गीता ध्यान
भाग - 05ध्यान कोई कृत्य नहीं , यह प्रभु का प्रसाद है ॥ ध्यान करना एक कृत्य है जिसमें तन - मन को ऐसा तैयार किया जाता है जैसे पौध लगानें के लिए नर्सरी की तैयारी की जाती है । जैसे जब नर्सरी तैयार जो जाती है तब उसमें पौध उन बीजों से आते हैं जिनको इस में रोपा जाता है ठीक वैसे ही ध्यान नर्सरी में सात्त्विक गुण के पौध आते हैं जो प्रभु को ध्यानी के ह्रदय में उतारते हैं । ध्यान में तन मन एवं ह्रदय की सफाई होती है ; सफाई का भाव है - निर्विकार बनाना । इस बात को हमेशा याद रखें की :भोजन ....संगति.....निद्रा ....ब्यवहार ....रहन - सहन ....भाषा ....भजन .....इन सब के प्रति होश बनाना ही ध्यान है ॥ ==== ॐ =======
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