Monday, July 21, 2014

भागवत से - 19

* भागवत : स्कन्ध - 12
* भागवत में कलियुग की दी गयी झलकका एक अंश आप यहाँ देखें :---
* गृहस्थ और गधे में कोई फर्क न होगा ।
* अन्न के पौधे बावनें आकारके होंगे ।
* राजा लुटेरे होंगे ।
* सर्वत्र लुटेरों का आलम होगा ।
* धनवान कुलीन - सदाचारी माने जायेंगे और वे न्याय ब्यवस्थाको अपनें अनुकूल ढाल लेंगे।
* बोल -चाल में चतुर लोगों को ग्यानी समझा
जाएगा ।
* कहीं अति बृष्टि होगी तो कहीं एक बूँद भी नहीं पड़ेगी।
* बहुत तेज गर्मी पड़ेगी ,बहुत तेज जाड़ा पड़ेगी ।
~ ॐ ~

Tuesday, July 15, 2014

भागवत से - 18

●● कपिल मुनि और विन्दुसर तीर्थ ●● 
** सन्दर्भ : भागवत : 2.7+3.213.25+3.33+4.1+4.19+8.1, गीता - 10.26
**  कर्मद ऋषि ,स्वायम्भुव मनुकी पुत्री देवहुती , पांचवें अवतारके रूपमें कपिल मुनि और विन्दुसर क्षेत्रका गहरा सम्बन्ध है । कर्मद ऋषिकी पत्नी थी देवहूति और कपिल मुनि इनके पुत्र 
थे । विन्दुसर कर्मद जीका आश्रम था । गीता में कृष्ण अर्जुन से कहते हैं सिद्धानां कपिलः मुनिः अहम् (गीता -10.280) । 
●● कहाँ हैं विन्दुसर ? गुजरात में ( नगवासन , सिधिपुर ,पाटन ) उदयपुर -अहमदाबाद मार्ग पर अहमदाबाद से 130 किलो मीटर दूरी पर विन्दुसर है । सिधिपुरका सन्दर्भ एक तीर्थके रूप में ऋग वेदमें भी है । विन्दुसरका मुकुट थी , सरस्वती नदी जो इसे तीन तरफ से घेरे हुए थी । विन्दुसर में सरस्वतीका पानी भरा रहता था । यहाँ कर्मद ऋषि अपनें ब्याह पूर्व 10000 वर्षका तप किया और नारायणका आशीर्वाद प्राप्त किया था।
 ** यह कथा सत्युगके प्रारम्भकी है और स्वयाम्भुव मनु तक 06 मनवन्तर बीत चुके थे ।कपिल मुनिका अवतार सांख्य दर्शनको फैलानें हेतु हुआ माना जाता है । कपिल की माँ देवहूतिके गर्भसे 09 कन्याओं एवं कपिल जी का जन्म हुआ जिनको पाँचवाँ अवतार माना जाता है । एक दिन देवहूति निर्वाण प्राप्ति हेतु अपनें पुत्र प्रभु कपिलसे इच्छा जाहिर की और कपिल जी इस सन्दर्भमें माँ को जो सांख्यका उपदेश दिया, उसका सार गीता के रो में प्रभु कृष्ण अर्जुन को दिया ।
 °° क्या है सांख्य -योग ? °°
 * हिन्दू परम्परामें न्याय , पूर्व मीमांस , वैशेशिका, योग , वेदान्त और सांख्य ये छ: आस्तिक मार्ग बताये गए हैं ।
 ●● गीताके 700 श्लोकों में प्रभुके 574 श्लोक हैं जिनमेंसे लगभग 100श्लोक सांख्य-योग पर आधारित हैं । गीता में मुख्यरूप से अध्याय 7,8,13,14 और15, में सांख्य -योग के सूत्र दिखाते हैं जहाँ प्रकृति -पुरुषके सअम्बंध में कुछ बातें हैं। गीताका आधार है बिषय , इन्द्रिय और मनको गुण तत्त्वोंके सम्मोहनके सन्दर्भ में समझना और गुण तत्त्वोंसे सम्मोहनके प्रति होश उपजाना। सांख्य एक निर्मल शुद्ध गणित जैसा माध्यम था लेकिन धीरे -धीरे इसे भी लोग जीनें नहीं दिए , इसे भी रूपांतरित किये बिना रुके नहीं । 
<> आत्मा और ब्रह्मका एकत्वकी अनुभूतिके गणित का नाम था सांख्य <> 
