Friday, November 29, 2013

कलियुगकी तस्बीर

● भागवत स्कन्ध 12.1● 
सन्दर्भ : अध्याय 1 से 3 तकका सार कुछ इस प्रकार है :--- * परीक्षितसे सन 2013 तकका समयकी गणना भागवत में इस प्रकारसे है :--- 1115+137+185+2013>3450 वर्ष अर्थात महाभारत युद्ध हुए 3450 वर्ष हुए । 
<> भागवत कलि युग की एक तस्बीर प्रस्तुत करते हुए कह रहा है : 
 ● जैसे -जैसे कलियुग गहराता जाएगा वैसे - वैसे सौराष्ट्र , अवंती , आभीर , शूर , अर्बुद और मालव देशके ब्राह्मण संस्कार शून्य हो जायेंगे और वहाँके राजा शुद्र तुल्य होंगे ।
 ● जिसके हाँथ में शक्ति होगी वही धर्म और न्यायकी ब्यवस्था करेगा । 
● ब्राह्मण साधनासे नहीं यज्ञोपवीत और जातिसे पहचानें 
जायेंगे ।
 ● सत्यकी राह पर चलनें वाला अदालतसे न्याय नहीं प्राप्त कर सकेगा। 
● जो ज्यादा बोलेगा उसे महान पंडित समझ जाएगा । 
● गरीबी एक मात्र पहचान होगी असाधुता और दोषी होनें की ।
 ● अधिक वारिश ,सखा , अधिक गर्मी ,अधिक शर्दी , बाढ़का प्रभाव रहा करेगा । 
● छोटे कद के अन्नके पौधे होंगे ।
 ● बिजली अधिक चमकेगी पर वर्षात कम होगी। 
● मनुष्य बिषयी होंगे । 
● स्त्रियोंका कद छोटा होगा । 
● परीक्षित-जन्मके समयका ज्योतिष :- 
^ जब सप्त ऋषि उदय होता है तब पहले दो तारे दिखते हैं । उनके बीच यदि दक्षिण-उतर दिशामें एक रेखा खीची जाए तो अश्वनी आदि नक्षत्रोंमें से एक उस रेखाके मध्यमें दिखता है । उस नक्षत्रके साथ सप्त ऋषि सौ वर्ष रहते हैं । 
 ● परीक्षितके जन्मके समय और मृत्युके समय मघा नक्षत्र था । * पृथ्वीको जीतनेंकी अभिलाषावाले राजाओं पर पृथ्वी हसती है और कहती है :--
 <> ये स्वयं मौतके खिलौनें हैं और मुझे जीतना चाहते हैं , ये बेहोशीमें भाग रहे हैं । 
* कलियुगमें पाखंडी लोग छा जायेंगे और नया -नया पंथ चलाएंगे तथा वेद बचनको तर्कके आधार पर अपनी सोचके अनुरूप प्रकट करेंगे और लोग उनसे प्रभावित भी होंगे। 
~~ ॐ~~~

Wednesday, November 27, 2013

कृष्ण - धन्वन्तरि

● कृष्ण और धन्वन्तरि ● 
सन्दर्भ : भागवत 9.1+9.15 
* सांख्य योगके जनक प्रभु श्री कृष्ण और आयुर्वेदके जनक धन्वन्तरि का बंश एक है । कृष्ण 20वें अवतारके रूपमें देखे जाते हैं और धन्वन्तरिको 12वें अवतार रूप में देखा जाता है ।अब आगे की कथाको देखते हैं ----
 * धन्वन्तरि 
 > ब्रह्मा पुत्र मरीचि ,मरीचि पुत्र कश्यप ऋषि , कश्यप के पुत्र थे , विवस्वान् विवस्वान् के पुत्र हुए सातवें मनु श्राद्धदेव । एक कल्प में चौदह मनु होते हैं और श्राद्ध देव इस कल्पके सातवें मनु हैं । 
