Tuesday, December 31, 2013
भागवत स्कन्ध - 11.1 कथा सार
Wednesday, December 25, 2013
भागवत स्कन्ध -6 के सार
●भागवत स्कन्ध - 6 ●
°° इस स्कन्धके 19 अध्यायों में 848 श्लोक हैं ।
* इस स्कन्धकी कुछ अमूल्य बातें :---
1- कर्म से पाप वासनाएं समाप्त नहीं हो सकती लेकिन भोग - कर्म आसक्ति रहित कर्म बन सकता
है । आसक्ति रहित कर्म को कर्म योग कहते हैं और इससे नैष्कर्म्य की सिद्धि प्राप्ति के बाद ज्ञान प्राप्त होता है । ज्ञान एवं वैराग्य साथ साथ रहते हैं और दोनों परम गति की यात्राजे उर्जा श्रोत हैं ।
2- धर्मक्या है ? वेदआधारित कर्म ही धर्म है।
3- जीवधारी बिना कर्म एक पल भी नहीं रह सकता : देखें यहाँ गीता : 3.5+18.11सूत्रों को भी ।
4- माया दोनों ओर बहनें वाली नदी जैसी है : एक है सृष्टि और दूसरी है प्रलय।
5- 25 तत्त्वोंके घरमें पुरुष रहता है : 25 तत्त्व हैं - 10 इन्द्रियाँ + 04 अन्तः करण + गुण + 05 महाभूत +05 बिषय ।।
6- काल निरंतर चलता हुआ चक्र है और काल प्रभु का ही नाम है ।
7- बिषयोंका गहरा अनुभव वैराज्ञमें पहुंचाता है ।
8- मनुष्य जीवनका एक लक्ष्य है ; ब्रह्म और आत्माके एकत्वको समझना ।
9- तीन गुण आत्माके नहीं प्रकृतिके हैं ।
10- स्त्रियाँ अपनी कालासाओं केलिए कुछ भी कर सकती हैं । वे अपनीं लालसाओं की कठपुतली होती हैं ।
* अब कुछ और बातें :---
^ शूरसेनके सम्राट चित्रकेतुको एक करोड़ पत्नियां थी पर थे औलाद हीन ।
^ चित्रकेतु एक करोड़ वर्ष तक सुमेरु पर्वतकी घाटीमें विहार किया ।
^ विन्ध्याचल पर्वतके साथके पर्वतों पर अघमर्षण तीर्थ है जहां दक्षको प्रभुके दर्शन हुए थे ।
^ दक्ष पञ्चजन कन्या असिक्नीसे ब्याह किया और 10,000 पुत्र पैदा किये ।
~~~ ॐ ~~~
Saturday, December 21, 2013
भागवत से कुछ सूत्र
भागवत साधना सूत्र - 03
1- भागवत : 1.3 > अज्ञान की बृत्तियाँ - अविद्या , मोह , राग ,द्वेष ,अभिनिवेश ।
2- भागवत : 1.7 > निर्मल मन माया और मायापति का द्रष्टा होता है ।
3-भागवत : 1.6> जिस बस्तुके खानें से जो रोग होता है उस बस्तु में उस रोग की दवा होती है ।
4-भागवत : 1.1 > इन्द्रिय - मन तंत्रकी पहुँच जहाँ तक है उसकी तह में जो होता है वह है प्रभु ।
5-भागवत : 11.19 > तप क्या है ? जिससे कामनाओं का उठाना समाप्त हो ,वह तप है ।
6-भागवत : 4.20 > शुद्ध चित्तकी स्थिति ही कैवल्य है ।
7-भागवत : 4.18 > बुद्धिमान ब्यक्ति भ्रमर जैसा होता है जो सर्वत्र से ज्ञान अर्जित कर लेता है ।
8-भागवत : 2.1> महत्तत्व क्या है ? आत्मा का नाम महत्तत्व है ।
9- भागवत : 2.7 > वैदिक या लौकिक किसी भी शब्द की पहुँच प्रभु तक नहीं ।
10-भागवत : 2.8 > जीवका कोई सम्बन्ध पञ्च भूतों से नहीं लेकिन जीवका शरीर पञ्च भूतों से निर्मित होता है ।
~~ ॐ ~~~
Tuesday, December 17, 2013
प्रभु रामका बंश
● हे राम ●
~ भागवत आधारित कथा ~
* द्रविण देशके योगी सत्यब्रत जो पिछले कल्पके अंत में हुयी नैमित्तिक प्रलयके एक मात्र द्रष्टा थे , इस कल्पमें विवस्वान् के पुत्र, सातवें मनु श्राद्धदेव हुए । श्राद्धदेवको वैवस्वान मनु भी कहते हैं ।