● स्वायम्भुव मनु ब्रह्माके आदेश पर अपनी पुत्री एवं पत्नी सतरूपा के संग विन्दुसरकी यात्रा की और कर्मद जी के साथ देवहूति का ब्याह कर दिया ।कर्मद अपनी पत्नी के सुख सुविधा हेतु विमान का आविष्कार किया । विमान बहुमंजली इमारत जैसी एक समुद्रिन्जहाज जैसी थी जिसमें सभीं सुख -सुविधाएं उपलब्ध थी । कर्मद दीर्घ काल तक मेरु की घाटी में भ्रमण करते रहे ।
 ●● कहाँ है मेरु पर्वत ? 
**  जम्बू द्वीप के मध्य में इलाबृत्त वर्ष होता था और उसके मध्य में मेरु मेरीपर्वत । मेरुके दक्षिण में निषध पर्वत , हरी वर्ष ,हेमकूट पर्वत ,किम्पुरुषवर्ष फिर हिमालय पर्वत और उसके दक्षिण में भारत वर्ष ।मेरुके उत्तर में क्रमशः नील पर्वत ,रम्यक वर्ष , श्वेत पर्वत , हिरण्यम देश फिर श्रृंगवान पर्वत और उत्तर कुरु वर्ष होता था ।कर्मद जी मानस सरोवर के क्षेत्र में भ्रमण किया ।
 ● विन्दुसर  तीन तरफ से सरस्वती से घिरा हुआ था और इसमें पानी सरस्वती से आता था । विन्दुसर से पृथुदक और पृथुदक से प्रभास क्षेत्र और प्रभास क्षेत्र के पश्चिम में सरस्वती सागर से मिलती थी । विन्दुसर से पहले सुदर्शन तीर्थ और उसके पहले विशाल तीर्थ पड़ता था । 
 ● स्वयंभुव मनुका राज्य यमुनाका तटीय प्रदेश होता था जहाँ वराह के रूप में ( दूसरा अवतार ) प्रभु पृथ्वी को रसातल से ऊपर लाये थे और इसकी राजधानी थी बहिर्षमति । अपनें अंत समय में स्वयंभुव मनु सुनंदा नदी के तट पर 100वर्ष तक एक पैर पर खड़ा रह कर तप किया था ।स्वयंभुव मनु की कन्याओं का ब्याह नौ ऋषियों से हुआ जो थे - भृगु ,मरीचि,अत्रि ,अंगीरा ,पुलस्त्य , पुलह ,क्रतु ,वसिष्ठ और अथर्वा । कपिलके सांख्यके माध्यमसे देवहूति निर्वाण प्राप्त किया और स्वयंभुव मनु बन में वैराग्य ले लिया और परम धाम की यात्रा किया ।
 ● क्या था कपिलका सांख्य-दर्शन ? ^ प्रभु से प्रभु में तीन गुणों का एक माध्यम है जिससे एवं जिसमें वह स्वयं है और यह ब्यक्त संसार है ।तीन गुणोंका माध्यम ही माया कहलाती है । ^ काल अर्थात समय प्रभुका ही दूसरा नाम है। ^ माया पर कालका प्रभाव तीन अहंकारोंको पैदा करता है । 1- सात्विक अहंकार पर कालका प्रभावके फलस्वरूप मन और 10इन्द्रियों के अधिष्ठाता देवताओं की उत्पत्ति होती है । 2- राजस अहंकार और काल से बुद्धि , प्राण और 10 इन्द्रियों का जन्म  होता है । 3- तामस अहंकार पर कालके प्रभावसे -- 3.1>तामस अहंकारसे कालके ओरभव में शब्द उपजता है। 3.2>शब्दसे आकाश महाभूतका जन्म होता है। क्योंकि आकाशका गुण है शब्द और शब्द बिषय है। 3.3>आकाशसे स्पर्श तन्मात्र पैदा होता है। 3.4>स्पर्शसे वायु महाभूतका जन्म होता है। 3.5>वायुसे रूप बिषय उपजता है । 3.6>रूप तन्मात्रसे तेज ( अग्नि )महाभूतकी उत्पत्ति होती है। 3.7>तेजसे रस बिषय उपजता है। 3.8> रससे जल महाभूतकी उत्पत्ती होती है। और जलसे गंध बिषय उपजता है। 3.9> गंध पृथ्वीका गुण है अतः गंधसे पृथ्वीकी उत्पत्ति होती है <> कपिल कहते हैं <>
 ** जो है वह सब माया और कालके कारण है। ** यह संसार और संसारकी ब्यक्त सभीं सूचनाएं पांच महाभूतों एवं पांच बिषयोंसे हैं और ----- 
** ये तत्त्व अहंकारके ऊपर पड़ी कालकी गतिसे हैं ।
 ** महत्तत्त्व शुद्ध चित्त है जिसे ब्रह्मके रूपमें अब्यक्त - अप्रमेय के रूप में समझा जा सकता है । 
---- ॐ ----