* श्राद्ध देवको कोई संतान न होनेंसे वे चिंतित रहते थे । वसिष्ठ ऋषि मित्रावरुणका यज्ञ कराया , पुत्र प्राप्ति हेतु लेकिन पुत्री प्राप्त हुयी जिसका नाम था इला । 
 * इलाको वसिष्ठ पुत्र में बदल दिया जिसका नाम था सुद्युम्न लेकिन श्राद्ध देव मनुके सामनें गहरी समस्या आ खड़ी हुयी , शिव श्राप से सुद्युम्न एक माह स्त्री रहनें लगे और एक माह पुरुष ।
 * जब ये स्त्री रूप में होते तब इनको इला नाम से जाना जाता था और पुरुष रूप में सुद्युम्न नाम से । 
 <> ब्रह्माके दुसरे पुत्र अत्रिके पुत्र चन्द्रमा बृहस्पतिकी पत्नी को चुरा लिया और उनसे बुध का जन्म हुआ । 
 * बुध और इलासे जो पुत्र पैदा हुआ उसे पुरुरवा नाम मिला । पुरुरवाका उर्बधिसे मिलन हुआ , कुरुक्षेत्रमें सरस्वतीके तट पर और दोनोंसे 06 पुत्र पैदा हुए । 
*पुरुरवाके बड़े पुत्र आयु के 05 पुत्रों में दूसरे पुत्र क्षत्रबृद्ध के बंश में 08वें बंशज हुए धनवन्तरि ।।
 * आयुके बड़े पुत्र नहुषके बंशमें द्वापरके अंतमें शूरसेनके पौत्र रूपमें पैदा हुए प्रभु श्री कृष्ण । धन्वन्तरि और कृष्ण पुरुरवा और उर्बशी से प्रारम्भ हुए चन्द्र बंश में पैदा हुए थे । धन्वन्तरि आयुर्वेदके रूप में मनुष्य को परम ज्ञान दिया और कृष्ण 
सांख्य - योगका प्रयोग महाभारत युद्ध में करके यह दिखाया कि कर्म योग से भी वही मिलता है जो ज्ञान योग योग से मिलता है और कर्म योग आगे चल कर ज्ञान योग में रूपांतरित हो जाता है । 
~~ ॐ ~~

Thursday, November 21, 2013

कृष्ण भक्त सुदामा और सुदामा

● कृष्ण भक्त दो सुदामा ( भाग -1)
 भागवत सन्दर्भ : 10.40+10.80+10.81 
# प्रभु कृष्णके एक नहीं दो सुदामा परम भक्त भक्त थे एकसे सभीं परिचित हैं लेकिन दूसरे सुदामा की स्थिति त्रिवेणीमें सरस्वती जैसी है ।
 * जब प्रभु कृष्ण 11 वर्षके होगये तब नारदकी बातोंसे प्रेरित होकर कंश कृष्ण - बलराम , नन्द -यशोदा और अन्य ब्रज बासियों को धनुष यज्ञ उत्सव देखनें केलिए अक्रूर के माध्यमसे आमंत्रित किया ।अक्रूर यदु बंशी थे ,कृष्णके चाचा लगते थे पर रहते थे मथुरा में ।अक्रूर कृष्ण -बलराम को लेकर नन्द गाँव से सुबह यात्रा प्रारम्भ की और सूर्यास्त होते होते मथुरा आ पहुंचे । आज नन्द गाँव - मथुराकी दूरी 30-32 km है ,उस समय और कम रही होगी ।
 * मथुरा क्षेत्रमें पहुँचनें पर अक्रूर चाहते थे अपनें घर ले जाना लेकिन कृष्ण मथुराके बहार ब्रज बासियोंका डेरा डालवाये और अक्रूर से बोले ,मैं और दाऊ आप के घर कंश बधके बाद आयेंगे । अक्रूर कंशको कृष्ण आगमनकी सूचना दी और अपनें घर चले
 गए । 
