Tuesday, June 18, 2013

भागवत भाग - 07

<> आनंद गंगा - घाट :
सन्दर्भ : भागवत प्रथम खंड , माहात्म्य , अध्याय – 3, सूत्र – 3+4
गंगाद्वारसमीपे , तटम् आनंद नामाकम् "
अब आगे :---
भक्ति , ज्ञान और वैराज्ञ के उद्धार हेतु नारद जी यज्ञ करना चाह रहे हैं और सनकादि ऋषियों से उस स्थान को जानना चाह रहे है , जहाँ यह यज्ञ संपन्न की जा सके / सनकादि ऋषि कह रहे हैं , हे ऋषिराज ! गंगा द्वार के समीप गंगा तट पर आनंद नाम का एक घाट है जहाँ अनेक ऋषि , देव एवं सिद्ध लोग निवास करते हैं , वहाँ कोमल बालू बिछी हुयी है और वह क्षेत्र सघन जंगल का क्षेत्र हैं जहाँ भांति - भांति के पेड़ एवं लताएँ हैं /इस क्षेत्र में जो परस्पर बिरोधी प्रबृत्ति के जीव रहते हैं जैसे हांथी एवं सिंह आदि उनके ह्रदय में भी वैरभाव देखनें को नहीं मिलता /
अब अप सोचें :----
[1] गंगाद्वार कहाँ है ?
[2] गंगाद्वार को यदि हरिद्वार माना जाए तो ऋषिकेश से सुखताल [ मुजफ्फर नगर ] तक गंगा के दोनों तटों पर यात्रा करनी होगी , यह समझनें के लिए कि यह आनंद आश्रम द्वापर में कहाँ रहा होगा ?
[3] उस क्षेत्र में घोर जंगल होनें की संभावना होनी चाहिए /
[4] उस क्षेत्र के जंगल में सिंह एवं हांथी जैसे जीवों के होनें की भी सम्भावना होतनी चाहिए /
~~ चलिए आप ऋषिकेश से हस्तिनापुर तक की गंगा यात्रा पर , हम फिर अगले अंक के साथ मिलेंगे /

=== ओम् ====

Saturday, June 15, 2013

श्रीमद्भागवत भाग - 06

दिति की कथ

भागवत सन्दर्भ : खंड - 03 , अध्याय - 14 + 15 + 17+ 18

एक आग्रह : कथा को आप पढ़ें और इसमें छिपे वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक तथ्यों पर मनन करें

<> कथा 

एक बार दक्ष की पुत्री दिति ठीक सुर्यास्थ के समय अपनें पति ऋषि कश्यप से उनके जैसे पुत्र प्राप्ति की कामना दिखाई / ऋषि कश्यप उस समय खीर की आहुति दे कर अपनें आश्रम की अग्निशाला में ध्यान में उतर रहे थे / दिति कश्यप को जब मजबूर करनें लगी तब कश्यक ऋषि बोले :-----
दिति ! यह समय गोधूली  के ठीक बाद का समय है , इस समय जो बच्चा गर्भ में आएगा वह ऋषि नहीं होगा , असुर होगा क्योंकि यह समय भूत , प्रेत , बैताल , पीसाच , असुर और राक्षस आदि घूम रहे हैं और नकारात्मक ऊर्जा वाली आत्माएं गर्भ की तलाश में घूम रही होती  हैं /
दिति ऋषि की एक न मानी और उनको समागम के लिए विवश कर दिया / समागम के बात ऋषि द्वारा कही गयी बातें उसकी बुद्धि में उतरनें लगी और वह भय भीत हो उठी / उसे चिंता होनें लगी कि कहीं ऋषि की बात सच न हो जाए और इस चिंता में वह ऋषि के वीर्य को 100 सालों तब अंकुरित न होनें दिया , ज्यों का त्यों अपनें उदार में रखी रही / 
दिति को सौ साल बाद दो बच्चे एक साथ पैदा हुए ------
[ क ] वह जो गर्भ में पहले स्थापित हुआ उसका नाम रखा गया , हिरण्यकशुप
[ ख ] जो पहले उदार से बाहर निकला उसका नाम रखा गया , हिरणाक्ष

** इन दोनों बातों पर सोचिये **

इस कथा के आधार पर आप सोच सकते हैं , निम्न बातों पर :----
<> वह कौन सा विज्ञान था जिसके आधार पर वीर्य को दिति सौ साल तक विकशित न होनें दिया और वह उदार में यथावत पड़ा रहा ?
<> कश्यप ऋषि की बातों पर विचार कीजिये 
<> एक माँ और एक पिता से कुछ समयांतर पर या एक साथ दो बच्चे पैदा होते हैं , उनमें से एक महान वैज्ञानिक बनाता है और एक मंद बुद्धि का जीवन गुजारता है , क्या कारण हो सकता है ?

~ समागम का समय का प्रभाव बच्चे के ऊपर पड़ता है , 
~ उदर में दो बच्चों के बीज एक साथ स्थापित न होनें के कारण दोनों में भिन्नता दिखती है 
~ समागम के समय पिता - माँ के अंदर जो उस समय गुण समीकरण होते हैं , उनमें विभिन्नता होती है 
~ समागम पूर्व पति - पत्नी के भोजन , पान , सोच , मन की दशा आदि का प्रभाव गर्भ में आनें वाली आत्मा को आकर्षित करते हैं 
* मेरी अपनी कठिनाई है , मैं जो लिखना चाहता हूँ , लिख नहीं पाता अतः आप से विनम्र निवेदन है कि आप स्वयं इस सम्बन्ध में सोचें /
कश्यप जी समागम पूर्व जो बात दिति को कहे हैं , उन बातों में गहरा राज छिपा है , उन राजों को आप अपना सकते हैं /
==== ओम् ======