Wednesday, May 27, 2015

भागवत - 35 - गंगा रहस्य

* भागवत : 9.9 > गंगा भगीरथ से कह रही हैं , " मैं पृथ्वी पर नहीं जाउंगी ,वहाँ लोग अपनें पाप मुझमें धोएंगे और मैं उन पापोंको कहाँ धोऊँगी ? भगीरथ कहते हैं , " आप चिंता न करें ।आपके तट पर ऐसे - ऐसे निबृत्त मार्गी सिद्ध लोग रहेंगे जिनके स्पर्श मात्रसे आपके अंदर इकट्ठा हुआ पाप भष्म होता रहेगा और आपकी निर्मलता बनी रहेगी "। यह बात ढ्यौन करनें योग्य है । ** गंगा रहस्य : भागवत : 5.16 +5.17 # सात द्वीपों में विभक्त पृथ्वीका केंद्र जम्बू द्वीप है । जम्बू द्वीपके केंद्र में इलाबृत वर्ष और मेरु पर्वत । मेरुके ऊपरमें है सुवर्णमयी ब्रह्माकी पूरी । इलाबृत्तके उत्तरमें क्रमशः नील पर्वत ,रम्यक वर्ष , श्वेत पर्वत , हिरण्य वर्ष , श्रृंगवान पर्वत और उसके उत्तर में उत्तर कुरु वर्ष है । उत्तर कुरुके उत्तर में सागर है । ** इलाबृतके दक्षिणमें क्रमशः निषध पर्वत ,हरि वर्ष , हेमकूट पर्वत , किम्पुरुष वर्ष , हिमालय पर्वत और उसके दक्षिण में है भारत वर्ष । ** इलाबृत्तके पूर्व में गंधमादन पर्वत और भद्राश्व वर्ष है । इलाबृत्तके पश्चिम में माल्यवान पर्वत और केतुमान वर्ष है । # गंगा ध्रुव लोक से चल कर मेरु पर्वतके ऊपर आती हैं और चार भागों में विभक्त हो जाती हैं । #1- मेरु से उत्तरमें उत्तर कुरु से हो कर सागर से जा मिलनें वाली गंगा की धारा को भद्रा कहते हैं । #2- मेरु से दक्षिणकी ओर बहनें वाली धारा को अलखनंदा कहते हैं जो भारत से बहती हुयी सागरसे जा मिलती हैं । इस अलख नंदा धारा को हम सब गंगा कहते हैं । #3- मेरु से पूर्व की ओर जो गंगा की धारा जाती है उसे सीता कहते हैं । #4- पश्चिम जा रही धारा को चक्षु कहते हैं । ~~यह है भागवतकी मूल कथा जिसे लोग समय -समय पर बदलते रहते हैं ~~ * गंगा शब्द गंगा के मेरु पर्वतके ऊपर उतरते ही लुप्त हो जाता है । जिसे आज गंगा कहते हैं वह अलखनंदा है । ~~~ॐ ~~~

Wednesday, May 20, 2015

भागवत से - 34

" In the beginning ,was the word and the word was with God and the word was God ."
~~ Gospel of John : 1.1~~
* सीधीसी बात गोस्पेलमें कही गयी *
" प्रारंभ शब्दसे हुआ और वह शब्द प्रभुसे प्रभुमें था " -- इस बातका दर्शन श्रीमद्भागवत पुराण स्कन्ध - 3 में कपिल मुनि अपनीं माँ देवहूतिको मोक्षका द्वार दिखानें हेतु सांख्य - योग ज्ञानके अंतर्गत कुछ इस प्रकार से दिया है ।
# माया से काल (time ) के प्रभाव के कारण महतत्त्वकी उपज हुयी ।
# महतत्त्व पर कालका प्रभाव जब पड़ा तब तीन अहंकार ( सत + राजस + तामस ) उपजे ।
# तामस अहंकारसे कालके प्रभावमें शब्दकी उत्पत्ति हुयी ।
# शब्दसे कालके प्रभाव में आकाश भूतकी उत्पत्ति हुयी ।
* आकाशसे स्पर्श , स्पर्शसे वायु , वायुसे रूप ,रूपसे तेज , तेजसे रस , रससे जल , जलसे गंध ,गंधसे पृथ्वीकी रचना हुयी ।
अर्थात
## पञ्च बिषय और पञ्च महाभूतोंकी रचना शब्दसे हुयी और ये 10 तत्त्व जीव निर्माणके मूल तत्त्व हैं । ** विज्ञान की आज की सोच भी कपिल मुनि की सोच से परे की नहीं दिखती ।
-- शेष अगले अंकमें --
~~ ॐ ~~