 * अगले दिन तीसरे पहर कृष्ण -बलराम और उनके साथी ग्वाल मथुरा नगर देखनें निकले और इस यात्रामें उनकी मुलाक़ात कंश प्रेमी धोबीसे हुयी , कृष्ण प्रेमी दर्जी मिला और फिर प्रभु गए अपनें अनन्य भक्त माली सुदामा के घर :---- 
<> प्रभु अक्रूरके घर जानेंके लिए मना कर दिया था लेकिन बिन बुलाये गए सुदामा माली के घर । सुदामा एक साधारण माली
 था ,उसे पता भी न था कि प्रभु उसके घर आ रहे हैं ,प्रभु भक्त सुदामा जो हर पल प्रभुकी स्मृतिमें रहा करता था आज उसकी सभीं स्मृतियाँ उसके सामनें खड़ी थी और वह उनमें डूबा हुआ था। लोग समझते रहे कि सुदामा कंश का माली है लेकिन वह था कृष्ण भक्त जिसके सभीं कर्म कृष्णके लिए होते थे । अभीं तक वह काल्पनिक कृष्णके लिए जो मालाएं बनाता रहा और जिनका प्रयोग कंश करता रहा पर उसे कोई दुःख न था ,क्योंकि वह कंश में कृष्णको देखता था पर आज उसका वह काल्पनिक कृष्ण जिसे वह कभीं न देखा था उसके सामनें खड़ा था और उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह उनको पहचानता है । फिट क्या था ? सुदामा माली की कई जन्मोंकी साधानामें फूल खिल उठे और उन फूलोंकी मालाएं बना कर वह प्रभु कृष्ण और शेष जी ( बलरामजी ) को पहना कर उनमें स्वयं को बिलीन कर दिया । 
* कहते हैं , भक्त प्रभुकी तलाशमें तब तक भागता है जबतक वह अपरा भक्ति में होता है और अपरा भक्ति परा भक्ति का द्वार है । अपरासे पराका द्वार खुलता है , उस भक्तकी भाग समाप्त हो जाती है और संसारको प्रभु से प्रभुमें देखता हुआ वह भक्त शून्यकी स्थिरतामें बस जाता है । 
** कृष्ण प्रेमी दूसरे सुदामा थे ब्राह्मण सुदामा ,एक निर्धन सुदामा जो उज्जैन में सान्दीपनि कश्यप गोत्री मुनिके आश्रममें कृष्ण के सखा थे और 64 दिन तक कृष्णके संग रहे । कृष्ण 11 वर्ष की उम्रसे लगभग 30-35 सालकी उम्र तक मथुरा में रहे लेकिन भागवतके अनुसार सुदामा उनसे मिलनें कभी न आये पर उनसे मिलनें द्वारका पहुंचे ,वह भी पत्नीके सुझाव पर ,उस समय जब उनकी गरीबी उनको जीना मुश्किल कर दिया ,तब ।
 * एक सुदामा वह माली था जिसके घर प्रभु गए ,मिलनें और एक सुदामा यह ब्राह्मण कृष्ण सखा थे जो हजारों km की यात्रा करके प्रभु से मिलनें गए ,अपनी गरीबी दूर करनें हेतु लेकिन वहाँ जा कर कुछ बोल न सके , बोलते भी तो कैसे ? प्यारमें मांगकी उर्जा होती ही नहीं । 
** दोनों सुदामाओं को वहसब बिनु मांगे मिला जो संसारमें बनें रहनें केलिए जरुरी है लेकिन उसके साथ इन दोनोंको 
परमधाम - द्वार की चाभी भी मिल गयी । 
<> कृष्ण और कृष्ण भक्त दोनों सुदामाओंकी यह कथा भागवत आधारित है ।