* श्राद्धदेव पुत्र प्राप्ति हेतु यमुना तट पर 100 वर्ष तक तप किया और 10 पुत्र प्राप्त हुए जिनमें बड़े थे इक्ष्वाकु और इक्ष्वाकुके बड़े पुत्र थे विकुक्षि ।इक्ष्वाकु मनुके छीकनें से उनकी नासिका से पैदा हुए थे । विकुक्षिके बंश में आगे 15वें बंशज हुए युवनाश्व।युवनाश्वके दाहिनें कोख से मान्धाता ( 16वें बंशज - विकुक्षि के ) पैदा हुए । मान्धाताकी पुत्री विन्दुमतीके वंशमें ( 17वें बंशज ) आगे हुए पुरुकुत्स(18वें बंशज -विकुक्षिके ) । पुरुकुत्स नागोंकी बहन नर्वदासे ब्याह किया।
* इस बंशमें आगे त्रिशंकु हुए ,त्रिशंकु के पुत्र थे हरिश्चन्द्र । इस परिवार में आगे रघु हुए , रघुसे दशरथ और दशरथसे श्री राम । श्रीरामके पुत्र कुशके बंशमें कुश के आगे 26 वां बंशज हुआ तक्षक । तक्षक परीक्षित को डसा और परीक्षितका अंत हुआ । ** आप देख रहे हैं कि मान्धाता पुत्री विन्दुमती के पुत्र पुरुकुत्सबंशमें श्री राम पैदा हुए और पुरुकुत्स का ब्याह नागों की बहन से हुआ अर्थात श्री रामके अन्दर सर्प बंशका भी DNA था और श्री राम के बाद उनका 27वां बंशज तक्षक हुआ जो जब चाहे सर्प बन जाए और जब चाहे मनुष्य ।
** यह वही तक्षक है जो ज्ञान -विज्ञान की संसारका पहला विश्वविद्यालय स्थापित किया उस स्थान पर जो संसारके ब्यापारिक मार्गोंका संगम था और जिका नाम रखा गया तक्षिला जो आज पाकिस्तान में इस्लामाबाद के पास है ।तक्षिलासे पाणिनि , चरक और कौटिल्य जैसे ज्ञानी - विचारक पैदा हुए ।
~~ ॐ ~~
Monday, December 9, 2013
कुरुक्षेत्र कहाँ है ?
Thursday, December 5, 2013
भागवत साधना सूत्र - 2
1- भागवत : 1.2 > शब्दसे दृश्य एवं द्रष्टा का बोध होता है और शब्द आकाशका गुण है।
2- भागवत : 1.3 > सृष्टि पूर्व न दृश्य था न द्रष्टा
था , जो था , वही परमात्मा है ।
3- भागवत : 3.5> द्रष्टा और द्रश्यका अनुसंधान करनें की उर्जा ही माया है ।
4- भागवत : 1.3> संसारमें दो प्रकारके लोग खुश
हैं ; एक वे जो मूढ़ हैं और दुसरे वे जो स्थिर
प्रज्ञ हैं ।
5- भागवत : 1.3 > अनात्मा बस्तुयें हैं नहीं , हैं जैसा प्रतीत होती हैं ।
6- भागवत : 1.3 > विषयोंका रूपांतरण ही काल का आकार है ।
7- भागवत : 2.1> काल प्रभुकी चाल है ।
8- भागवत :3.21.41> ब्रह्म काल चक्रकी धूरी हैं । 9- भागवत : 7.7 > बुद्धि की बृत्तियाँ - जाग्रत , स्वप्न और सुषुप्तिकी अनुभूति करनें का श्रोत , भगवान है ।
10- गीता - 10.30 > कालः कलयतां अहम् । 11- भागवत : 5.1> इन्द्रियोंका गुलाम जन्म - मृत्युके भयमें बसता है ।
~~ ॐ ~~
Wednesday, December 4, 2013
भागवत -गीता के साधना सूत्र - 1
1~ सात्विक गुण प्रभुका दर्शन कराता है ।
2~ सृष्टि प्रभुके नारायण रूप से जो 16 कलाओंसे युक्त है ( कलाएं - 10 इन्द्रियाँ + 5 महाभूत + मन ) उससे है ।
3~ प्रभु सभींके अन्दर - बाहर एक रस है ( गीता - 13.15 ) ।
4~ प्रभुका कोई प्रिय - अप्रिय नहीं (गीता - 5.14-5.15 + 9.29 ) ।
5~ धर्म के चार चरण ----- *तप+सत्य+दया+पवित्रता *
6~ होशका एक घडीका जीवन बेहोशीके सौ सालके जीवनसे अधिक आनंददायी होता है
7~ वैराज्ञमें गुण तत्त्वोंकी पकड़ नहीं होती (गीता - 2.52 )।
8- दुःख संयोग वियोगः योगः (गीता - 6.23 )। 9~ योगमें आसन , श्वास , आसक्ति , इन्द्रियों की गति , मनकी चाल पर नियंत्रण रखनेंका अभ्यास किया जाता है ।
10~ मायातीत एक से अनेक होनें में काल, कर्म और स्वभावको स्वीकारा है ।
~~~ ॐ ~~~