Friday, May 15, 2015

भागवत से - 33

भागवत से -- 33 
 ( कुछ वैज्ञानिक बातें - भाग - 2 )
 * यहाँ भागवसे कुछ ऐसे प्रमाण लिए जा रहे हैं जो यह स्पष्ट करते हैं कि बिना स्त्री - पुरुष सहयोगसे भी बच्चा पैदा किया जा सकता है । 
* जब ब्रह्मा यह देखे कि प्रजा बृद्धि हेतु उत्पन्न ऋषियों द्वारा
 प्रजा - बृद्धि की गति बहुत धीमी है तब वे स्वायम्भुव मनु और सतरूपाको आदेश दिये कि तुम दोनों मैथुन धर्मका पालन करते हुए प्रजा बृद्धि करो । 
* स्वायम्भुव मनु कहते हैं ," पिताजी ! प्रजा रहेगी कहाँ ,पृथ्वी तो है नहीं ? " 
 * ब्रह्मा सोचनें लगे और इतनें में उनकी नासिक से अंगूठे के बराबर आकार वाला एक वाराहका बच्चा पैदा हो गया । यह विष्णु का दूसरा वाराह अवतार था जो पृथ्वीको रसातल से ऊपर ले आया । 
* स्वायम्भुव मनुके प्रपौत्र ध्रुव बंशमें ध्रुव से आगे सातवें बंशज हुए सम्राट वेन । वेनकी भुजाओंका मंथन किया गया और फलस्वरूप सम्राट पृथुका जन्म हुआ ।
 <> कुछ और उदाहरण अगले अंकमें देखा जा सकता है <> ~~~ ॐ ~~~

भागवत से - 32

भागवत से - 32
कुछ वैज्ञानिक सोचके विषय -1
* इस समय बायो टेक्नोलोजी और जेनेटिक विज्ञानमें लिंग परिवर्तन और स्टेम सेलके प्रयोगसे प्रयोगशालामें जीव निर्माण जैसे बिषय समाज में आकर्षणके केंद्र बनें हुए हैं । इस बिषयमें भागवत पुराणके आधार पर कुछ बातें यहाँ दी जा रही है ।
# जब त्रिलोकी जलमग्न था ,पृथ्वी रसातलमें थी तब ब्रह्मा पानीके सतह पर कमलके ऊपर बैठ कर निम्न ऋषियोंकी उत्पत्ति की , बिना मैथुन धर्म अपनाए ।
1- नारदको अपनीं गोदीसे पैदा किया ।
2- वसिष्ठको अपनें प्राणसे उत्पन्न किया ।
3- मरीचिको मनसे पैदा किया ।
4- अत्रिको नेत्रोंसे पैदा किया ।
5- पुलस्त्यको कानसे पैदा किया ।
6- अंगीराको मुखसे पैदा किया ।
7- पुलहको नासिकासे पैदा किया ।
8- भृगुको त्वचासे पैदा किया ।
9- क्रतुको हाँथसे पैदा किया ।
10-दक्षको अंगूठेसे पैदा किया ।
11-कर्मद को अपनीं छायासे पैदा किया ।
12- स्वायम्भुव मनु ( पहले मनु : इस समय सातवें मनुका समय चल रहा है ) और सतरूपा उस समय पैदा हुए जब ब्रह्मा का शरीर दो भागों में विभक्त हो गया था । स्वयाम्भिव मनु और सतरूपा से मैथुन धर्म से प्रजा बृद्धि का काम शुरू हुआ था ।
** शेष भाग -02 में देखा जा सकता है **
~~~ ॐ ~~~