~~ ॐ~~

Saturday, November 16, 2013

परीक्षित कथा

● परीक्षित ● 
भागवत सन्दर्भ : भागवत : 5.10+5.16+5.17+ 1.7+1.8+1.12- 1.19 + भागवत महात्म्य 1 और 2
 * पाँडव बंशमें अभिमन्यु एवं उत्तराके पुत्र , परीक्षित थे , अभिमन्यु अर्जुनके पुत्र थे और पांडुकी पत्नी कुंती एवँ इंद्रसे अर्जुनका जन्म हुआ था ।पांडु की दो पत्नियाँ थी लेकिन स्त्री प्रसंगकरनें में वे असमर्थ थे । जब महाभारत युद्ध हो रहा था उस समय उत्तराके गर्भमें परीक्षित 10वें माह में थे ।हस्तिनापुरमें गंगाजीमें अपनें परिवारके मरे हुए लोगोंको जलांजलि देकर कृष्ण - पांडव वापिस आ गए थे और कृष्ण की द्वारका वापिसी की तैयारी हो रह थी तब उत्तरा भागती हुयी कृष्णकी ओर आ रही थी, यह बोलते हुए कि बचाओ -बचाओ । उत्तराका पीछा लोहेके पांच बाण कर रहे थे जिनसे अग्नि निकल रह थी । प्रभु समझ गए कि यह अश्वत्थामा द्वारा चलाया गया ब्रह्मास्त्र है । अश्वत्थामा ब्रह्मास्त्र चलना तो जानते थे पर उसे चला कर नियंतित करने की विद्यासे वे अनभिज्ञ थे। प्रभु अपनी योग मायासे उत्तरा और उसके गर्भकी रक्षा की ।
 * जब परीक्षित पैदा हुए उस समय आकाशमें ग्रहोंकी स्थिति इस प्रकार थी :--- 
<> सप्त ऋषि मंडल जब उदित होता है तब पहले दो तारे दिखते
 हैं , उन दो तारोंसे उत्तर - दक्षिण दिशामें यदि एक रेखा खीची जाए तो उस रेखा पर नक्षत्रो की स्थिति दिखती है।
 <> जो नक्षत्र उस रेखा पर दिखता है वह सप्तऋषि मंडलके साथ 100 वर्ष तक रहता है ।
 <> परीक्षितके जन्म और मृत्युके समय मघा नक्षत्र था अर्थात परीक्षितका जन्म - मृत्यु एक ही शताब्दी में घटित हुये ।
 * परीक्षितको शुकदेव ही भागवत कथा भाद्र पद शुक्ला नौमी को सुनाना प्रारंभ किया ।
 * परीक्षित कुल 30 सालसे कुछ अधिक समय तक राज्य
 किये ।
 * जब द्वारकाका अंत हुआ और कृष्ण स्वधाम चले गए उस समय 07 माहसे अर्जुन द्वारका में थे और जो लोग बच गए थे उनको इन्द्रप्रष्ठ ले आये थे । स्वधाम यात्राके समय कृष्ण अपनें सारथी दारुकके माध्यमसे द्वारका यह संदेशा भिजवाया था कि आजसे ठीक सातवें दिन द्वारका समुद्रमें समानेवाला है अतः सभीं लोग शिघ्रातिशिघ्र वहाँसे अर्जुनके संग इन्द्रप्रष्ठ चले जाएँ । 
 * कृष्णके पौत्र अनिरुद्ध और अनिरुद्धके पुत्र बज्रका शूरसेनाधिपतिके रूपमें मथुरामें अभिषेक हुआ और पृथ्वी सम्राट हस्तिनापुरमें परिक्षित बने ।
