत्व), ब्रह्म और आत्मा की एकता (तत्त्वमसि, अहं ब्रह्मास्मि), माया (विश्व की व्यष्टि शक्ति), मोक्ष (जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति), ज्ञान मार्ग की श्रेष्ठता आदि हैं ।

 व्यक्ति को अज्ञान के अंधकार से निकालकर परम सत्य के प्रत्यक्ष ज्ञान (ब्रह्मज्ञान) की प्राप्ति कराना और उसके माध्यम से मोक्ष के द्वार तक पहुंचाना , उपनिषद् के उद्देश्य हैं । 

अगले लेख में वेदांगो से संबंधित विशेष जानकारी प्रस्तुत की जाएगी ।

~~ ॐ ~~