Tuesday, July 8, 2014

भागवत की कौशिकी नदी

● भागवत की कौशिकी नदी ●
<> कौशिकी नदी <>
^ यहाँ भागवके उन प्रसंगोंको दिया जा रहा है जिनका सीधा सम्बन्ध कौशिकी नदी से है । आप इनको देखें और स्वतः कौशिकी ऐतिहासिक नदी के सम्वन्ध में सोचें ।
^ सन्दर्भ : 9.14+9.15 , 1.18.24-37, 10.78-10 .79 ,
1- भागवत : 9.14+9.15
● कुरुक्षेत्रमें सरस्वतीके तट पर राजा पुरुरवा और उर्बशी का मिलन हुआ । पुरुरवा -उर्बशी को 06 पुत्र हुए जिनमें 5वें पुत्र विजय के बंश में 7वें बंशज गाधि के पुत्र हुए विश्वामित्र और कन्या हुयी सत्यवती ।सत्यवती यमदाग्नि की माँ थी और यमदाग्नि के पुत्र थे परसुराम ।बाद में सत्यवती परम पवित्र कौशिकी नदी बन गयी थी।
2- भागवत :1.18.24-37
●राजा परीक्षित शिकार खेलते हुए बहुत दूर निकल गए और जब वे भूख - प्यास से ब्याकुल होनें लगे तब पासमें स्थित एक आश्रम में प्रवेश कर गए जहाँ समीक मुनि समाधि में उतर चुके थे । वे मुर्तिवर वहाँ थे , आश्रम में सम्राटके स्वागत के लिए कोई न था । परीक्षित आवाजें लगाते रहे लेकिन वहाँ कौन था जो उनका अभिबादन करता ? सम्राटको क्रोध आया और वे बिना सत्य को समझे समीक मुनिके गले में एक मृत सर्प को लटका कर आश्रम से बाहर चले गए ।  ● कुछ दूरी पर समीक मुनि का पुत्र श्रृंगी कौशकी नदी के तट पर ही थे , जब उनको अपनें पिताके अपमानके सम्बन्ध में पता चला तब वे कौशिकी नदीमें आचमन करके सम्राट परीक्षितको श्राप दिया - " सम्राट ! तूँ जा लेकिन ठीक आज से सात दिन बाद तेरी मौत तक्षकके डंक मारनेंसे होगी ।
● ब्राह्मणके श्रापका पता परीक्षितको मिला और परीक्षित गंगा तट पर अपनें मौतकी तैयारीमें जुट
गए ।
3- भागवत :10.78+10.79
● महाभारतके समय बलरामकी तीर्थ - यात्रा ●
# बलराम युद्धके पक्षमें न थे और जब उनको यकीन हो गया कि अब युद्ध को टाला नहीं जा सकता तब वे तीर्थ यात्रा पर निकल पड़े । प्रभास क्षेत्र से वे उस दिशा में चल पड़े जिधर से सरस्वती आ रही थी । सरस्वती के किनारे - किनारे वे पृथुदक, विन्दुसर, मितकूप, सुदर्शन तीर्थ,विशाल तीर्थ ,ब्रह्म तीर्थ , चक्र तीर्थ , और पूर्ववाहिनी तीर्थों की यात्रा की । इसके बाद यमुना के तट पर स्थिर तीर्थो पर गए और फिर गंगा तट के तीर्थो में पहुँच कर पूजा किया । गंगा तट से वे नैमिष आरण्य गए जहां ऋषियों का सत्संग चल रहा था । नैमिष आरण्य से कौशिकी नदी के तट पर आये और स्नान करके उस सरोवर पर गए जहां से सरयू नदी चलती हैं । सरयू नदी के तट से कुछ यात्रा की फिर तट को छोड़ कर प्रयाग गए ।
~~ यहाँ आप देखें ~~
● सरयू नदी बहराइच नें करनाली नदी एवं महा काली ( शारदा ) नदियों के संगम से प्रारम्भ होती है । करनाली नदी मानसरोवर क्षेत्र से और महाकाली पिथौरागढ़ के कालापानी क्षेत्र से आती है ।
● कुछ लोग मध्य प्रदेश में भिंड क्षेत्र में कौशकी नदी के होनें की बात करते हैं लेकिन भागवत के ऊपर दिए गए सन्दर्भों से…
● यह नदी गोमती और गंगा के मध्य होनी चाहिए ।
--- ॐ ---

