Saturday, June 20, 2015

भागवत से - 36

● भागवत स्कंध : 3 एवं 4 के 2648 श्लोकों में मैत्रेय - विदुर वार्ता है ।
 * इस वार्ता में मैत्रेय जी विदुर जी को कुल 61 बातें बताते हैं । # यदुकुल का जब अंत हो रहा था तब प्रभास क्षेत्र में सरस्वती तट पर कृष्ण उद्धव तो तत्त्व ज्ञान दे रहे थे और वहां मैत्रेय ऋषि भी उपस्थित थे । कृष्ण उद्धव से बोले ,जब तुमसे बिदुर मिलें तो उनसे कहना की कुशावर्त क्षेत्र गंगा द्वार मैत्रेय जी के आश्रम से वे इस तत्त्व ज्ञान मो ग्रहण करें । 
# जब उद्धव ज्ञान प्राप्त करके बदरिकाश्रम जाते हुए वृन्दाबन पहुंचे तब विदुरकी मुलाक़ात वहाँ उद्धव से हुयी । विदुर को मैत्रेय वृन्दावन में कृष्ण का यह सन्देश देकर बदरिकाश्रम चले गए और विदुर कुशावर्त क्षेत्र की यात्रा पर निकल पड़े । 
1- मैत्रेय जी अपनें आश्रम में विदुर को तत्त्व ज्ञान , सृष्टि ज्ञान , सृष्टि विस्तार रहस्य तथा समय की गणना के सम्बन्ध में बताया । 
2- वाराह अवतार और कश्यप - दिति पुत्रों हिरण्यकशिपु -हिरण्याक्षके इतिहास के सम्बन्ध में बताया ।
 3- स्वायम्भुव मनु कन्या देवहूति और कर्मद ऋषिके ब्याह एवं प्रभु कपिल मुनिके जन्म के सम्बन्ध में बताया ।
 4- कपिल मुनि जिस तत्त्व ज्ञानको माँ देवहूतिको दिया था, उसे बताया । 
5- स्वायम्भुव मनुकी अन्य कन्याओं के बंश तथा ध्रुव जी का इतिहास बताया । 
6- महाराजा पृथु ,सतीका अग्नि प्रवेश , दक्ष बध ,  पुरंजन की कथा  आदि भी बतायी ।
 <> कपिल मुनि के सबंध में कृष्ण कह रहे हैं ,
 ** सिद्धानाम् कपिलः मुनिः अस्मि ** 
>> गीता - 10 . 26 << 
" प्रभु कृष्ण गीता में अर्जुनको निराकार कृष्ण को समझानें केलिए साकार उदाहरणोंका सहारा लेते हैं और इस सन्दर्भ में कहते हैं कि सिद्धों में कपिल मुनि ,मैं हूँ । " 
 >> भागवत : 9.8 << 
* श्रीरामके वंशमें श्रीरामसे ऊपर सगर 23वीं पीढ़ी में हुए थे । सगर त्रिशंकु के बंश में 09 वें  बंशज थे ।त्रिशंकुके पुत्र थे हरिश्चन्द्र। सगर की दो पत्नियाँ थी सुमति और केशिनी जिनमें सुमति के  सभीं 60,000 पुत्र गंगा सागर पर कपिल मुनिके तेज से भष्म हो गए थे और दूसरी पत्नी केशिनी के चौथे बंशज हुए भगीरथ  जो अपनें 60,000 पूर्वजों के उद्धार हेतु गंगाको पृथ्वी पर लानें में सफल हुए थे जबकि इनके पहले दिलीप और दिलीपके पिता अंशुमान भी पूरी कोशिश गंगा को लानें हेतु की थी ।सगर की दूसरी पत्नी के बंश में क्रमशःअजमंजस ,अंशुमान , दिलीप और भगीरथ हुए ।
 ** स्वायम्भुव मनु जो इस कल्पके पहले मनु हुए , बह्माके दाहिनें भाग से उत्पन्न हुए थे और कर्मद ऋषि ब्रह्माकी( भागवत : 3.12 ) छाया से उत्पन्न हुए थे। कर्मद ऋषिका आश्रम विन्दुसर था जो सरस्वती नदी से तीन तरफसे घिरा हुआ होता था । यह स्थान उदयपुर -अहमदाबाद राज मार्ग पर स्थित है। आजका विन्दुसर अहमदावाद से 130 किलो मीटर दूर नगवासन ,सिद्धिपुर पाटनमें है । 
* स्वायम्भुव मनु का राज्य यमुना तट पर स्थित था जिसे ब्रह्मावर्त नाम से जाना जाता था और जहाँ  वाराह अवतार रूप में विष्णु  भगवान पृथ्वीको रसातल से ऊपर ले आयेथे ।वाराहका जन्म ब्रह्माके नाशापुटों से हुआ था । ब्रह्मावर्त की राजधानी थी , बर्हिष्मति ।
 * स्वायम्भुव मनु अपनी कन्या देवहूतिको ब्रह्मा के आदेश पर ब्याह हेतु विन्दुसर स्थित कर्मद ऋषिके यहाँ ले गए थे । कर्मद ऋषि सरस्वती तट पर ब्याह पूर्व 10,000 साल तक तप किया था ।कर्मद ऋषि को ब्रह्मा जी बोले थे कि अब तुम संतान पैदा करो।तपस्या जब पूरी हुयी तब प्रभु कर्मद ऋषि को दर्शन दिये थे।
 ** कर्मद और देवहूति से 09 कन्याएं पैदा हुयी और फिर प्रभु कपिलके रूप में 5वें अवतार में प्रकट हुए ।कपिल मुनि अपनी माँ देवहूतिको सांख्य योगका  ज्ञान दिया था । देवहूति अपनें पुत्र से वह ज्ञान प्राप्त करना चाहती थी जिससे परम गति प्राप्त हो सके ।
 ~~ ॐ ~~