 * विदुरको ज्ञात था कि प्रभु स्वधाम जा चुके हैं और द्वारका एवं यदु कुलका नाश हो चुका है पर वे इस सत्यको युधिष्ठिरको नहीं बताया । विदुरको यह बात वृंदाबनमें उद्धव बताये थे । अर्जुन जब द्वारकासे वापिस आये तब यह बात युधिष्ठिरको बताये और युधिष्ठिर तुरंत राज्य त्याग करके स्वर्गारोहणके लिए चल पड़े थे और उनके साथ अन्य उनके सभीं भाई भी हो लिए । विदुर धृतराष्ट्र और गांधारी को लेकर पहले ही सप्त श्रोत जा चुके थे जहाँ धृतराष्ट्र एवं गंघारी कुछ दिन ध्यान करके महा निर्वाण प्राप्त किया था । 
* परीक्षित सम्राट बनते ही केतुमाल ,भारत , उत्तर कुरु , किम्पुरुष एवं अन्य सभीं वर्षोंको जीता और वहाँके राजाओं से भेटें स्वीकार की ।भागवतमें जिन वर्षोंका विस्तार मिलता है वे सभीं जम्बू द्वीपके वर्ष हैं और जम्बू द्वीप का भूगोल इस प्रकार है :--- 1- जम्बू द्वीपके केंद्र में है इलाबृत्त वर्ष , इलाबृत्तके केंद्र में है मेरु पर्वत जिसके ऊपर व्रह्माका निवास है और चारो तरफ इंद्र जैसे दिगपालोंके निवास स्थान हैं ।मेरु के सर्वोच्च शिखर पर गंगा उतरी थी और उतरते ही चार भागों में विभक्त हो गयी थी ; वह जो उत्तर में उत्तर कुरु से हो कर समुद्रसे जा मिली उसे भद्रा नाम 
मिला , दक्षिण हिमालय को पार करके भारतवर्ष से हो कर जो समुद्र पहुंची उसे अलखनंदा बोला गया , पूर्वकी ओर जाने वाली धाराको सीता और पश्चिम को ओर जाने वाली धरा को चक्षु नाम मिला । 
2- इलाबृत्तके उत्तरमें क्रमशः दक्षिणसे उत्तर की ओर नील 
पर्वत , राम्यक वर्ष , श्वेत पर्वत , हिरण्य वर्ष , श्रृंगवान पर्वत और उत्तर कुरु वर्ष है । 
3- इलाबृत्तके दक्षिण में क्रमशः निषध पर्वत , हरि वर्ष , हेमकूट पर्वत , किम्पुरुष वर्ष , हिमालय पर्वत और इसके दक्षिणमें भारतवर्ष। 
4- इलाबृत्तके पूर्वमें गंध मादन पर्वत और उसके पूर्व में भद्राश्व वर्ष था ।
 5- इलाबृत्तके पध्चिममें माल्यावान पर्वत और उसके पश्चिम में केतुमालवर्ष था । 
* एक दिन परीक्षित बज्रसे मिलनें मथुरा आये और जब बज्र मथुराको एक विरान जगह बता कर अपनी चिंता दिखाई तब परीक्षित इन्द्रप्रष्ठ से कुछ कृष्ण प्रेमी सेठों , पंडितों और बंदरों को मथुरामें बसने हेतु भेजा और शांडिल्य ऋषिको आमंत्रित करके मथुराके रहस्य पर प्रकाश डलवाया । मथुरा क्यों वीरान पड़ गया था ? यह बात ध्यानका विषय है ।
 * सुननेंमें कुछ अजीब सा लगता है कि लगभग 50-60 साल की अवधी में मथुरा - बृंदाबन एवं ब्रजके ऐसे सभीं स्थानों की पहचान और अस्तित्व समाप्त हो चुका था जिनका सम्बन्ध
 कृष्ण - लीलाओं से था । शांडिल्यकी मददसे उन स्थानोंको पुनः बज्र विकसित करवाए । 