Saturday, July 5, 2014

भागवत की तीन नदियाँ

<>भागवत की तीन  नदियाँ <> 
1- पुष्पभद्रा नदी 2- सरस्वती नदी 3- इक्षुमती नदी ।
 1- पुष्पभद्रा नदी सन्दर्भ : भागवत : 12.8.17+12.9.7 * हिमालय के उत्तर में यह नदी हुआ करती थी । इस नदीके तट पर भृगु बंशके ऋषि मृकाण्डा ऋषि के पुत्र मार्कंडेय ऋषि का आश्रम हुआ करता था ।आश्रम के पास चित्रा नाम की एक शिला थी । नदी की घाटी में गणेश जी का सर प्रभु शिव काटे थे और उस जंगलके एक हांथीके सरको काट कर उस हांथीके सरको गणेशके देहके साथ जोड़ा था । 
2- सरस्वती नदी : सन्दर्भ : भागवत : 1.3.10 + 1.7.1-8 +2.7.3 + 3.6.1-2+3.21.6+3.21.33+3.2138 3.24.9-10+4.19.1+9.14.32-35 +10.34 + 11.3.27+11.30.6 *
भागवत 10.34 में कहा गया है - शिव रात्रि के दिन नन्द समुदाय अम्बिका बन की यात्रा किया , वहाँ सरस्वती में स्नान करके शिव - पार्वती की पूजा किया ।वहाँ प्रभु शंख चूड अजगर का उद्धार किया जो नन्द को निगलना चाह रहा था । महाभारत युद्ध के समय पांडव सेना सरस्वती नदी के पश्चिमी तट पर ठहरी थी । राजा पुरूरवा और उर्बशी का मिलन सरस्वती नदी के तट पर कुरुक्षेत्र में हुआ था ।यह नदी ब्रह्मावर्त क्षेत्र में पूर्वमुखी थी । वेद ब्यास का आश्रम सरस्वती नदी के पश्चिमी तट पर था जहां बेरों का जंगल होता था और साम्याप्रास आश्रम भी उसके पास में था जहाँ हर समय यज्ञ हुआ करते थे । कपिल मुनिके पिता कर्दम ऋषि का आश्रम विन्दुसर क्षेत्र में था जो सरस्वती नदी से घिरा हुआ क्षेत्र था तथा इस सरोवर में सरस्वती का जल भरा रहता था । कर्दम ऋषि का व्याह ब्रह्मावर्त के सम्राट स्वयंभू मनु की कन्या देवहूति से हुआ था । प्रभु कपिल विष्णुके पांचवें अवतारके रूपमें माँ देवहूतिके गर्भ से नौ बहनों के साथ पैदा हुए थे और सांख्य दर्शन का ज्ञान अपनीं माँ को विन्दुसर में दिया था ।कर्दम ऋषि ब्याह पूर्व 10000 वर्ष की तपस्या यहाँ पूरी की थी । विन्दुसर सदैव से तीर्थ रहा है जहाँ प्रभु विष्णु की करुणा भरी आंसूकी बूँदें कर्मद ऋषिके तपके सन्दर्भमें टपकी थी । प्रभास क्षेत्र पवित्र तीर्थ क्षेत्र होता था जहांसे समुद्र के अन्दर स्थित द्वारका ,नावोंके माध्यमसे जाया जाता था । प्रभास क्षेत्रमें यदु बंशका अंत हुआ था और प्रभु उस समय यहाँ सरस्वती नदी के तट पर एक पीपल पेड़के नीचे बैठे थे और वहीं से वे परम धाम गए । प्रभास क्षेत्रके पश्चिममें सरस्वती सागर में गिरती थी ।
3- इक्षुमती नदी : सन्दर्भ : भागवत : 5.10 *
सिन्धु सौबीर का राजा रहूगण इक्षुमती नदी पार जा रहा था । नदी के तट पर जड़ भरत एक साधारण ब्यक्तिके रूपमें राजाको सांख्य योग का ज्ञान दिया । कहीं यह भी मिलता है कि इक्षुमती कुरुक्षेत्र से सिंध की ओर लगभग सरस्वती के समानांतर बहती थी । कपिलजीका आश्रम विन्दुसर - क्षेत्र एक तरफ सरस्वती नदी और दूसरी तरफ इक्षुमती से घिरा हुआ था । नेपाल के प्राचीनतम इतिहास में तिब्बत की ओर से इस नदी के आनें की बात भी मिलती है । 
~~ ॐ ~~