Sunday, June 29, 2014
भागवत से - 17
Wednesday, June 25, 2014
भागवत से - 16
Tuesday, June 24, 2014
भागवतसे - 15
Friday, June 20, 2014
भागवत से - 14
● कनखल और हरिद्वार ( भाग - 1 ) ●
# भागवत : खंड - 1 महात्म्य : अध्याय -3 #
<> गंगाद्वारके समीप आनंद आश्रम पर सनकादि ऋषियोंद्वारा नारदको भागवत कथा सुनाई गयी थी । नारद भक्ति एवं भक्ति पुत्रों ज्ञान - वैराग्यके उद्धार हेतु इस कथाका आयोजन किया था । जरा सोचना कि यह स्थान कहाँ रहा होगा ?
* आनंद आश्रमके चारो तरफ हांथी ,शेर जैसे जानवर भी प्यार से रहा करते थे।यहाँ गंगा की रेत अति कोमल होती थी और यहाँ हर समय कमल की गंध रहती थी। इस आश्रम पर सिद्ध ऋषियों का आवागमन लगा रहता था ।
* भागवत : 3.5 > मैत्रेय ऋषिके आश्रमके सम्बन्ध में यहाँ द्वार शब्द आया है ।विदुर जी को जब प्रभात क्षेत्र पहुँचने पर पता चला कि अब महा भारत युद्ध समाप्त हो गया है ,हस्तीनापुर के सम्राट युधिष्ठिर हैं तब वे वहाँ से सरस्वती तटसे वापिस होते हुए बृंदा बन पहुंचे जहाँ उनकी मुलाकात उद्धव से हुयी थी । उद्धव उनको तत्त्व ज्ञान प्राप्त करनें हेतु द्वार समीप मैत्रेयके आश्रम जानें की बात कही थी । गंगा द्वार के समीप वह कौन सी पवित्र जगह हो सकती है जहाँ मैत्रेय ऋषि का आनंद आश्रम हुआ करता था ?
* भगवत : 3.20 : मैत्रेयका आश्रम कुशावर्त क्षेत्र में था ।यहाँ मैत्रेय आश्रम को कुशावर्त क्षेत्रमें बताया गया है जो द्वार के पास में था ।
* भागवत : 11.1+11.30 जब यदुकुलके अंत जा समय आया ,उस समय प्रभु अकेले सरस्वती नदी के तट पर पीपल पेड़के नीचे शांत हो कर बैठे थे । प्रभात क्षेत्र का यह वह स्थान था जहाँसे पश्चिम दिशामें सरस्वती सागर में गिरती थी । उस समय वहाँ उद्धव और मैत्रेय ऋषि उनके साथ थे । इन दोनो को प्रभु तत्त्व ज्ञान दे रहे थे । प्रभु जब तत्त्व ज्ञान दे चुके तब मैत्रेयको बोले कि आप इस ज्ञान को विदुर जी को देना और उद्धव जी से बोले कि अब तुम बदरिकाश्रम जा कर वहाँ समाधि योग में स्थित हो जाओ ,वह भी मेरा ही क्षेत्र है ।
~~ ॐ ~~