 * द्वारकाका अंत होना ,कृष्णका स्वधाम जाना , धृत राष्ट्र -गांधारीका सप्त श्रोत यात्रा एवं वहाँ परम निर्वाण प्राप्त करना , पांडवोंका स्वर्गारोहण , पतिक्षित का पृथ्वी सम्राट वनना ,बज्र का शूरसेनाधिपति बनना ,ये सभीं घटनाएँ एक साथ घटित हुयी थी । * पतिक्षित का ब्याह उत्तरकी पुत्री ईरावतीसे हुआ और जन्मेजय सहित चार पुत्र उत्पन्न हुए । 
* आखिर वह दिन आ ही गया , शिकार करते हुए परिक्षित खुद शिकार हो गए । एक दिन परीक्षित शिकार खेलते हुए हस्तिनापुर से सीतापुर की ओर चल पड़े और कौशिकी नदी के तटीय जंगलमें उनको प्यास लगी ,जब कहीं पानी न दिखा तब जंगल में एक ऋषिकी झोपड़ी में गए जहाँ एक ऋषि समाधिमें पहुँचा हुआ था । परीक्षित को जब ऋषि से सम्मान न मिला तब वे क्रोध में आ कर एक मरे सर्प को उनके गले में लटका कर बाहर निकल आये और चल पड़े । कौशकी नदी के किनारे उस ऋषिका पुत्र था जिसे परिक्षिरके कृत्यका पता चल गया और वह ऋषि पुत्र कौशकी नदी में आचमन करके परीक्षितको श्राप दिया कि जा तूँ , आजसे ठीक सातवें दिन तक्षक सर्पके काटनेंसे मर जाएगा।तक्षक श्री राम कुलमें कुश से आगे 26वें बंशज थे ।श्री राम पुरुकुत्स बंश के थे जिनका ब्याह नाग कन्या से हुआ था । तक्षकके अन्दर सर्प उर्जा थी ,वह जब चाहे सर्प बन जाए और जब चाहे मनुष्य के रूपको धारण कर ले । तक्षकके पुत्रको महाभारत युद्ध में अभिमन्यु मारे थे । 
* वह ऋषि जिसके आश्रम में परीक्षित गए थे , शमीक मुनि थे और उनके पुत्र थे श्रृंगी ऋषि । श्रृंगीके श्रापका परीक्षितको पता चल गया और वे तुरंत अपनें पुत्र जन्मेजय को सत्ता दे कर गंगा - तट पर मृत्यु तक ध्यान करनें हेतु आ गए । वहाँ उनसे मिलनें ऋषि समूह आया और शुकदेव ही भी वहाँ पधारे । परीक्षित गंगा तट पर जहाँ बैठे थे वहाँ गंगा पश्चिमसे पूर्व की ओर बह रही थी , परीक्षितका रुख उत्तर दिशा में था और जो कुश वे बिछाए थे बिछावन की तरह उनके अग्र भाग पूर्व दिशामें थे । 
* ठीक सातवें दिन तक्षक आया एक ब्राह्मण के भेष में और परीक्षितके अंतका कारण बना। जब तक्षक परीक्षितकी ओर आ रहा था उस समय एक कश्यप ब्राह्मण परीक्षितकी ओर आ रहा था जो सर्प बिष उतारनें का ज्ञानी था ,तक्षक उसे बहुत सा धन दे कर वापिस भेज दिया था । 
~~~ ॐ~~~

Sunday, November 10, 2013

महावीरका जन्म स्थान वैशाली

● वैशाली - 1 ●
 ° वैशाली एक प्राचीनतम नगर ° 
सन्दर्भ : श्रीमद्भागवत पुराण : स्कन्ध - 9 अध्याय - 1 ,2 , 14 
 <> इस कल्पके प्रारम्भमें ब्रह्माके मनसे मरीचि पैदा हुए , कश्यप ऋषिका जन्म मरीचि से हुआ और कश्यपसे श्राद्ध देव मनु पैदा
