गीता ध्यान
ब्रह्म - ध्यान सन्दर्भ - गीता सूत्र 8.12 एवं 8.13गीता कहता है :ब्रह्म की अनुभूति मन - बुद्धि से परे की है [ गीता - 12.3 - 12.4 ] और यह भी कहता है :एक समय एक बुद्धि में एक साथ भोग और भगवान् को रखना संभव नहीं [ गीता - 2.42 - 2.44 तक ]अब देखिये गीता सूत्र - 8.12 - 8.13 में गीता क्या कह रहा है ?देह में उन मार्गों को बंद करें जिनसे मन - बुद्धि में संसार की हवा आती है । मन को अपनें ह्रदय में स्थापित करें । ॐ के माध्यम से प्राण - ऊर्जा को तीसरी आँख पर ले जा कर उसे वहीं केन्द्रित करें । जिस घडी .....जिस पल .....ऐसा संभव होगा ....उस घड़ी ....आप समाधि में होंगे और ....वहाँ आप को जो मिलेगा ...वह ही है ....अक्षरं ब्रह्म परमं [ गीता -8.3 ] अगले अंक में तीसरी आँख को खोजा जाएगा ॥ ==== ॐ =====
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