 हुए । श्राद्ध देव मनु पुत्र हीन रहे लेकिन यज्ञके माध्यमसे उन्हें पुत्र न प्राप्त हो कर इला नाम की पुत्री प्राप्त हुयी जिसको बसिष्ठ ऋषि सुद्युम्न नामके पुत्रमें बदल दिया लेकिन सुद्युम्न शिव श्रापके कारण पुनः स्त्री रूप में बदल गए । बसिष्ठजी शिवकी आराधना किये और सुद्युम्न एक माह स्त्री तो एक माह पुरुषमें बदल जाया करते थे । 
2- ब्रह्माके दुसरे पुत्र अत्रिसे चन्द्रमाका जन्म हुआ और चन्द्रमासे बुध जन्मे । बुध और स्त्री सुद्युम्न ( इला ) से पुरुरवा का जन्म हुआ । पुरुरवासे चंद्र बंशी क्षत्रियोंका बंश आगे बढ़ा ।सुद्युम्न को स्त्री - पुरुषका जीवन एक दुःखके सिवाय और कुछ न था अतः वे राज्य अपनें पुत्र पुरुरवाको सौप कर तप करनें चले गए । 
3- श्राद्धदेव मनु यमुना तट पर 100 वर्ष तक पुत्र प्राप्ति हेतु तप किया और उनको 10 पुत्र प्राप्त हुए ; इक्ष्वाकु ,नृग ,शर्याति ,
दिष्ट ,करुष , नरिष्यन्त, पृषध्र ,नभग और कवि ।
 4- दिष्ट का पुत्र नाभाग कर्मसे वैश्य हो गया । नाभाग के वंश में 12वें बंशजके रूप में हुए चक्रवर्ती सम्राट मरुत्त । मरुत्तसे आगे 09वें हुए तृणाविन्दु । 
5- तृणाविन्दुका पुत्र हुआ विशाल जिसनें वैशाली नगर बसाया ।वैशाली नगर मूलतः वैश्य नगरके रूपमें विकसित हुआ ।
 6- यह वैशाली वही वैशाली है जहां बुद्धका आखिरी प्रवचन हुआ था और वैशाली जैन तीर्थंकरोंमें आखिरी तीर्थकर महावीर पैदा हुए ।वैशालीसे लच्छवि क्षत्रिय सम्पूर्ण मिथिला , कोशल और मगधमें फ़ैल गए , महावीर की माँ लच्छवि थी । 
^^^ ॐ ^^^

Friday, November 8, 2013

भागवतमें द्वारका - 01

<> भागवतमें द्वारकाके सम्बन्धमें जो उपलब्ध है उसका सार आप यहाँ देखें --
 1-10.50> द्वारकाका क्षेत्र 48 कोस में फैला था । सत्रह बार 23-23 अक्षौणी सेना के कर मगध नरेश जरासंध मथुरा पर आक्रमण किया जिसमें उसकी सारी सेना तो मारी जाती पर वह बच निकलता। 18वीं बार युद्ध होना था कि कालयबन 03 करोड़ म्लेक्षों की सेना लेकर मथुरा पर आक्रमण कर दिया ।प्रभु सोचे , उधर जरासंध भी आ रहा है और इधर कालयबन आ पहुंचा है , इस परिस्थिति में समस्या गंभीर है अतः उन्होंने समुद्रके अन्दर द्वारकाका निर्माण करके मथुरा बासियोंको वहाँ भेज दिया । 2-11.1 पिन्दारक क्षेत्र द्वारकाके अति समीप था ,एक टापूके रूपमें जहाँ वे 11 ऋषि प्रभुसे मिल कर रुके हुए थे जिनके श्रापसे द्वारकाका अंत हुआ था ।ऋषियोंके नाम इस प्रकार से हैं : विश्वामित्र , नारद ,वसिष्ठ , कश्यप , दुर्बासा, कण्व , असित , भृगु , अंगीरा, वामदेव,अत्रि ।
 3- 11.30 > प्रभास क्षेत्र द्वारकाके लोगोंका तीर्थ था जहाँ पहुँचनेके लिए नावोंसे समुद्र पार करके रथों से जाना होता था । प्रभास क्षेत्रमें यदुबंशके लोगोंका आपस में लड़नें से अंत हुआ था और प्रभु यहाँ से परमधाम गए थे तथा बलरामजी अपना शरीर यहीं त्यागा था ।यहाँ सरस्वती पश्चिम की और सागरसे मिलती थी । 
4-1.10+5.10 > द्वारका से हस्तिना पुर का मार्ग :---- द्वारका - आनर्त - जाभीर - सौभीर ( सिंध का भाग जहां इक्षुमती नदी बहती थी । यह नदी कुरुक्षेत्रसे हो कर द्वारका की ओर जाती थी )।- मरुध्वन - सारस्वत - मत्स्य - कुरुक्षेत्र - ब्रह्मावर्त ( यमुना का तटीय प्रदेश ) - शूरसेन - पांचाल - कुरु जंगल - हस्तिनापुर 
5-4.11> ब्रह्मावर्त में सरस्वती पूर्वमुखी थी 
 6- 1.10 > जामीरके पश्चिममें आनर्त था जहाँ बलराम जी का ब्याह हुआ था । 
7-5.10 > यहाँ ऐसा दिखता है कि सौवीर जो सिंधका भाग था वहाँसे इक्षुमती नदी बहती थी । 
8-11.7 > प्रभुके परम धाम जानेंके बाद ठीक सातवें दिन द्वारका समुद्रमें समा गया था ।
 9- आज का द्वारका समुद्र तलसे न ऊंचाई पर है न नीचे है । 10-खम्भातकी खाड़ीकी खोज बताती है कि जो वहाँ का भाग समुद्र में डूबा था उसके होने की अवधि लगभग 7500 BC से 3500 BC का हो सकता है लेकिन भागवत के अनुसार यह समय लगभग 3400 वर्ष बनता है । 
~~~ ॐ ~~~

Wednesday, November 6, 2013

छठ पर्व

● छठ पर्व ●
* पिरामिड सभ्यता जैसे मिस्र और मेक्सिको और भारतके पूर्वी भागके लोगों का सूर्य से गहरा सम्बन्ध है । मैथिलि ऋषि याज्ञवल्क्य अपनें गुरु वैशम्पायनसे अलग हो कर सूर्य की गहरी उपासना की और कई वैज्ञानिक शोध विषयों पर प्रकाश डाला लेकिन उनकी बातें आजके विज्ञानमें कोई ख़ास जगह न बना
सकी । ऐसी कौन सी घटना हो सकती है जिसके प्रभावके कारण ये लोग सूर्यसे जुड़े होंगे ?
* 1613 AD Alfred Wegener एक जर्मन विचारक का मत है कि अबसे लगभग 200 million साल पूर्व में पृथ्वी के टुकडे हुए और तब विभिन्न महाद्वीपों की रचना हुयी ।पृथ्वी जब एक इकाई थी तब इसे ग्रीक भाषा में Pangea कहते थे जिसका अर्थ होता है one piece ।
* अबसे 200 million वर्ष पूर्व भारतका पूर्वी भाग जहाँके लोग छठ मनाते हैं , मेक्सिकोजे साथ जुड़ा हुआ था । अगर आप मेक्सिको जाएँ और वहाँ के कबिले लोगों से मिले तो आप को ऐसा लगेगा जैसे भारत के पूर्वी भाग के लोगों से आप मिल रहे हैं ।
* उस समय कोई ऐसा हादसा हुआ कि पृथ्वी के टुकडे हो गए और बहुत समय तक उन लोगों को सूर्य न दिखा । सूर्य की अनुपस्थिति लोगों में भय उत्पन्न की और लोग सूर्यकी उपासना करनें लगे । वह दिन और आज का दिन यह परंपरा चल रही है और चलती रहेगी ।
~~ ॐ ~~